1. सहृदय की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर - सहृदय की अवधारणा पर प्रकाश
सबसे पहले तो स्वागत है यार आपका हमारे ब्लॉग में जिसका नाम है Question field hindi आज के इस पोस्ट में हम जानने वाले हैं सहृदय की अवधारणा के बारे में तो चलिए शुरू करते हैं -
सहृदय की अवधारणा का आरम्भ नाट्य शास्त्र के रचयिता भरतमुनि से होता है। नाटक अभिनय देखने वालों में कुछ को रस की अनुभूति होती है, कुछ को नहीं। उन्होंने निश्चय किया कि रसानुभूति सामाजिक होती है। सामाजिक का शब्दार्थ है - समाज में रहने वाला व्यक्ति। समाज में तो सभी रहते हैं। सामाजिक से भरतमुनि का तात्पर्य सहृदय व्यक्ति से था। सामाजिक अथवा सहृदय के संबंध में भरतमुनि मौन रहे।
सहृदय की अवधारणा को ध्वनिवादी और रसवादी आचार्यों ने स्पष्ट किया। 'काव्यप्रकाश' के आचार्य मम्मट ने रस की परिभाषा प्रस्तुत करते हुए न केवल स्थायी भाव का नाम लिया, अपितु यह भी स्वीकार किया कि स्थायी भाव ही रस है। इस प्रकार आचार्य मम्मट ने भरतमुनि के रस सूत्र की कमी पूरी कर दी।
भरतमुनि के रस सूत्र के चार व्याख्याताओं में से अभिनवगुप्त ने भी सामाजिक शब्द का प्रयोग करते हुए उसी के स्थायीभाव का रस के रूप में परिवर्तन माना है। अभिनवगुप्त का सामाजिक भी सहृदय ही है। रसवादी विश्वनाथ ने सहृदय के लिए सचेतस शब्द का प्रयोग किया है। डॉ. निरूपण विद्यालंकार ने आचार्य विश्वनाथ के रस लक्षण की व्याख्या करते हुए नाटक के प्रेक्षक को सहृदय माना है।
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Sahriday ki avdharna par prakash daliye?
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