तुलसीदास के दोहे
हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम ।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।।
अर्थ - यह दोहा उस समय के बाद का है जब हनुमान को मैनाक पर्वत विश्राम करने को कहता है। तब हनुमान जी क्या करते हैं उसका वर्णन यहां पर तुलसीदास ने किया है। हनुमान जी मैनाक पर्वत को हाथ से छू बस देते है और कहते हैं भाई मुझे भगवान राम के काम करे बिना विश्राम कहाँ।
राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान ।
आसिष देइ गई सो हरषि चलेउ हनुमान ।।
अर्थ - यह श्लोक सुरसा के द्वारा कहे गए वचन को बताता है और के उद्बोधन में तुलसीदास ने इसे लिखा है। सुरसा कहती ही तुम श्री रामचंद्र जी का सभी कार्य करोगे, क्योकि तुम बल बुद्धि के निधान हो अर्थात भंडार हो।
यह आशीर्वाद देकर सुरसा जो है वहाँ से चली गई, तब हनुमान जी हर्षित होकर वहां से आगे चले गए।
पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार ।
अति लघु रूप धरौं निसि नगर करौं पइसार ।।
अर्थ - यह तुलसीदास का दोहा उस समय का है जब हनुमान नगर में अर्थात लंका में प्रवेश करने की सोचता है। हनुमान नगर के बहुत सारे रखवारो को देखकर मन में विचार करते हैं की, अत्यंत छोटा रूप धारन करके रात को नगर में प्रवेश किया जाए।
तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग ।
तूल न ताहि सकल मिली जो सुख लव सतसंग ।।
अर्थ - यह दोहा लंकनी के द्वारा कहे गए वचन को बताता है जब उसे हनुमान एक मुष्ठी हनन करता है।
हे तात ! स्वर्ग और मोक्ष के सब सुखों को एक तराजू में अर्थात तराजू के एक पलड़े में रखा जाए तो भी वे सब मिलकर दूसरे पलड़े में रखे उस सुख के बराबर नहीं हो सकता जो पल भर के या लव या क्षण भर के सत्संग में होता है।
रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ ।
नव तुलसिका बृंद तहँ देखि हरष कपिराइ ।।
अर्थ - हनुमान ने जब विभीषण के महल को देखा तो वहां के मनोरम दृश्य को वर्णित किया है।
वह महल श्रीरामजी के धनुष बाण के चिन्हों से अंकित था उसकी सोभा का वर्णन नही किया जा सकता है। वहां नए नए तुलसी के पौधों के समूह को देखकर कपिराज हनुमान हर्षित होने लगते हैं।
तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम ।
सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम ।।
अर्थ - यह दोहा तुलसीदास द्वारा रचे गए उस स्थान का वर्णन करता है जब हनुमान और विभीषण का मिलन होता है। तब हनुमान जी ने श्रीरामचंद्र जी की सारी कथा कहकर अपना नाम बताते हैं। सुनते ही दोनों के शरीर पुलकित हो गए और श्री राम चंद्र के गुण समूहों का स्मरण करके दोनों के मन में आनंद उठा और दोनों मग्न हो गए।
अस मैं अधम सखा सुनु मोहु पर रघुबीर।
किन्हीं कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर।।
अर्थ - यह पंक्ती श्री हनुमान द्वारा विभीषण जी को कहा जा रहा है जिसमें हनुमान जी विभीषण से कह रहें हैं
हे सखा ! मैं अधम अर्थात नीच हूँ फिर ही श्री राम चंद्र ने मुझ पर कृपा की है। भगवान के गुणों का स्मरण करके हनुमान जी के दोनों नेत्रों में प्रेमाश्रुओं का जल भर आया।
निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन।
परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन।।
अर्थ - यह पंक्ती उस समय के स्थिति को दर्शाता है जब हुमान ने सीता जी को पहली बार अशोक वाटिका में देखा था। तब हनुमान देखते हैं की सीता जी के जो नेत्र हैं वह अपने ही चरणों को देख रहें हैं अर्थात नजरें निचे की ओर देख रही हैं। और मन श्री रामचंद्र जी के चरणों में लीन है। जानकी जी को दुखी देखकर पवन पुत्र हनुमान जी भी बहुत दुखी हो जाते हैं।
आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान।
परुष बचन सुनि काढि असि बोला अति खिसिआन।।
अर्थ - यह दोहा तुलसीदास जी के द्वारा लिखा गया जब माता सीता ने रावण को कटु वचन कहे तब रावण की स्थिति को बताता है। अपने को जुगनू और श्री राम चंद्र को सूर्य के समान सुनकर और सीता जी के कठोर वचनों को सुनकर रावण तलवार निकालकर
बड़े गुस्से में आकर बोला।
भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद।
सीतहि त्रास देखावहिं धरहिं रूप बहु मंद।।
अर्थ - रावण ने सीता जी को धमकी देकर महीने भर का महोलत दिया और कहा कि यह नहीं मानी तो इसे तलवार निकाल कर मार डालूंगा फिर उसके बाद कि कथा है। इस प्रकार कहकर रावण घर चला गया। और यहां राक्षसियों के समूह बहुत से बुरे रुप धारणकर सीता जी को भय दिखलाने लगे।
यह हमारा पहला पोस्ट है जिसमें हमने आपको बताया है तुलसी दास जी के द्वारा लिखे गए दोहें में से 10 दोहें के बारे में और जानकारी के लिए यहाँ क्लीक करे। सुंदरकांड पाठ
धन्यवाद!
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