1. आचार्य रामचंद्र शुक्ल की काल विभाजन पद्धति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर - आचार्य रामचंद्र शुक्ल साहित्य के इतिहास को जनता की चित्तव्रृत्ति का इतिहास मानते हैं। जनता की चित्तवृत्ति परिवर्तित होने पर साहित्य का स्वरूप भी बदलता है। उनकी यह भी मान्यता है कि जनता की चित्तवृत्ति का निर्माण तत्कालीन परिस्थितियों के संदर्भ में किया जाना चाहिए।
आचार्य शुक्ल ने यह स्वीकार किया है कि जिस काल खण्ड में किसी विशेष प्रवित्ति की प्रधानता हो, उसे अलग कालखण्ड माना जाये। प्रवृत्ति का निर्धारण उस काल में पाई जाने वाली प्रसिद्ध पुस्तकों के आधार पर किया जाना चाहिए। इसी आधार पर उन्होंने प्रथम कालखण्ड में वीरगाथा की प्रवृत्ति प्रधान मानते हुए इस काल का नाम वीरगाथा काल रखा।
इस प्रकार शुक्ल जी की काल विभाजन पद्धति के दो आधार हैं -
- प्रधान प्रवित्ति,
- ग्रंथों की प्रसिद्धि।
यद्यपि एक कालखण्ड में प्रधान प्रवृत्ति के साथ-साथ अन्य प्रवृत्तियाँ भी गौण रूप में रहती हैं, किन्तु काल का नामकरण प्रधान प्रवृत्ति के आधार पर ही किया जाना चाहिए।
acharya ramchandra shukla ki kal vibhajan paddhatti par prakash daliye?
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