एम. ए. हिंदी
(प्रथम सेमेस्टर)
आदिकाल एवं पूर्व मध्यकाल
(प्रथम प्रश्न-पत्र)
इकाई-1. आदिकाल-इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 6. हिन्दी साहित्य के इतिहास की काल विभाजन सम्बन्धी समस्याओं पर विचार कीजिए।
अथवा
हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल-विभाजनगत विभिन्न समस्याओं पर विद्वानों का मत स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का इतिहास हिन्दी के समस्त इतिहासों का आधार है। अतः सबसे पहले उनके द्वारा किये गये काल विभाजन का परिचय पाना आवश्यक है, ताकि विकास और बदलाव की प्रक्रिया को समझा जा सके-
1. आदिकाल - वीरगाथाकाल संवत् 1050 से 1375 विक्रमी,
(क) अपभ्रंश रचनाएँ, (ख) देश-भाषा काव्य (वीर गाथाएँ), (ग) फुटकल काव्य ।
2. मध्यकाल
(क) पूर्व मध्यकाल - भक्तिकाल संवत् 1375 से 1700 विक्रमी,
इसको दो भागों में बाटा गया है -
1. निर्गुण काल - इस काल को फिर से दो भागों में बांटा गया है - ज्ञानाश्रयी शाखा और प्रेमाश्रयी शाखा।
2. सगुण धारा - सगुण धारा को भी दो भागो में बांटा गया है - रामभक्ति शाखा और कृष्णभक्ति शाखा।
(ख) उत्तर मध्यकाल - रीतिकाल संवत् 1700 से 1900 विक्रमी ।
3. आधुनिक काल - गद्य काल संवत् 1900 से अब तक।
इस काल को भी दो भागों में बांटा गया है - गद्य खण्ड-गद्य का अविर्भाव और काव्य खण्ड को फिर दो भाग में बांटा गया है -
(क) पुरानी धारा सं. 1900 से 1925
(ख) नई धारा।
आचार्य शुक्ल के काल विभाजन को इतिहासकारों ने स्वीकार किया है, परन्तु आदिकाल को वीरगाथा काल के रूप में स्वीकार नहीं किया है। इसकी काल सीमा भी स्वीकार नहीं की गई। आचार्य शुक्ल के पूर्व 'गार्सा-द-तासी' एवं 'शिव सिंह सरोज' ने काल विभाजन सम्बन्धी कोई प्रयत्न अपने इतिहास में नहीं किया था। यद्यपि जार्ज ग्रियर्सन के इतिहास का मूल आधार "शिव सिंह सरोज' था, किन्तु फिर भी निश्चित है कि उन्होंने हिन्दी साहित्य के इतिहास को ग्यारह भागों में विभाजित किया था-
- चारण काल,
- पन्द्रहवीं शताब्दी का धार्मिक पुनर्जागरण,
- जायसी की प्रेम कविता,
- ब्रज का कृष्ण सम्प्रदाय,
- मुगल दरबार,
- तुलसीदास,
- रीति काव्य,
- तुलसीदास के परवर्ती कवि
- अट्ठाहरवी सदी,
- कम्पनी के शासन में हिन्दुस्तान,
- महारानी विक्टोरिया के शासन में हिन्दुस्तान।
जार्ज ग्रियर्सन के काल विभाजन में अनेक कमियाँ नजर आती हैं, किन्तु आचार्य शुक्ल ने मूल आधार यही से प्राप्त किया होगा।
मिश्र बन्धुओं ने 'मिश्रबन्धु विनोद' में हिन्दी साहित्य का काल-विभाजन किया। 'मिश्रबन्धु विनोद' के चारों भागों में 5000 से अधिक कवियों-लेखकों का परिचय दिया गया था। मिश्र बन्धुओं ने काल विभाजन निम्न प्रकार किया -
- पूर्व आरम्भिक काल (700 से 1343 वि.),
- उत्तराम्भिक काल (1344 से 1444 वि.),
- पूर्व माध्यमिक काल (1445 से 1560),
- प्रौढ़ माध्यमिक काल (1561 से 1680 वि.),
- पूर्वालंकृत काल (1681 से 1790 वि.),
- उत्तरालंकृत काल (1791 से 1889 वि.),
- परिवर्तन काल (1890 से 1925 वि.),
- वर्तमान काल (1926 से अब तक।)
मिश्र बन्धुओं का काल-विभाजन ग्रियर्सन से भिन्न था। उनके विभाजन में आरम्भ, मध्य और वर्तमान काल की प्रधानता है। ग्रियर्सन ने प्रवृत्तिमूलक वर्गीकरण किया था, मिश्र बन्धुओं ने उसकी जगह प्रौढ़ मध्यकाल तथा अलंकृत काल है का उपविभाजन प्रसिद्ध कवियों के नाम पर किया। रीतिकाल का नाम उन्होंने अलंकृत काल रखा है। ग्रियर्सन ने आधुनिक काल का नामकरण शासनाधीशों के आधार पर किया है, उसकी जगह मिश्रबन्धुओं ने परिवर्तन काल एवं वर्तमान काल शब्दों का उपयोग किया।
डॉ. गणपति चन्द्र गुप्त ने 'हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास' में इस प्रकार काल-विभाजन प्रस्तुत किया-
- पुनर्जागरण काल (भारतेन्दु काल 1857 से 1900 ई.),
- जागरण सुधारकाल (द्विवेदी काल 1900 से 1918 ई. तक),
- छायावाद काल (1918 से 1938 ई. तक),
- छायावादोत्तर काल-
(क) प्रगति प्रयोगकाल (1938 से 1953 ई.),
(ख) नवलेखन काल (1953 से अब तक) ।
आधुनिक काल का उपर्युक्त काल विभाजन सर्वप्रथम उपयुक्त काल-विभाजन है। इसके अतिरिक्त डॉ. गुप्त आधुनिक काल के पूर्व के साहित्य को इस प्रकार विभाजित करते हैं-
1. धर्माश्रय - (क) संत काव्य, (ख) पौराणिक नीति परम्परा, (ग) ऐतिहासिक चरित काव्य परम्परा, (घ) रसिक भक्ति काव्य परम्परा ।
2. राज्याश्रय - (क) मैथिली नीति परम्परा, (ख) ऐतिहासिक रस काव्य परम्परा, (ग) ऐतिहासिक चरित काव्य
परम्परा, (घ) ऐतिहासिक मुक्तक काव्य परम्परा, (ङ) शास्त्रीय मुक्तक परम्परा ।
3. लोकाश्रय- (क) रोमांटिक काव्य परम्परा, (ख) स्वच्छंद प्रेमकाव्य परम्परा ।
डॉ. रामकुमार वर्मा ने 'हिन्दी साहित्य के आलोचनात्मक इतिहास' में इस प्रकार से काल विभाजन प्रस्तुत किया-
- संधिकाल (750 से 1000 वि. तक),
- चारण काल (1000 से 1375 वि. तक),
- भक्तिकाल (1375 से 1700 वि. तक),
- रीतिकाल (1700 से 1900 वि. तक),
- आधुनिक काल (1900 से अब तक)।
डॉ. वर्मा के अन्तिम तीन खण्ड आचार्य शुक्ल के अनुरूप ही हैं। वीरगाथा काल के स्थान पर उन्होंने चारण काल नाम अवश्य दे दिया है। एक अन्य विशेषता संधिकाल 750 से प्रारम्भ माना गया है।
डॉ. लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय ने अपने इतिहास में रीतिकाल को उसकी विषयगत प्रवृत्ति के आधार पर 'श्रृंगार काल' की संज्ञा प्रदान की है जो कि औचित्यपूर्ण भी है। रीतिकाल का आरम्भ भी उन्होंने 1643 से 1843 तक ही माना है।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि हिन्दी साहित्य का इतिहास लेखन एवं कालों का नामकरण विविध विवादों एवं मत-मतान्तरों में उलझा रहा। इसका प्रमुख कारण उपलब्ध साहित्य की प्रमाणिकता, क्रमबद्धता, व्यक्तिगत तर्क थे। किन्तु आधुनिक समीक्षाशास्त्र के मूर्धन्य विद्वान् डॉ. नगेन्द्र का काल विभाजन सर्वाधिक स्वीकृत एवं सर्वमान्य काल विभाजन है।
आदिकाल (7वीं सदी के मध्य से 14वीं सदी के मध्य तक)
भक्तिकाल (14वीं सदी के मध्य से 17वीं सदी के मध्य तक)
रीतिकाल (17वीं सदी के मध्य से 19वीं सदी के मध्य तक)
आधुनिक काल (19वीं सदी के मध्य से अब तक)।
(1) पुनर्जागरण काल (भारतेन्दु युग) – 1857 से 1900 ई. तक,
(2) जागरण सुधार काल (द्विवेदी काल) - 1900 से 1918 ई. तक।
(3) छायावाद काल- 1918 से 1938 ई. तक,
(4) छायावादोत्तर काल-
(क) प्रगति प्रयोगकाल- 1938 से 1953 ई.,
(ख) नव लेखनकाल- 1953 से अब तक।
यह काल विभाजन सभी मान्यताओं की परीक्षा और समाहार के द्वारा सामान्यतः स्वीकृत और मानक काल विभाजन है।
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