कवि न केवल अनुपयोगी एवं महत्व शून्य है... यह कथन किस दार्शनिक का है?

1. "कवि न केवल अनुपयोगी एवं महत्व शून्य है अपितु वह समाज में दुर्बलता एवं अनाचारण के पोषण का भी अपराध करता है।" यह कथन किस दार्शनिक का है?

उत्तर - "कवि न केवल अनुपयोगी एवं महत्व शून्य है अपितु वह समाज में दुर्बलता एवं अनाचारण के पोषण का भी अपराध करता है।" यह कथन अरस्तु का है। 

"Kavi na keval anupyogi ewm mahatava shunya hai apitu vah samaj me durbalta ewm anacharan ke poshan kaa bhi apradh karta hai." yah kathan kis darshnik ka hai?

Yah kathan Arastu ka hai.

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