"आवा" उपन्यास का केंद्रीय पात्र कौन-सा है? उसकी चारित्र्यपूर्ण विशेषताएँ लिखिए।

1. "आवा" उपन्यास का केंद्रीय पात्र कौन-सा है? उसकी चारित्र्यपूर्ण विशेषताएँ लिखिए। 

उत्तर - 'आवा' उपन्यास के केंद्रीय पात्र रघोत्तम महाराज है जिनको लीमतुलसी गाँव के गाँधी के रूप में समायोजित करने की चेष्टा की गई है, जो उपन्यास की पृष्ठभूमि के अनुसार सार्थक है। उनका व्यक्तित्व आकर्षक और व्यावहारिक है। ग्रामीण परिवेश में आपसी भेदभाव को भूलकर नई चेतना भरने की उनकी चेष्टा गाँधीवादी मार्ग के अनुसार ही है। निम्नांकित बिंदुओं पर विचार करते हुए रघोत्तम महाराज के चरित्र का विश्लेषण पेश है -

(1) राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत रघोत्तम महाराज - बिसाहू का प्रस्ताव विदेशी कपड़ों की होली जलाना सुनकर रघोत्तम महाराज कह उठते हैं-

"कॉल करते आज कर, अउ आज करते अब। 

पल में परलय हो गयगा, तब होली जलेगा कब।"

स्वदेशी आंदोलन कांग्रेस का गांधी जी द्वारा निर्देशित एक महत्वपूर्ण आंदोलन था। इसमें पूरे देश ने भाग लिया था। छत्तीसगढ़ भी इस कार्य में पीछे नहीं था। रघोत्तम महाराज उसी के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से अन्य लोगों के साथ भारत माता और महात्मा गांधी की जय बोलते हुए पूरे गांव में घूम जाते हैं। लघुत्तम महाराज अपने साथ-साथ अन्य अनेक ग्रामीण बंधुओं में राष्ट्रीयता की भावना भरते हैं। वे ग्रामीण जनों को समझाते हैं कि महात्मा गांधी भारत माता का बड़ा लड़का है और देश आजाद कराने के लिए वह आगे बढ़ रहा है। इसलिए हम लोगों को उनको सहयोग देना ही चाहिए।

(2) त्यागशीलता - रघोत्तम महाराज एक त्यागी पुरुष थे। उनके संपूर्ण क्रियाकलाप गांव और समाज के उत्थान के लिए समायोजित और समर्पित रहते हैं। वे निरंतर समाज के छोटे-बड़े सभी लोगों को अपने घर आने पर अतिथि के रूप में स्वागत करते हैं। कहीं भी उनके कार्य व्यवहार में किसी प्रकार के स्वार्थ की गंध नहीं आती और ना किसी लोभ-लालच की ही। लोक कल्याणकारक उनकी सेवाएँ नि:स्वार्थ हैं।

(3) लोक संस्कृति और कला के प्रति आकर्षण - रघोत्तम महाराज की भावनाएं छत्तीसगढ़ी संस्कृति और महिमा को संपूर्ण राष्ट्रीय गौरव और उसके इतिहास के परिपेक्ष में प्रकट करती है। सामान्यत: वह अपने अनुयायियों के समक्ष छत्तीसगढ़ की संस्कृति और महिमा का सरल बखान भी करते हैं। एक स्थल पर उन्होंने कहा है - "देखो जी मछरिया, उरिद, गमी, उरला, बरा पटवा, चरोटा, चुनचुनिया याहा तरह भाजी। बारे-बारे छत्तीसगढ़ म भाजी खाके रही जाबो जी। हमर छत्तीसगढ़ के महिमा गजब है।"

(4) महाराज रघोत्तम - ग्रामीण क्षेत्रों में जागृति फैलाने के लिए नाट्य मंचन को सर्वोत्तम साधन मानते हैं। वे डॉ खूबचंद बघेल रचित 'ऊंच-नीच' नाटक का मंचन बेहद व्यवस्थित ढंग से कराते हैं। जो गांव में नई चेतना, नई लहर फैल जाने के कारण का कारण बनता है। उनके सृजनात्मक क्रियाकलापों से प्रभावित होकर डॉ. खूबचंद बघेल ने उनके संबंध में लिखा है - "बड़े जो जऊन दूसरे ल बड़े बनाथे। खुद बड़े वनम म का हे। दूसर ल बनाही तेकर बड़ौना दुनिया करिही। महाराज आप रही काम करथ हव धन्न हे। हमर भाग कि आप संग भेंट होगे।"

(5) न्यायप्रियता - यदि रघोत्तम महाराज न्यायप्रिय व्यक्ति न होते तो निश्चय ही यह इतने जनप्रिय नहीं रहे होते। वह नि:स्वार्थ चरित्र के व्यक्ति थे, अतः न्यायप्रिय भी थे। इसी कारण लीम-तुलसी गांव के आस-पास कुछ भी घटना होती है तो उन्हें न्याय करने के लिए बुलाया जाता है तथा गांव की विधवा राजा के साथ रामाधार के व्यवहार का न्याय भी रघोत्तम महाराज अपने अन्य साथियों की सलाह से करते हैं। महाराज ने अपने पंचों के साथ राधा को अपने पुत्र रामाधार की पत्नी में स्वीकार कर लेने के लिए जंगलू को विवश किया। लेकिन जंगलू ने अपने पुत्र के साथ मिलकर राधा की हत्या कर डाली और उसने पंडित जी से मामला रफा-दफा करने का आग्रह किया तो महाराज का माथा ठनका उन्होंने उमेदी को ललकार कर कहा - "उमेदी साँच ल आँच का। जा जल्दी थाना, बला के लान जब हम अनित नई करे अन तब डरबो काबर जा बुजरी भाग जा।" महाराज और पुलिस की दूरदर्शिता के कारण ही जंगलू और रामाधार हत्या का दोष स्वीकारते हैं।

(6) साम्यवादी विचारधारा के पोषक - रघोत्तम महाराज की विचारधारा पूर्णरूपेण साम्यवादी तो नहीं समाजवादी है। साम्यवाद के विषय में उनकी कोई साम्यवादी दल के मार्क्सवाद की तरह नहीं है। वह एक स्वाभाविक साम्यवादिता के पोषक हैं। मानवीयता की दृष्टि से ही वह अपने साम्यवाद का आंकलन करते हैं। वे छुआ-छूत, ऊंच-नीच, भेद-भाव आदि को भुलाकर गांव में साम्यवाद की स्थापना करना चाहते हैं, जब उनकी पत्नी अंकलहा के सतनामी होने के कारण पैर नहीं छुआना चाहती हैं तो क्रोधित हो उठते हैं। वे पत्नी से संबंध विच्छेद तक का प्रस्ताव कर देते हैं।

(7) गांव में जागृति फैलाने वाला रघोत्तम महाराज - रघोत्तम महाराज लीम तुलसी गांव में यह चेतना फैलाने में सफल होते हैं - "जात-पात, ऊंच-नीच के भेद ल मेहाना हे तभे हम कैलान हो ही।" वे विसनू गौंटिया अऊ अंकलहा के बीच उठे विवाद को सुलझाते हैं। - "ये रसायन के पन-परताप ए। रमायन मंडली खोलेन त चौपाई, दोहा, जवाब लेत हन, देत हन। धन्य हमर बबा तुलसीदास। जइसे गांधी बबा लेत है लोहा अंगरेजन से तइसने तुलसी बबा डंट के मुकाबला करिन। भेट्टा मन ल पाठ पढ़ा दिन। धरम बांचे हे अइसने संत मन के तपसिया ले।"

Aawa upanyas ka kendriya patra kaun-sa hai? uski charitryapurna visheshtaye likhie.

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