आज हम बात करने वाले हैं, भक्ति काल के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के बारे में और उस समय की सामाजिक परिस्थितियों के बारे में।
भक्ति काल का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
अगर हम बात करें ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की तो भक्ति काल का समय सम्वत 1350 से 1700 तक माना गया है। यह दौर युद्ध संघर्ष और अशांति का समय था। मोहम्मद बिन तुगलक से लेकर शाहजहां तक का शासन काल इस समय में आता है।
भक्ति काल का इतिहास - हिंदी साहित्य
इस अवधि में तीन प्रमुख मुस्लिम वंशों-पठान, लोदी और मुगल का साम्राज्य रहा। छोटे-छोटे राज्यों को हड़पने और साम्राज्य विस्तार की अभिलाषा ने युद्धों को जन्म दिया। अर्थात जो बड़े राजा थे वह छोटे राज्यों को हड़पने की कोशिश किया करते थे जिससे कि उनका साम्राज्य बढ़ सके और इस कारण से वहां युद्ध होने लगे तो इस राज्य संघर्ष परंपरा का आरंभ मोहम्मद बिन तुगलक से हुआ था।
और तुगलक के बाद सुल्तान मोहम्मद साहब गद्दी पर बैठा था। सन 1412 में उनकी मृत्यु हुई जिसके साथ ही तुगलक वंश समाप्त हो गया। इसके बाद लोदी वंश के बादशाहों ने साम्राज्यवाद को बढ़ावा दिया और अंतिम बादशाह इब्राहिम लोदी था। जिसका अंत 1526 में हुआ इसके बाद मुगल वंश का शासन प्रारंभ होता है मुगल वंश के शासन में जैसे कि हम सभी जानते हैं।
अकबर के बारे में और आगरा के ताजमहल को किसने बनवाया था शाहजहां ने तो उसी के शासनकाल में बना था। यानी कि भक्ति काल के दौरान ही यह बना था। जिसमें मुगल वंश के शासक थे बाबर, हुमायूं, अकबर, जहांगीर तथा शाहजहां तो इन सभी ने भक्ति काल के दौरान राज्य किए।
मुगल वंश के बादशाह काव्य और कला के प्रेमी थे जिसमें से ताजमहल एक बहुत ही सुंदर उदाहरण है। लेकिन उस समय जो निरंतर युद्ध चल रहे थे और जो बड़े राजा थे वह छोटे राज्यो को हड़पने में लगे हुए थे। इस कारण अव्यवस्थित शासन व्यवस्था और परिवारों में भी कलह थी।
तो इस कारण से परिवारिक कलहों से देश में अशांति ही रही मुगल वंश के शासकों में अकबर का राज्य सभी दृश्यों से सर्वोपरि और व्यवस्थित रहा मुगल वंश के सभी शासकों में से मुगल के शासक मुगल वंश के शासक अकबर का जो राज्य था सभी दृष्टि से अन्य शासकों की तुलना में इसका प्रभाव उनके उत्तराधिकारी शासकों पर भी रहा। साथ ही सुब्यवस्थित शासन व्यवस्था थी। तो यह तो थी भक्ति काल की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि।
सामाजिक परिस्थितियां
भक्ति काल में हिंदू समाज की स्थिति अत्यंत ही सोचने लायक थी और उस समय यह हिंदू समाज असहाय दरिद्रता और अत्याचार की भट्टी में झुलस रहे थे और स्वार्थ वश वहां पर बलात्कार के कारण हिंदू धर्म स्वीकार कर रहे थे। उनकी मजबूरी हो गई थी हिंदू धर्म को अपनाने की हिंदू कन्याओं का यवनों से बलात विवाह का क्रम चल रहा था। यानी की बाल्यकाल में ही विवाह का क्रम जारी था।
दास प्रथा भी प्रचलित थी और संपन्न मुसलमान हिंदू कन्याओं को, क्रय कर रहे थे यानी कि उनको खरीद रहे थे। कुलीन नारियों का अपहरण करा के वहां जो अमीर मुसलमान जो थे वे लोग अपना मनोरंजन किया करते थे।
परिणाम स्वरूप हिंदू जनता ने इस सामाजिक आक्रमण से बचने के लिए अनेक उपाय किए बाल विवाह और पर्दा प्रथा इस पर आक्रमण से बचने का उपाय था। जो बाल विवाह उस समय कराए जाते हैं और जो पर्दा प्रथा चल रही थी उससे बचने के लिए ही वहां पर यह सभी किए जाते थे।
वर्णाश्रम यानी की जाति प्रथा व्यवस्था वहां पर सुदृढ़ हो गई थी और रोजी रोटी के साधन छिन जाने से वहां गरीब होता गया और जीवन गुजारने के लिए मुसलमानों के सम्मुख आत्मसमर्पण वे करते रहे।
अर्थात इस काल में हिंदू समाज जो था वह अत्यंत ही दुखदाई स्थिति में था।
अब इस प्रकार हम देखे तो भक्ति काल राजनीतिक दृष्टि से युद्ध संघर्ष और अशांति का काल रहा था और हिंदू समाज पर होने वाले सामाजिक और आर्थिक अत्याचारों का समय भी इसे हम कह सकते हैं।
सारांश
इस प्रकार देखा जाए तो भक्ति काल की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि उतनी सुदृण या सुरक्षित नहीं थी काव्य रचना (पद्ध), गद्य रचना कला के क्षेत्र में देखें तो। क्योंकि उस समय युद्ध और अशांति फैली हुई थी।
बड़े राजाओं द्वारा छोटे छोटे राज्यों को हड़पने के लिए और अपने साम्राज्य के विस्तार के अभिलाषा के कारण तो इस कारण से वहां काव्य और कला के क्षेत्र में कोई उन्नति देखने को हमें नहीं मिलती है और उस समय देश में अशांति व्याप्त रही। जिसके कारण भक्ति काल में वहां के कवि लोगों को भक्ति की ओर ले जाने का प्रयास करते रहे।
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