6. महादेवी वर्मा : छायावाद एवं पूर्ववर्ती काव्य प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. महादेवी वर्मा का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिये।
उत्तर- 'आधुनिक युग की मीरा' महादेवी वर्मा का जन्म सन 1907 में होली के दिन उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले के एक शिक्षित कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता गोविन्द प्रसाद, भागलपुर विद्यालय में प्रधानाध्यापक थे तथा माता सरल हृदया धर्मपरायण महिला थी। महादेवी जी बड़ी कुशाग्र बुद्धि बालिका थी और बचपन से ही माँ से 'रामायण'-महाभारत की कथाएँ सुनते रहने के कारण इनके मन में साहित्य के प्रति आकर्षण उत्पन्न हो गया था। महादेवी जी की प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर में सम्पन्न हुई। इसके साथ ही आपने घर पर संगीत तथा चित्रकला की शिक्षा प्राप्त की। नौ वर्ष की अल्पायु में आपका विवाह डॉ. स्वरूप नारायण वर्मा से हो गया। ससुर के विरोध से आपकी शिक्षा में विघ्न पड़ गया। उनके शरीरांत के बाद पुनः शिक्षा प्रारम्भ कर दी और संस्कृत में एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की शिक्षा समाप्ति के बाद आप प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या तथा बाद में कुलपति नियुक्त हुई सन् 1965 में आपने वहाँ से अवकाश ग्रहण किया कुछ समय के लिए आपने 'चाँद' मासिक पत्रिका का भी संपादन किया। 'यामा' पर आपको मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ है।
महादेवी वर्मा छ: वर्ष तक उत्तर प्रदेश राज्य विधान परिषद की मनोनीत सदस्या रहीं। भारत के राष्ट्रपति ने आपको 'पदमश्री' की उपाधि से विभूषित किया और कुमायूँ विश्वविद्यालय ने आपको डी. लिट् की मानद उपाधि प्रदान की। सितम्बर, 1987 को महादेवी जी इस संसार से महाप्रयाण कर गयीं।
प्रश्न 2. महादेवी जी के कृतित्व पर प्रकाश डालिये।
उत्तर - कृतियाँ - महादेवी जी ने गद्य पद्य दोनों में ही रचनाएँ की, किन्तु कवयित्री के रूप में आपकी अधिक प्रसिद्धि है।
महादेवी जी की प्रमुख काव्य-कृतियाँ निम्नलिखित हैं -
(1) नीहार - यह महादेवी जी का प्रथम काव्य संकलन है। इसमें जगत की क्षणभंगुरता प्रकट करने वाले भाव गीत हैं। इस काव्य-कृति में वेदना और विषाद की प्रधानता पायी जाती है।
(2) रश्मि - इस काव्य-संकलन की कविताओं में प्रेम का उल्लास तथा अनुराग की प्रधानता है। इस संग्रह में महादेवी वर्मा का रहस्यवाद शुद्ध रूप में प्रकट हुआ है।
(3) नीरजा - इस संग्रह के अधिकांश गीतों में विरह से उत्पन्न प्रेम का सुन्दर चित्रण हुआ है। इस संग्रह के अनेक गीतों में प्रकृति का सजीव चित्रण हुआ है।
(4) सान्ध्य गीत - इस संकलन में संकलित गीतों में महादेवी की विरहिणी आत्मा अपने अज्ञात प्रियतम से मिलने के लिए आकुल है।
(5) दीप-शिखा - यह महादेवी जी के रहस्य-भावना प्रधान गीतों का संग्रह है। इस संग्रह के अधिकांश गीत दीपक पर लिखे गये है, जिसे आत्मा का प्रतीक माना गया है। यह महादेवी जी की श्रेष्ठ कृति है।
(6) यामा - इसमें महादेवी जी के कुछ चुने हुए गीत संकलित है। इनके अतिरिक्त 'गीत-पर्व', 'सन्धिनी' तथा 'आधुनिक कवि' शीर्षकों में इनके श्रेष्ठ गीत संकलित हैं।
प्रश्न 3. महादेवी की वेदनानुभूति पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर - वेदना और पीड़ा महादेवी जी की कविता के प्राण है। उन्होंने अपने जीवन को विरह का सुकोमल कमल माना है, जो वेदना, करुणा तथा आँसुओं से उत्पन्न हुआ है -
"विरह का जल-जात जीवन-विरह का जल जात।
वेदना में जन्म, करुणा में मिला आवास।"
इस प्रकार महादेवीजी का विरह मिलन से सुखकर है। वे अपने हृदय की पीड़ा को नहीं छोड़ना चाहती हैं। वे कहती हैं-
"मैं नीर भरी दुःख की बदली,
परिचय इतना, इतिहास यही,
उमड़ी कल थी, मिट आज चली।"
प्रश्न 4. महादेवी जी के रहस्यवाद पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर - महादेवी जी की कविता में रहस्यवादी भावना के दर्शन होते हैं। प्रकृति की प्रत्येक वस्तु उन्हें किसी रहस्यमयी शक्ति से परिपूर्ण दिखायी देती है। उनकी आत्मा अपने प्रियतम से मिलने के लिए तड़पती है और उससे मिलकर अपनी सारी पीड़ा भूल जाती है -
"कौन तुम मेरे हृदय में ?
प्रश्न 5. महादेवी वर्मा के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर - महादेवी वर्मा के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं -
(1) छायावाद - महादेवी छायावाद की प्रमुख कवयित्री होने के साथ-साथ श्रेष्ठ गायिका भी थीं। आपके काव्य में छायावाद की सभी विशेषताओं का सम्मिश्रण हुआ है। उदाहरण देखिए -
"सखी में कण-कण को जान चली।
सबका क्रन्दन पहचान चली।।
(2) रहस्यवाद - रहस्यवादी कवियों में महादेवी जी का विशेष स्थान है। प्रकृति के माध्यम से आपने आत्मा और परमात्मा के सम्बन्ध को मधुरतापूर्ण ढंग से चित्रित किया है। आपकी रचनाओं में अलौकिक शक्ति के प्रति आकर्षण दिखाई देता है -
"तोड़ दो तुम यह क्षितिज, मैं देख लूँ उस ओर क्या है ?
जा रहे युगकल्प जिसमें, पंथ उसका छोर क्या है ?
महादेवी जी ने रहस्यवाद की सभी विशेषताओं - जिज्ञासा, आभास और मिलन का चित्रण सफल रूप से किया है।
(3) वेदना-भाव - आपके काव्य का मूल स्वर वेदना का ही है। अपने प्रियतम तक पहुँचने के लिए आप वेदना को साधन मानती हैं और अपनी वेदना में स्वयं को पूर्णरूपेण डुबो देती हैं। यथा -
"मधुर मधुर मेरे दीपक जल, प्रियतम का पथ आलोकित कर।"
(4) प्रकृति-चित्रण–महादेवी जी ने प्रकृति के भिन्न-भिन्न रूपों का चित्रण किया है, जो प्रभावोत्पादक है।
प्रश्न 6. काव्य के क्षेत्र में महादेवी जी का क्या स्थान है ?
उत्तर - महादेवी ने सरस गीतों की रचना की है। उनमें वेदना की मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है। अपने गीतों में उन्होंने असीम, अगोचर और परोक्ष प्रिय के प्रति प्रेम का निवेदन किया है। बौद्धों के दुःखवाद तथा करुणावाद का उन पर बहुत प्रभाव है। उन्होंने अपने गीतों में सरल और तत्सम शब्द प्रधान खड़ी बोली का प्रयोग किया है।
हिन्दी साहित्य को महादेवी जी का योगदान मुख्यतः एक कवयित्री के रूप में अधिक मिला है, किन्तु उन्होंने प्रौद गद्य-लेखन द्वारा हिन्दी भाषा को सजाने-सँवारने तथा अर्थ-गाम्भीर्य प्रदान करने का जो प्रयत्न किया है, वह महत्वपूर्ण और प्रशंसनीय है। वस्तुतः साहित्य तथा संगीत के मणिकांचन संयोग द्वारा 'गीत' की विधा को विकास की चरम सीमा तक पहुँचा देने का श्रेय महादेवी जी को ही है।
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