रस किसे कहते हैं - काव्य के आस्वाद से जो अनिर्वचनीय आनंद प्राप्त होता है उसे रस कहते हैं। काव्य में रस का महत्व - जिस प्रकार प्राण के बिना शरीर का कोई महत्व नहीं होता उसी प्रकार रस के बिना। काव्य रस उत्तम काव्य का अनिवार्य गुण है।
रस की निष्पत्ति - सहृदय के हृदय में स्थाई भाव का जब विभाव अनुभव संचारी भाव के साथ सहयोग होता है तब रस की निष्पत्ति होती है।
रस के अंग - रस के चार अंग होते हैं।
1. स्थाई भाव - सहृदय के हृदय में जो भाव स्थाई रूप से विद्यमान होते हैं। उसे स्थाई भाव कहते हैं। इसकी संख्या 10 होती है। रति, हास, क्रोध, भय, उत्साह, आश्चर्य, शोक, घृणा, निर्वेद, वात्सल्य।
2. विभाव - स्थाई भाव के होने के कारण को विभव कहते हैं। विभव दो प्रकार के होते हैं। 1. आलंबन विभाव वह कारण जिस पर भाव और लंबित होते हैं उन्हें आलंबन विभाव कहते हैं। 2. उद्दीपन विभाव जो आलंबन द्वारा उत्पन्न भाव को उद्दीप्त करते हैं उसे उद्दीपन विभाव कहते हैं।
3. अनुभव आश्रय की व्याह्य चेष्टाओ को अनुभव कहते हैं।
4. संचारी भाव जो भाव सहृदय के हृदय में अस्थाई रूप से विद्यमान होते हैं उन्हें संचारी भाव कहते हैं। जैसे स्मृति, शंका, आलस्य, चिंता आदि इनकी संख्या 33 होती है।
स्थाई भाव और संचारी भाव में अंतर
स्थाई भाव की संख्या 10 होती है जबकि संचारी भाव की संख्या 33 होती है। स्थाई भाव उत्पन्न होकर रसभरी पार्क तक बने रहते हैं जबकि संचारी भाव क्षण प्रतिक्षण बदलते रहते हैं।
Ras kitne prakar ke hote hain
रस के प्रकार
- शृंगार रस - रती
- हास्य रस - हास
- शान्त रस - निर्वेद
- करुण रस - शोक
- रौद्र रस - क्रोध
- वीर रस - उत्साह
- अद्भुत रस - आश्चर्य
- वीभत्स रस - घृणा
- भयानक रस - भय
- वात्सल्य रस - स्नेह
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