द्रुत पाठ के कवि सुमित्रानन्दन पन्त : छायावाद एवं पूर्ववर्ती काव्य प्रश्न उत्तर

 5. सुमित्रानन्दन पन्त : छायावाद एवं पूर्ववर्ती काव्य प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. प्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानन्दन पन्त का जीवन परिचय प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर - छायावादी कवि (प्रसाद पन्त, निराला) में स्थान पाने वाले और कोमल प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म संवत 1957 (सन 1900) में उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक ग्राम में हुआ। आपके जन्म से कुछ घण्टे पहले ही आपकी माता का देहान्त हो गया। इस प्रकार आप जन्म लेते ही माता के स्नेह से वंचित हो गये। आपका जन्म-लग्न के अनुसार रखा हुआ नाम गुसाई दत्त पन्त था। इस नाम की काव्यहीनता पर विचार करके आपने अपना कोमलकान्त पदावली वाला और मधुर ध्वनियुक्त नाम सुमित्रानन्दन रखा। पन्त आपकी पैतृक उपाधि अथवा आस्था थी। अल्मोड़ा जिला प्रकृति की सुन्दरता की रमणीक स्थली है। अल्मोड़ा जिले में कौसानी का सौन्दर्य सर्वाधिक दर्शनीय है। माता के स्नेह से वंचित सुमित्रानन्दन घण्टों एकान्त में बैठकर प्रकृति की शोभा का निरीक्षण करते रहते थे। सुमित्रानन्दन जी की प्रारम्भिक शिक्षा कौसानी में ही पूरी हुई है। एण्ट्रेन्स परीक्षा आपने अल्मोड़ा से उत्तीर्ण की। हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण करके आपने लखनऊ में इण्टर कॉलेज में प्रवेश लिया, पर बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी। इसके बाद आपका अधिकांश जीवन इलाहाबाद में बीता। कुछ वर्ष आप लखनऊ आकाशवाणी में अधिकारी भी रहे। आपने विवाह नहीं किया। हरिवंशराय बच्चन से आपकी अधिक घनिष्ठता थी। आपका देहान्त संवत 2027 (सन 1970) में इलाहाबाद में हुआ। 

प्रश्न 2. सुमित्रानन्दन पन्त की साहित्य सेवा पर प्रकाश डालिए। 

उत्तर - सुमित्रानन्दन पन्त ने अपना साहित्य जीवन कवि के रूप में आरम्भ किया। आपने गद्य रचना नहीं की। काव्य रचनाओं के अतिरिक्त आपने कुछ गीत-नाट्‌यों की रचना अवश्य की है। आपके प्रकाशित कविता संग्रहों की सूची उनके प्रकाशन वर्ष के साथ इस प्रकार है

(1) वीणा (सन 1918), (2) ग्रन्थि (सन् 1920), (3) पल्लव (सन 1924), (4) गुंजन (सन 1932), (5) युगान्त (सन 1936), (6) युगवाणी (सन 1939), (7) ग्राम्य (सन 1940), (8) स्वर्ण किरण (सन 1947), (9) स्वर्णधूलि (सभ 1947), (10) युगान्तर (सन 1948), (11) उत्तरा (सन 1949), (12) रजत शिखर (सन 1949), (13) शिल्पी (सन 1952) 14. अतिमा (सन् 1955 ) । 

इसके अतिरिक्त पन्त जी ने एक महाकाव्य की रचना की, जिसका नाम है 'लोकायतन' पन्त की शीर्षक 'विशाल कविता' प्रकृति के मोहक और मनोहर रूप पर आधारित है, पर 'गुंजन' आपका अन्तिम छायावादी काव्य संग्रह है। इसके बाद आपकी रचनाएँ प्रगतिवादी है। उत्तरा, रजत शिखर, शिल्पी आदि पर अरविन्द दर्शन का प्रभाव है।

प्रश्न 3. सुमित्रानन्दन पत्न की कविता की भाषा का स्वरूप निर्धारित कीजिए। 

उत्तर – सुमित्रानन्दन पन्त की भाषा भावों की अनुगामिनी है। पन्त जी ने काव्य-रचना छायावादी युग में आरम्भ की थी। इससे पहले द्विवेदी युग में हिन्दी कविता में खड़ी बोली की प्रतिष्ठा हो चुकी थी। कविवर सुमित्रानन्दन पन्त की खड़ी बोली अन्य कवियों के समान नहीं है। एक तो छायावादी युग में खड़ीबोली को रेशमी स्पर्श वाली कोमलता प्राप्त हो गयी थी, दूसरे पन्त जी ने अपनी भाषा को उससे भी अधिक माधुर्य एवं कोमलता प्रदान की है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि पन्त जी की भाषा भावों की अनुगामिनी है। भाषा के विषय में पन्त जी का कोई विशेष आग्रह नहीं था। उन्हें अपने भाव के अनुकूल जो भी शब्द उपयुक्त लगा, उसका आपने निःसंकोच प्रयोग किया है। आपने कुछ शब्दों की स्वयं रचना की है। उदाहरण के लिए; भ्रमर के लिए; 'मधुवाल शब्द' को लिया जाता है। स्पप्नि और स्वर्णिम ऐसे शब्द है, जिन्हें कोमल बनाया गया है। खड़ी बोली के बीच पन्त जी ने अन्य भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग किया है। दो पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं -

वेणु सी जिसकी मधुमय तान, 

दूरी हो अन्तर में अनजान

इन पंक्तियों में 'दूरी' शब्द ब्रजभाषा का है। 'घूम घुऔर काजर कारे' की शब्दराशि भी इजभाषा से ली गयी प्रतीत होती है। 

प्रश्न 4. सुमित्रानन्दन पन्त के महाकाव्य 'लोकायतन' की विषयवस्तु पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – सुमित्रानन्दन पन्त का महाकाव्य 'लोकायतन' सन 1964 में प्रकाशित हुआ। लोकायतन लगभग सात-सौ पृष्ठों का प्रबन्ध-काव्य है। इसकी रचना का आधार महात्मा गाँधी का जीवन और व्यक्तित्व है। पहले इसका विभाजन खण्डों में हुआ है। बाद में खण्डों को 'द्वारों' में विभाजित किया गया है। 'द्वार' शब्द का प्रयोग पन्त जी ने अध्याय या सर्ग के स्थान पर किया है।' लोकायतन में दो खण्ड और सात द्वार अथवा अध्याय है। पहले खण्ड को पन्त जी ने बाह्य परिवेश और द्वितीय खण्ड को अन्तश्चैतन्य नाम दिया है। गाँधीजी ऐतिहासिक पुरुष हैं। उनका जीवन और कृतित्व इतिहास का विषय बन चुका है। इस आधार पर आशा की जानी चाहिए कि इसमें इतिहास की रक्षा की गयी होगी, पर वास्तव में ऐसा है नहीं। पन्त जी ने इतिहास के झंझट में पड़ना उचित नहीं समझा और न उन्हें इतिहास से बंधना ही सहन हुआ है। पन्त जी ने लोकायन की भूमिका में लिखा है, "गाँधीजी के अतिरिक्त इसमें शेष पात्र कल्पित होने पर भी उनके द्वारा मेरे कवि जीवन की अनुभूति एवं सत्य को वाणी मिली है। गाँधी जी के सम्पर्क में आने वाले तथा उनके सहयोगी वास्तविक पात्रों को यदि इसमें स्थान दिया जाता तो काव्य में निश्चित ही अधिक स्वाभाविकता एवं सजीवता आ सकती थी, पर साथ ही यह कार्य बड़े उत्तरदायित्व का भी था।"

प्रश्न 5. पन्त जी ने अपनी कविता 'प्रथम रश्मि' में चिड़िया से क्या प्रश्न किया है ? 

उत्तर–सुमित्रानन्दन पन्त रंग-बिरंगी चिड़िया से पूछते हैं कि हे रंगीली! तूने सूर्य की पहली किरण का आना कैसे पहचान लिया। हे छोटी चिड़िया! तूने यह गाना कहाँ प्राप्त किया है, जिसे तू गा रही है। तू अपने मन की कल्पना के अनुसार घोंसले में सोयी हुई थी। तुझे अपने पंखों के कारण बड़ा सुख मिल रहा था। तेरे घोंसले के द्वार जो जुगनू घूम रहे थे वे पहरेदार के समान जान पड़ते हैं। रात में जब स्वामी सोता है तो पहरेदार घूम-घूमकर पहरा लगाता है। छोटी-सी चिड़िया तुझे गर्म निवास के अतिरिक्त पहरेदार की सुविधा भी प्राप्त है। मनचाहा रूप बनाने वाले आकाशचारी प्राणी चन्द्रमा की किरणों के सहारे नीचे उतर-उतरकर धरती पर आ रहे थे और कलियों को चूम चूमकर उन्हें मुस्काना सिखा रहे थे। प्रातःकाल के समय तारे रूपी दीपक बिना तेल के हो गये हैं। जिस प्रकार तेल न रहने पर दीपक का प्रकाश नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार तारे बिना तेल वाले दीपकों के समान प्रकाशहीन हो रहे थे। पेड़ों के पत्ते भी बिना साँस के हो रहे थे। धरती पर सपने घूम रहे थे और अंधकार ने अपना मण्डप तान दिया था। संसार के नीचे वाले अंधकारपूर्ण भाग से निकल-निकलकर इच्छानुसार रूप धारण करने वाले आकाशचारी जीव घूम रहे थे।

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