रेडियो समाचार लेखन और वाचन
नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत है रेडियो समाचार लेखन और वाचन के बारे में जानने से पहले आइये जाने कुछ समान्य बातें -रेडियो एक श्रव्य माध्यम है।
श्रोता और वक्ता के बीच ध्वनि माध्यम है। इसलिए रेडियो की भाषा की तकनीक सबसे अलग है।
रेडियो माध्यम के समाचारों की रचना एक विद्वान के अनुसार डायमंड अकार की होती है जबकि समाचार-पत्रों में समाचारों की रचना विलोमसतूपी होती है।
समाचार-पत्र के समाचार लेखन में 'इंट्रो' (आमुख) होता है। इसके बाद पूरा विवरण विस्तार से दिया जाता है, किन्तु रेडियो समाचार में काम से कम शब्दों में कौन, क्या, कहाँ, कब, क्यों और कैसे इन छः प्रकारों के उत्तर मिल जाना चाहिए।
रेडियो की दूसरी विशेषता यह है कि रेडियो से प्रसारित कार्यक्रम को निरक्षर व्यक्ति भी सुन कर समझ सकता है जबकि समाचार-पत्रों को पढ़ा लिखा व्यक्ति ही समझ सकता है। रेडियो प्रसारण की पहुंच पूरे देश में सर्वाधिक है।
आकाशवाणी के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है कि वह अपने श्रोताओं को ध्यान से कार्यक्रम सुनने और उनके अनुसार कार्य करने के लिए प्रेरित करे। रेडियो कार्यक्रम प्रायः हम ध्यान से नहीं सुनते।
कुछ देर बाद भूल भी जाते हैं अतः आकाशवाणी से प्रसारित होने वाले कार्यक्रम आकर्षक और उपादेय होना चाहिए। रेडियो चुकी शब्दों का माध्यम है इसलिए रेडियो समाचार लेखन के समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए।
- रेडियो केवल भाषा-बोली का माध्यम है। यह शब्दों द्वारा किसी वस्तु स्थति का वर्णन कर सकता है। अतः समाचार लेखन के समय शब्दों का चुनाव सावधानी से करना चाहिए ताकि शब्दों को दृश्य का रूप भी मिल सके।
- रेडियो द्वारा हम सुनने के लिए कार्यक्रम प्रसारित करते हैं, पढ़ने के लिए नहीं अतः समाचार लेखन की भाषा को बोलचाल की भाषा बनाये रखना चाहिए न की पुस्तकों की भाषा।
- रेडियो से प्रसारित कार्यक्रम को आप दोबारा नहीं सुन सकते। दोहराने का प्रावधान नहीं है। अतः समाचार की भाषा और प्रस्तुति ऐसी होनी चाहिए कि एक बार में ही पूरी बात समझ में आ जाए।
- रडियो केवल शब्दों का उच्चारण मात्र नहीं है, वह शब्दों के द्वारा जीता जागता संसार रचता है। शब्दों के द्वारा हृदय की भावना लगाव, उत्तेजना, आत्मीयता, स्वामित्व आदि का बोध होना चाहिए।
- श्रोताओं के अनुकूल ही समाचार लेखन की भाषा एवं अन्य कार्यक्रम होना चाहिए।
रेडियो समाचार लेखन के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए -
- क्या, क्यों अर्थात लेकिन आदि शब्दों का प्रयोग करके अनावश्यक विस्तार नहीं देना चाहिए।
- कर्मवाच्य की अपेक्षा कृत्वाच्य का प्रयोग करना चाहिए।
- अधिक लम्बे तथा घुमावदार वाक्यों से बचना चाहिए।
- संस्कृतनिष्ठ शब्दों के स्थान पर बोलचाल के शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
- वर्तनी का सही उपयोग करना चाहिए तथा अप्रचलित वाक्यों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- एक मिनट की अवधि के लिए 100 से अधिक शब्द नहीं रखने चाहिए।
- बोलचाल के सम्बोधन उपयोग में लाने चाहिए।
- समाचार की भाषा सरल हो, वाक्य छोटे-छोटे हों।
- समाचार संक्षिप्त किन्तु पूर्ण हो।
- समाचार किसी भी स्त्रोत से आया हो, विश्वसनीय और मूल्यवान होने पर उसे अवश्य स्वीकार किया जाना चाहिए।
- समाचार की मूल आत्मा सुरक्षित रहनी चाहिए। आंकड़ों को काम ही दिया जाए तो अच्छा है।
- समाचारों में निहित तथ्यों से छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए। न उन पर अपने विचारों का रंग चढ़ाना चाहिए।
- जिस भाषा में समाचार बुलेटिन तैयार किया, प्रयोग किया जाना चाहिए।
- जहाँ अनुवाद करना होता है, वहाँ अनुवाद सटीक हो। अनुवाद को दोनों भाषाओं का ज्ञान होना चाहिए।
- समाचार तैयार करने में मार्गदर्शक सिद्धांतों का पालन करना चाहिए।
- समाचार लिखने के बाद अंत में एक बार फिर जाँच लेना चाहिए कि बोझिल शब्दावली का प्रयोग तो नहीं हुआ।
- समाचार तथ्यपरकर होने चाहिए।
समाचार बुलेटिन का वाचन (प्रसारण) -
इसके लिए लिखे हुए समाचार 'पूल' में रखे जाते हैं। यह एक तरह से समाचारों का भंडार गृह है। इसमें दो हिस्से होते हैं - 1. देशी समाचार, 2. विदेशी समाचार। खेलकूद संबंधी समाचारों के लिए स्वतंत्र 'पूल' की व्वयवस्था की जाती है। यह 'पूल' सुबह, दिन, शाम एवं रात इन हिस्सों में बँटे होते हैं। यदि संसद का सत्र चल रहा हो तो उन दिनों उसका 'पूल' अलग से बना लिया जाता है।
हर पाली का सम्पादक सबसे पहले अपने पूल को पढ़ता है। सम्पादकों को चाहिए कि पूल को पढ़ते समय उपयोगी समाचारों के शीर्षक नोट करते जाएँ और 'पूल' से प्रसारित होने वाले समाचारों को चुन ले। 'पूल' से उपयोगी समाचार चुनने के बाद सम्पादक आवश्यक्तानुसार सुधारकर उसे पुनः लिखता है। समाचारों के शीर्षक भी चुन लिए जाते हैं। इसके बाद लीड समाचार के अनुसार अन्य समाचार शीषकों का क्रम निर्धारित किया जाता है।
समाचार बुलेटिन को तीन हिस्सों में बाँटा जाता है -
- शीर्षक
- बुलेटिन में जाने वाले समाचार,
- विराम या ब्रेक।
समाचार बुलेटिन में सबसे पहले हेडलाइन दी जाती है। ये मुख्य समाचार होते हैं, जिन्हें वाचन के बाद फिर उसे विस्तार से पढ़ा जाता है। महत्वपूर्ण समाचारों को पहले पढ़ा जाता है। अंत में पुनः मुख्य समाचारों का वाचन होता है। समाचार बुलेटिन की जो समय सीमा निर्धारित होती है उसी निर्धारित समय में उसे पढ़ा जाता है।
आमतौर पर बुलेटिन के प्रारंभ में महत्वपूर्ण राजनीतिक तथा विकास संबंधी समाचार आदि लिए जाते हैं। अंत में खेल संबंधी समाचार और उसके बाद मौसम संबंधी खबरों का प्रसारण किया जाता है।
इस प्रकार रेडियो समाचार लेखन और वाचन में तीन (3) चरण होते हैं। प्रथम चरण में विभिन्न स्रोतों से "जनरल न्यूज़ रूम" में समाचार आते रहते हैं। इन्हें प्रसारण योग्य बनाने के लिए संपादकों की टीम 24 घंटे संपादक का काम करती रहती है।
द्वितीय चरण में विभिन्न माध्यमों से आए हुए समाचारों में से महत्वपूर्ण और उपयोगी समाचारों का चयन किया जाता है।
तृतीय चरण में समाचार वाचन हेतु समाचार तैयार किए जाते हैं।
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