आदिकाल के प्रश्न - Aadikal Kal ke Mahatvpurn Prashn Uttar

मेरे सभी पाठकों का एक बार फिर से स्वागत है आज हम आपको हमारे कॉलेज में लिए गए परीक्षा में पूछे गए कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर के बारे में बताने वाले हैं हो सकता है। ये आपके लिए उपयोगी हों और यह मुख्य परीक्षा में भी पूछे जा सकते हैं। तथा यह आपके कॉम्पिटिशन परीक्षा के लिए भी उपयोगी हो सकता है। ये प्रश्न इस प्रकार है -

आदिकाल या वीरगाथाकाल से लिए गए प्रश्न और उनके उत्तर 

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. हिंदी का आदि कवि किसे माना जाता है?
उत्तर - स्वयंभू।

प्रश्न 2. हिंदी भाषा का प्रथम महाकाव्य किसे कहा जाता है।
उत्तर - पृथ्वीराज रासो।

प्रश्न 3. देवताओं की लिपि किसे कहा जाता है?
उत्तर - देवनागरी लिपि।

प्रश्न 4. संसार की सबसे प्राचीन भाषा का नाम क्या है?
उत्तर - संस्कृत।

प्रश्न 5. रामचंद्रिका किसकी रचना है?
उत्तर - केशवदास।

प्रश्न 6. नाथ संप्रदाय के प्रवर्तक किसे माना जाता है?
उत्तर - आदिनाथ।

प्रश्न 7. हिंदी साहित्य का प्रथम कवि किसे माना गया है?
उत्तर - स्वयंभू।

प्रश्न 8. हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन का पहला सफल प्रयास किसने किया ?
उत्तर - जॉर्ज ग्रियर्सन।

प्रश्न 9. हिंदी साहित्य का इतिहास किसने लिखा?
उत्तर - आचार्य रामचंद्र शुक्ला

प्रश्न 10. त्रिपिटक किनका महाग्रंथ है?
उत्तर -  बौद्ध धर्म का।

प्रश्न 11. कौटिल्य ने किस ग्रंथ की रचना की थी?
उत्तर - अर्थशास्त्र।

प्रश्न 12. आधुनिक हिंदी भाषा का विभव किससे माना जाता है?
उत्तर - अपभ्रंश के द्वारा

प्रश्न 13. अपभ्रंश का दुलारा छंद कौन सा है?
उत्तर - दोहा चौपाई।

प्रश्न 14. अधिकार का राजनीतिक परिवेश कैसा था?
उत्तर - पतन का।

प्रश्न 15. श्रावक 4 किसकी रचना है?
उत्तर - आचार्य समन्तभद्र।

प्रश्न 16. महामुद्रा किसे कहते हैं?
उत्तर - महामुद्रा बौद्ध धर्म के साधकों द्वारा की जाने वाली एक कठिन साधना है। जिसमें स्त्रियों का उपभोग किया जाता था।

प्रश्न 17. विजयपाल रासो किसकी रचना है?
उत्तर - नल्लसिंह भाट

प्रश्न 18. खम्माण रासो के रचयिता कौन थे?
उत्तर - दलपति विजय।

प्रश्न 19. संदेश रासो के रचयिता क्या है नाम बताइए।
उत्तर - अब्दुर्रहमान।

प्रश्न 20. उपदेश रसायन रास के रचयिता के नाम बताइए
उत्तर - श्री जिनदत्त सूरी।


लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. इतिहास की पुनर्लेखन की समस्या पर अपना विचार व्यक्त कीजिए !
उत्तर -

प्रश्न 2. वीरगाथा काल की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।

उत्तर - चाटुकारिता - इस काल में कवि धन, उपहार एवं सम्मान के लालच में आश्रयदाता राजाओं की चाटुकारिता की प्रवित्ति पायी जाती थी जो की उस समय की रचनाओं में स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है।
कल्पना की प्रधानता - इस काल के कवियों में राष्ट्रीय भक्ति का आभाव था लेकिन उनमें कल्पना करने की प्रवित्ति बहुत ज्यादा मात्रा में व्याप्त थी।

आंखोदेखा रचना - इस काल के कवि केवल वीर रस की रचना ही नहीं किया करते थे बल्कि वे युद्ध के स्थान पर जाकर वहां कि स्थिति को देखकर उनका वैसा ही वर्णन किया करते थे।

प्रश्न 3. आदिकाल की सांस्कृतिक परिवेश को समझाइए

उत्तर - हर्षवर्धन के समय हिंदू संस्कृति की उन्नति अपने शिखर पर थी सभी कलाओं में धार्मिक छाप देखी जा सकती थी। मुसलमानों के आगमन के साथ ही भारतीय संस्कृति पर मुस्लिम प्रभाव भी देखा जाने लगा था, हिंदू मुस्लिम साथ रहते हुए भी एक दूसरे को शंका की दृष्टि से देखते थे किंतु उत्सव और सांस्कृतिक प्रमुख पर्वों में हिंदू संस्कृति का प्रभाव अधिक था। इस प्रकार जहां एक और परंपराओं का मिलाजुला रूप उभर कर सामने आ रहा था वहीं दूसरी ओर भारतीय संस्कृति और साहित्य के लिए सुदृढ़ पृष्ठभूमि तैयार हो रही थी।
इस प्रकार का सुखद परिवेश उस समय देखने को मिलता है।

प्रश्न 4. सिद्ध साहित्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर - सिद्ध साहित्य का तात्पर्य वज्रयानी परंपरा के उन सिद्ध आचार्य के साहित्य से है जो अपभ्रंश दोनों तथा चर्यापदों के रूप में उपलब्ध हैं और जिन्होंने बौद्ध तांत्रिक सिद्धांतों को मान्यता दी है। शैव नाथपंथियों को भी सिद्ध कहा जाता था जो उन्हीं के समकालीन थे। किंतु बाद में शैव  योगियों के लिए नाथ और बौद्ध तांत्रिकों के लिए सिद्ध कहा जाने लगा। सिद्धों की रचनाएं प्रायः दोहा कोश और चर्यापदों के रूप में मिलती है। दोहा कोश दोहों से युक्त चतुष्पदियों की कड़क शैली में मिलते हैं।  कुछ दोहे टिकाओं में उपलब्ध हैं और कुछ दोहागीतियां बौद्ध तंत्रों और साधनाओं में मिलते हैं। चर्यापद बौद्ध तांत्रिक चर्या के समय गाए जाने वाले पद हैं जो विभिन्न सिद्धाचार्यों के द्वारा लिखे गए हैं।

सिद्धों का संबंध बौद्ध धर्म की ब्रजयानी शाखा से है।  यह भारत के पूर्वी भाग में सक्रिय थे।  इनकी संख्या 84 मानी जाती है जिनमें सरहप्पा, शबरप्पा, लुइप्पा, डोम्भिप्पा, कुक्कुरिप्पा आदि मुख्य हैं।  सरहप्पा प्रथम सिद्ध कवि थे।  उन्होंने ब्राह्मणवाद, जातिवाद और बाह्यचारों पर प्रहार किया।  देहवाद का महिमा मंडन किया और सहज साधन पर बल दिया।  यह महासुख वाद द्वारा ईश्वरत्व की प्राप्ति पर बल देते हैं।

प्रश्न 5. रासो साहित्य से आप क्या समझते हैं?

उत्तर - हिंदी साहित्य में 'रास' या 'रासक' का अर्थ लास्य से है जो नृत्य का एक भेद है।  अतः इसी अर्थ के आधार पर गीत नृत्य परक रचनाएँ 'रास' के नाम से जानी जाती हैं ' रासो ' या ' राउस ' में विभिन्न प्रकार के अडिल्ल, ढूसा, छप्पर, कुंडलियां पद्धटिका आदि छंद प्रयुक्त होते हैं इस कारण ऐसी रचनाएं ' रासो ' के नाम से जानी जाती हैं।
रासो गानयुक्त परम्परा से विकसित होते होते उपरूपक और  उपरूपक से वीर रस से पद्यात्मक प्रबंधों में परिवर्तित हो गया है। इस रासो काव्य में युद्ध वर्णन से भरा हुआ रचना है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. आदिकाल के नामकरण की समस्या पर प्रकाश डालिए।

 उत्तर - हिंदी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन के नामकरण को देखा जाए तो इसे नागरी प्रचारिणी सभा के द्वारा आचार्य रामचंद्र के द्वारा किये गए काल विभाजन को स्वीकार किया गया और उन्होंने इसे चार भागों में बांटा था। आदिकाल प्रथम भाग है तथा शेष क्रमश: भक्तिकाल , रीतिकाल और आधुनिक काल हैं। और इसी प्रकार के काल विभाजन को इस सभा ने मान्य किया।

काल विभाजन के संबंध में विद्वानों के मत

जार्ज ग्रियरसन - इन्होंने ने ही सबसे पहले काल विभाजन का प्रयास किया और इनके अनुसार इन्होने आदिकाल को चारण काल का नाम दिया और इन्होने ने इसका आरम्भिक समय 700 से 1300 ई. तक माना है।

मिश्रबंधुओं के अनुसार - मिश्रबंधुओं ने इस काल को आरम्भिक काल का नाम दिया और यह ग्रियरसन के काल विभाजन से कहीं अधिक प्रोढ़ था। इन्होने इसे आरम्भिक काल का नाम दिया था। इसके बाद आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इसे 1920 में वीरगाथा काल का नाम दिया और यह आज भी उपयोग में लाया जाता है।

साहित्य के इतिहास के प्रथम काल का नामकरण विद्वानों ने इस प्रकार किया है -

1. डॉ. ग्रियर्सन - चारणकाल
2. मिश्रबन्धु - प्रारम्भिक काल
3. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल - वीरगाथाकाल
4. राहुल संकृत्यायन - सिद्ध सामंत युग
5. महावीर प्रसाद द्वेदी - बीजवपन काल
6. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र - वीरकाल
7. हजारी प्रसाद द्वेदी - आदिकाल
8. रामकुमार वर्मा - चारण काल

इस प्रकार सभी विद्वानों के मत अलग अलग हैं जैसे की आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने इसे वीरगाथा काल इसलिए कहा क्योकि इस समय वीरगाथात्मक ग्रंथों की प्रधानता थी। आचार्य ने यहां पर 12 रचनाओं का वर्णन किया जिसमें कुछ इस प्रकार हैं -

  1. विजयपाल रासो - नल्लसिंह कृत सं. 1355 
  2. हम्मीर रासो - शार्ङधर की रचना 1357 
  3. कीर्तिलता - जिसके रचनाकार हैं -विद्यापति सं. 1460 
  4. कीर्तिपताका - विद्यापति 1460 की रचना है। 
  5. खुमाण रासो - दलपति विजय ने इसकी रचना 1180 
  6. बीसलदेव रासो - नरपति नाल्ह ने इसकी रचना 1212 में की थी। 
  7. पृथ्वीराज रासो - चंद बरदाई ने इसकी रचना 1225-1249 के लगभग किया था। 
  8. जयचंद्र प्रकाश - भट्ट केदार के द्वारा रचित सन 1225 में प्रकाशित काव्य। 
  9. जयमयंक जस चंद्रिका - मधुकर कवि ने इसकी रचना की थी यह 1240 सम्वत की रचना हैं। 
  10. परमाल रासो - की रचना जगनिक ने की थी यह सं. 1230 की रचना है। 
  11. खुसरों की पहेलियाँ - इसकी रचना अमीर खुसरो ने की थी सं. 1350 में 
  12. विद्यापति की पदावली - इसे खुद विद्यापति ने सं. 1460 में लिखा था। 

इस प्रकार इस काल को लेकर विद्वानों में इश्पष्ठ्ता का आभाव है। आचार्य महाविर प्रसाद द्वेदी के अनुसार।
यह काल तो पूर्ववर्ती परिनिष्ठित अपभृंश की साहित्य प्रवित्तियों का विकास है। 

आज इस लेख में बस इतना ही मिलते हैं अगले पोस्ट के साथ कोई सुझाव हो तो अवश्य बताएं। 

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