हिंदी की संवैधानिक स्थिति : हिंदी भाषा

1. हिंदी की संवैधानिक स्थिति पर प्रकाश डालिये। 

अथवा 

भारतीय संविधान में हिंदी के प्रयोग से संबंधित प्रावधानों, राष्ट्रपति के आदेशों तथा संकल्प का परिचय देते हुए हिंदी की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालिए। 

उत्तर - 

 हिंदी की संवैधानिक स्थिति का तात्पर्य है इसका संविधान में किस प्रकार की इसकी स्थिति होने से है। 26 जनवरी, 1950 को भारतीय संविधान को क्रियान्वित किया गया था। इस संविधान के निर्माण के समय भारत में हिंदी के स्थान को ध्यान में रखते हुए 14 सितंबर, 1949 को उसे राजभाषा घोषित करने के साथ ही संविधान में हिंदी के लिए विशेष प्रावधान किए गए। संविधान में हिंदी प्रयोग के लिए अनुच्छेद 341 से 351 तक विशेष प्रभाव प्रावधान किए गए जिन का संक्षिप्त स्वरूप इस प्रकार है-

  1.  अनुच्छेद 343 में - "संघ की राजभाषा"
  2.  अनुच्छेद 344 में - "राजभाषा के लिए आयोग और संसद की समिति"
  3.  अनुच्छेद 345, 346 तथा 347 में - "प्रादेशिक भाषाएं अर्थात राज्य की राजभाषा/राजभाषाएं।"
  4.  अनुच्छेद 348 में - "उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में तथा अधिनियमों, विधेयकों आदि की भाषा"।
  5.  अनुच्छेद 349 में - भाषा संबंधी कुछ विधियों को अधिनियमित करने के लिए विशेष 'प्रक्रिया'।
  6.  अनुच्छेद 350 में - "व्यथा के निवारण के लिए प्रयुक्त भाषा, प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएं तथा भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के लिए विशेष अधिकार।"
  7.  अनुच्छेद 351 में - "हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश।"

 अनुच्छेद 343 संघ की राजभाषा

(1) संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप, भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय रूप होगा।

(2) खंड (i) में किसी बात के होते हुए भी इस संविधान के प्रारंभ से 15 वर्ष की काल अवधि के लिए संघ के उन सभी राजकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग जारी रहेगा जिनके लिए प्रारंभ के ठीक पहले उनका प्रयोग होता था, परंतु राष्ट्रपति उक्त कालावधी में, आदेश द्वारा संघ के राजकीय प्रयोजनों में किसी के लिए अंग्रेजी भाषा के साथ-साथ हिंदी भाषा का तथा भारतीय अंकों के अंतरराष्ट्रीय स्वरूप के साथ-साथ देवनागरी-रूप का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेंगे।

(3) इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी संसद विधि द्वारा उक्त 15 साल की अवधि के पश्चात-

  1.  अंग्रेजी भाषा का, अथवा
  2.  अंको के देवनागरी रूप का

 ऐसे प्रयोगों के लिए उपबंधित कर सकेगी जैसा कि इस विधि में उल्लेखित हो।

 अनुच्छेद 344-राजभाषा के लिए संसद का आयोग और समिति

(1) राष्ट्रपति इस संविधान के प्रारंभ में 5 वर्ष की समाप्ति पर तथा तत्पश्चात ऐसे प्रारंभ से 10 वर्ष की समाप्ति पर आदेश द्वारा एक आयोग गठित करेगा, जो एक सभापति और अष्टम अनुसूची में उल्लेखित भिन्न भाषाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगा, जैसे कि राष्ट्रपति नियुक्त करेगा तथा आयोग द्वारा अनुकरण की जाने वाली प्रक्रिया का आदेश परिभाषित करेगा।

(2) राष्ट्रपति को -

 (क) संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए हिंदी भाषा के उत्तरोत्तर अधिक प्रयोग के लिए,

 (ख) चंद्र के राजकीय प्रयोजनों में से सब या किसी के लिए अंग्रेजी भाषा के प्रयोग पर निबंधों के लिए

 (ग) अनुच्छेद - 348 में वर्णित प्रयोजनों में से सब या किसी के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा के लिए,

 (घ) संघ के किसी एक या अधिक प्रयोजनों के लिए प्रयोग किए जाने वाले अंको के रूप में रूप के लिए,

 (ङ) संघ की राजभाषा तथा संघ और किसी राज्य के बीच अथवा एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच संचार की भाषा तथा उनके प्रयोग के बारे में राष्ट्रपति द्वारा आयोग से पृच्छा किए हुए किसी अन्य विषय के बारे में सिफारिश करने का आयोग का कर्तव्य होगा।

(3) खंड (2) के अधीन अपनी सिफारिशें करने में आयोग भारत की औद्योगिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उन्नति का तथा लोक सेवाओं के बारे में हिंदी भाषा-भाषी क्षेत्रों में लोगों के न्यायपूर्ण दावों और हितों का सम्यक ध्यान रखेगा।

 (4) 30 सदस्यीय एक समिति गठित की जाएगी, जिसमें 20 लोकसभा के सदस्य होंगे तथा 10 राज्य सभा के सदस्य होंगे, जो कि क्रमशः लोकसभा के सदस्यों तथा राज्यसभा के सदस्यों द्वारा अनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा निर्वाचित होंगें।

  (5) खंड (1) के अधीन गठित आयोग की सिफारिशों की परीक्षा करना तथा उन पर अपनी राय का प्रतिवेदन राष्ट्र को प्रस्तुत करना समिति का कर्तव्य होगा।

  (6) अनुच्छेद - 343 में किसी बात के होते हुए भी राष्ट्रपति खंड (5) में निर्दिष्ट प्रतिवेदन के या उसके किसी भाग के अनुसार निर्देश निकाल सकेगा।

 प्रादेशिक भाषाएं

 राज्य की राजभाषा या  राज भाषाएं

 अनुच्छेद- 345, 346 और 347 के उपबंधों के अधीन रहते हुए राज्य का विधान मंडल विधि द्वारा उस राज्य की राजकीय प्रयोजनों में से सब या किसी के लिए प्रयोग के अर्थ उस राज्य में प्रयुक्त होने वाली भाषाओं में से किसी एक या अनेक को या हिंदी को अंगीकार कर सकेगा; परंतु जब तक राज्य के विधान मंडल विधि द्वारा इसे अन्यथा उपबंध न करें, तब तक राज्य के भीतर उन राजकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा प्रयोग की जाती रहेगी, जिनके लिए इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले वह प्रयोग की जाती थी।

 एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच में

 अथवा

  राज्य और संघ के बीच में संचार के लिए राजभाषा

 अनुच्छेद 346 - संघ में राजकीय प्रयोजनों में प्रयुक्त होने के लिए तत्समय प्राधिकृत भाषा, एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच में तथा किसी राज्य और संघ के बीच में संचार के लिए राजभाषा होगी, परंतु यदि दो या अधिक राज्य करार करते हैं कि ऐसे राज्यों के बीच में संचार के लिए राजभाषा, हिंदी भाषा होगी तो ऐसे संचार के लिए वह भाषा प्रयोग की जा सकेगी। 

किसी राज्य के जन समुदाय के लिए विभाग द्वारा बोली 

जाने वाली भाषा के संबंध में विशेष उपबंध

 अनुच्छेद 347 - तदविषयक मांग किए जाने पर यदि राष्ट्रपति का समाधान हो जाए कि किसी राज्य के जन-समुदाय का पर्याप्त अनुपात चाहता है कि उसके द्वारा बोली जाने वाली कोई भाषा राज्य द्वारा अभीज्ञात की जाए तो वह निर्देश दे सकेगा कि ऐसी भाषा को उस राज्य में सर्वत्र अथवा उसके किसी भाग में ऐसे प्रयोजन के लिए जैसा कि वह उल्लिखित करें, राजकीय मान्यता दी जाए।

 अनुच्छेद 348 उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों आदि की भाषा

 उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में और अधिनियमों, विधायकों आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा-

 अनुच्छेद 348 - (1) इस भाग के पूर्ववर्ती उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे, तब तक-

 (क) उच्चतम न्यायालय में तथा प्रत्येक उच्च न्यायालय में सब कार्यवाहियाँ,

 (ख) जो -

 (i) विधेयक अथवा उन पर प्रस्तावित किए जाने वाले, जो संशोधन संसद के प्रत्येक सदन में अथवा राज्य के विधान मंडल के सदन या प्रत्येक सदन में पुनः स्थापित किए जाएं उन सब के प्राधिकृत पाठ,

 (ii) अधिनियम संसद द्वारा या राज्य के विधान मंडल द्वारा पारित किए जाएं तथा जो अध्यादेश राष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित किए जाएं उन सबके प्राधिकृत पाठ, तथा

(iii) आदेश, नियम, विनिमय और उपविधि इस संविधान के अधीन अथवा संसद या राज्यों के विधान मंडल द्वारा निर्मित किसी विधि के अधीन, निकाले जाएं, उन सबके प्राधिकृत पाठ अंग्रेजी भाषा में होंगे।

(2) खंड - (1) के उपखंड (क) में से किसी बात के होते हुए भी किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्वसम्मति से हिंदी भाषा का या उस राज्य में राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त होने वाली किसी अन्य भाषा का प्रयोग उस राज्य में मुख्य स्थान रखने वाले उच्च न्यायालय में की गई कार्यवाहीयों के लिए प्राधिकृत कर सकेगा;

 परंतु इस खंड की कोई बात वैसे उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय, अज्ञाप्ति अथवा देश पर लागू न होगी।

(3) खंड - (1) के उपखंड (ख) में से किसी बात के होते हुए भी जहां किसी राज्य की विधान मंडल ने उसे विधानमंडल में पुनः स्थापित विधेयकों या उसके द्वारा पारित अधिनियम में अथवा उस राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित अध्यादेश ओं में अथवा उस उपखंड की कंडिका (iii) में निर्दिष्ट किसी आदेश, नियम, विनिमय या उपविधि में प्रयोग के लिए अंग्रेजी भाषा से अन्य किसी भाषा के प्रयोग को निहित किया है, वहां उस राज्य की राजकीय सूचना-पत्र में उस राज्य के राज्यपाल के प्राधिकार से प्रकाशित अंग्रेजी में उसका अनुवाद उस खंड के अभिप्राय के लिए उसका अंग्रेजी भाषा में प्राधिकृत पाठ समझा जाएगा।

 अनुच्छेद 349 - भाषा संबंधी कुछ विधियों को अधिनियमित करने के लिए विशेष प्रक्रिया

 इस संविधान के प्रारंभ में 15 वर्षों के कालावधी तक अनुच्छेद 348 के खंड - (1) में वर्णित प्रयोजनों में से किसी के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा के लिए उपबंध करने वाला कोई विधेयक या संशोधन संसद के किसी भी सदन में राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी के बिना पुनः स्थापित या प्रस्तावित नहीं किया जाएगा तथा ऐसे किसी विधेयक के पुनः स्थापित किए जाने अथवा ऐसे किसी संशोधन के प्रस्तावित किए जाने की मंजूरी अनुच्छेद 344 खंड - (1) के अधीन गठित आयोग की सिफारिशों पर तथा उस अनुच्छेद के खंड- (4) के अधीन गठित समिति के प्रतिवेदन पर विचार करने के पश्चात ही राष्ट्रपति देगा।

 विशेष निर्देश

 अनुच्छेद 350 - व्यथा के निवारण के लिए अभ्यास आवेदन में प्रयोग की जाने वाली भाषा

 प्रत्येक व्यक्ति किसी व्यथा के निवारण के लिए संघ या राज्य के किसी अधिकारी या प्राधिकारी को, यथास्थिति, संघ में या राज्य में प्रयोग होने वाली किसी भाषा में अभ्यावेदन देने का हकदार होगा।

 अनुच्छेद 350-प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएं

 (क) (सी) प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों की शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त सुविधाओं की व्यवस्था करने का प्रयास करेगा और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निर्देश दे सकेगा, जो वहां ऐसी सुविधाओं का उपबंध सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक या उचित समझता है।

 अनुच्छेद 351 - हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश

 संघ का यह कर्तव्य होगा कि वहां हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करें, जिससे वह भारत की सामाजिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उनकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिंदुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में निर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहां आवश्यक या वांछनीय हो, वहां उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत में और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करें।

 संविधान की अष्टम अनुसूची

 भारत के संविधान के अनुच्छेद 344 (1) तथा 351 में उल्लिखित अष्टम अनुसूची में सन 1992 तक कुल 22 भारतीय भाषाओं को मान्यता प्रदान की गई है। अनुसूची की भाषाएं निम्न प्रकार हैं -

  1. असमिया 
  2. उड़िया 
  3. उर्दू 
  4. कन्नड़ 
  5. कश्मीरी 
  6. कोंकड़ी 
  7. गुजराती 
  8. तमिल 
  9. तेलुगू 
  10. नेपाली 
  11. पंजाबी 
  12. बंगला 
  13. मराठी 
  14. मणिपुरी 
  15. मलयालम 
  16. संस्कृत 
  17. सिंधी तथा 
  18. हिंदी 
  19. वोडो 
  20. संथाली। 

(इनमें से कोंकड़ी, मणिपुरी तथा नेपाली को सन 1992 में विधि द्वारा अष्टम सूची में अंतर्निहित किया गया है) 21. डोंगरी, 22. मैथिली (बोडो, मैथिली, संथाली, डोगरी, को 2003 में जोड़ा गया।)

 राजभाषा अधिनियम - 1963

 सन 1956 में राष्ट्रपति के आदेशानुसार स्थापित राजभाषा आयोग ने हिंदी के प्रगामी प्रयोग से संबंधित अपनी सिफारिशों सहित विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की। यद्यपि यह रिपोर्ट संविधान की धारा - 344 के प्रावधानों के भीतर थी, तथापि रिपोर्ट के आते ही दक्षिण में हिंदी-विरोधी आंदोलन आरंभ हो गए, क्योंकि संविधान के लागू होने के 15 वर्ष पश्चात सरकार संघ के सभी अधिकारी सरकारी क्रियाकलाप अंग्रेजी को पूर्णता हटाकर राजभाषा के रूप में हिंदी में करने के लिए निर्दिष्ट थी। सरकार ने अंततः तुष्टीकरण की नीति अपनाई और सन 1963 में एक अधिनियम पारित किया जिसे 'राजभाषा अधिनियम-1963' के नाम से जाना जाता है।

 इस राजभाषा अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं -

  1.  इस अधिनियम में कुल 9 उपबंध हैं।
  2.  सरकारी प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी सहभाषा के रूप में, हिंदी के साथ सन 1965 के पश्चात भी प्रयुक्त होती रहेगी।
  3.  अंग्रेजी के व्यवहार को समाप्त करने की कोई निश्चित तिथि नहीं होगी अर्थात यह अबाधित रूप से व्यवहार में लाई जाती रहेगी।
  4.  इस अधिनियम के उपबंध - (3) के अनुसार अंग्रेजी भाषा के बने रहने के लिए कानूनी प्रावधान किया गया है और यही वह उपबंध है जिससे हिंदी का स्थान कानूनी रूप से तो सुरक्षित भले ही हो गया, किंतु व्यवहारिक रूप से उसे पीछे हटा दिया गया। अंग्रेजी गॉड होकर भी प्रमुख भाषा बन गई तथा हिंदी प्रमुख होकर भी तिरस्कृत हो गई।
  5.  राजभाषा अधिनियम - 1963 की धारा - 3 (3) का परिणाम यह हुआ कि सरकारी प्रयोजनों में सर्वत्र सरकारी कामकाज में हिंदी-अंग्रेजी द्विभाषिकता के युग का सूत्रपात हुआ। इस धारा के उपबंधों के अंतर्गत केंद्र सरकार के मंत्रालयों, कार्यालयों तथा सभी संबद्ध नियमों, संस्थानों, कंपनियों एवं निकायों आदि से जारी सभी परिपत्र, सामान्य आदेश, संकल्प, नियम, अधिसूचना, प्रेस विज्ञप्ति, संविदा और करार, टेंडर, विज्ञापन, प्रशासनिक तथा अन्य रिपोर्ट और संसद के समक्ष रखे गए सभी प्रकार के प्रतिवेदन एवं राजकीय पत्र आदि अनिवार्य रूप से हिंदी-अंग्रेजी द्विभाषी रूप में होंगे।
  6.  इस अधिनियम की धारा-के अनुसार राजभाषा के बारे में एक 'संसदीय राजभाषा समिति' के गठन का प्रावधान है, जिसमें लोकसभा के 20 तथा राज्यसभा के 10 सदस्य होंगे।
  7.  अधिनियम में यह भी प्रावधान है कि सन 1965 के पश्चात राष्ट्रपति के प्राधिकार के अधीन सरकारी राजपत्र में प्रकाशित हिंदी अनुवाद उसका हिंदी में प्राधिकृत पाठ माना जाएगा। धारा 5(2) में व्यवस्था दी गई है की सन 1965 के पश्चात (नियत दिन से) सभी विधायकों आदि के प्राधिकृत अंग्रेजी पाठों के साथ-साथ उनके प्राधिकृत हिंदी अनुवाद भी देने होंगे।
  8.  अधिनियम की धारा-7 में प्रावधान किया गया है कि राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से किसी राज्य का राज्यपाल उच्च न्यायालय के फैसलों, आदेशों आदि के लिए हिंदी या राज्य की राजभाषा के वैकल्पिक प्रयोग प्राधिकृत कर सकता है।
  9.  यह अधिनियम, हिंदी संघ की मुख्य राजभाषा है, किंतु अंग्रेजी के प्रयोग को पूर्णत: समाप्त कर दिए जाने का कोई वायदा नहीं करता।

 अधिनियम का विश्लेषण करें तो यह स्पष्ट है कि हिंदी को मूर्ति बनाकर राष्ट्र-भाषा-मंदिर में प्रतिष्ठित कर दिया और उसे निष्प्राण प्रमाणित करने के साथ-साथ उसका कार्य-क्षेत्र भी सीमित कर देने का प्रयास किया गया।

 राजभाषा नियम - 1976

 राजभाषा के रूप में हिंदी का प्रयोग सरकारी कार्यालयों, केंद्रीय सरकार के अधीन नियमों, कंपनियों आदि में अनेक प्रभावी ढंग से करने के लिए, केंद्रीय सरकार ने सन 1976 में राजभाषा अधिनियम - 1963 की धारा (3) की उपधारा -(4) के साथ वर्णित धारा - 8 के द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए सन् 1976 में कुछ और नियम बनाएं जिसका आरंभ इस प्रकार होता है-

 सा. का. नि. 1052 राजभाषा अधिनियम - 1963 की धारा 3 की उपधारा 4 के साथ-साथ धारा - 8 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्रीय सरकार निम्नलिखित नियम बनाती है, अर्थात - नियम - 1 'संक्षिप्त नाम और प्रारंभ' के साथ आरंभ इस 'राजभाषा नियम 1976 ' की विशिष्टताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) राजभाषा नियम -  1976 के अंतर्गत कुल 12 नियम हैं जो कि तमिलनाडु राज्य को छोड़कर देश के अन्य सभी राज्यों पर समानरूपपेण  से प्रभावी होते हैं।

(2) राजभाषा नियम - 1976 के अंतर्गत हिंदी के प्रगामी प्रयोग को प्रभावी ढंग से लागू करने के उद्देश्य से संपूर्ण भारत को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है, यथा - क्षेत्र 'क', क्षेत्र 'ख' तथा क्षेत्र 'ग' (Region 'A' , Region 'B' and Region 'C') 

 क्षेत्र 'क' के अंतर्गत गुजरात, महाराष्ट्र तथा पंजाब राज्य और चंडीगढ़ संघ राज्य-क्षेत्र हैं।

 क्षेत्र 'ग' के अंतर्गत वे राज्य तथा संघ राज्य आते हैं जो क्षेत्र 'क', क्षेत्र 'ख' तथा क्षेत्र 'ग' में शामिल नहीं है।

(3) राजभाषा नियम - 1976 के (नियम-5) के अंतर्गत हिंदी की दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रावधान है कि हिंदी में प्राप्त पत्रों का उत्तर अनिवार्यत: हिंदी में ही देना होगा, चाहे वह किसी भी राज्य सरकार या व्यक्ति विशेष से आया हो। इस नियम में किसी प्रकार की छूट नहीं दी गई है।

(4) राजभाषा नियम - 1976 में हिंदी पत्राचार के विषय में भी विस्तृत निर्देश दिए गए हैं।

(5) नियम - 5 के अनुसार यह प्रावधान किया गया है कि सरकारी कार्यालय से जारी होने वाले परिपत्र, प्रशासनिक रिपोर्ट, कार्यालय आदेश, अधिसूचना, करार, संधियाँ, विज्ञापन तथा निविदा सूचना आदि अनिवार्य रूप से हिंदी-अंग्रेजी द्विभाषी रूप में जारी किए जाएंगे और ऐसे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने वाले अधिकारी की यह जिम्मेदारी होगी कि वह यह भली-भांति सुनिश्चित कर लें कि ऐसे दस्तावेज हिंदी और अंग्रेजी द्विभाषी रूप में जारी किए जा रहे हैं।

(6) इन नियमों में यह प्रावधान भी है कि कोई भी कर्मचारी हिंदी या अंग्रेजी में आवेदन या अभ्यावेदन दे सकता है।

(7) केंद्र-सरकार का कोई भी कर्मचारी/अधिकारी फाइलों में टिप्पणी का प्रारूप हिंदी या अंग्रेजी में लिख सकता है। उससे यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह उसका अनुवाद भी प्रस्तुत करें।

(8) राजभाषा नियम -  1976 के नियम - 12 में एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधान या है कि प्रत्येक केंद्रीय सरकार के कार्यालय के प्रशासनिक प्रधान का यह उत्तरदायित्व होगा कि वह यह सुनिश्चित कर ले कि राजभाषा अधिनियम एवं ब्रजभाषा नियमों के उपबंधों का समुचित पालन किया जा रहा है और इनके प्रभाव अनुपालन हेतु प्रभावकारी जांच-बिंदु (Check-point) निर्धारित करें।

(9) इस राजभाषा नियम - 1976 से राजभाषा हिंदी के प्रगामी प्रयोग के क्रियान्वयन पर अच्छा खासा प्रभाव पड़ा तथा केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों को हिंदी में कार्य करने की प्रेरणा प्राप्त हुई है।

 राजभाषा हिंदी के प्रगामी प्रयोग से संबंधित राष्ट्रपति द्वारा निर्गत आदेश

       भारतीय संविधान में राजभाषा प्रावधान के अंतर्गत राष्ट्रपति को यह उत्तरदायित्व सौंपा गया है कि वह राजभाषा के प्रगामी प्रयोग को दृष्टि में रखते हुए आवश्यकता पड़ने पर समय के अनुरूप आदेश निकाले। इसी उत्तरदायित्व के अनुरूप राष्ट्रपति ने सन 1952, सन 1955 तथा सन् 1960 में आदेश निकाले, जिसका प्रारूप इस प्रकार है-

(क) राष्ट्रपति का आदेश : 27 मई, 1952

        भारत के संविधान के अनुच्छेद 343 के खंड -(2) के द्वारा दी गई शक्तियों का प्रयोग करते हुए 27 मई, 1952 को राष्ट्रपति द्वारा अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिंदी भाषा का और भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप के अतिरिक्त हिंदी भाषा के अंको का प्रयोग किए जाने का प्रावधान किया गया -

  1.  जनता के साथ पत्र व्यवहार।
  2.  प्रशासनिक रिपोर्ट, राजकीय पत्रिकाएं और संसद को दी जाने वाली रिपोर्ट।
  3.  सरकारी संकल्प और विधाई अधिनियमितताएं।
  4.  जिन राज्य सरकारों ने अपनी राजभाषा के रूप में हिंदी को अपना लिया है उनसे पत्र-व्यवहार।
  5.  संधियाँ और करार।
  6.  अन्य देशों की सरकारों और उनके दूधों को तथा अंतरराष्ट्रीय संगठनों से पत्र व्यवहार।
  7.  राजनयिक और कौंसलीय पदाधिकारियों तथा अंतरराष्ट्रीय संगठनों में भारतीय प्रतिनिधियों के नाम जारी किए जाने वाले औपचारिक दस्तावेज।

(ख) राष्ट्रपति का आदेश : 3 दिसंबर, 1955

      राष्ट्रपति ने संविधान (सरकारी प्रयोजनों के लिए भाषा) आदेश - 1955, जारी किया जिसके द्वारा संघ के निम्नलिखित सरकारी प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिंदी के प्रयोग को प्राधिकृत किया गया है-

  1. जनता के साथ पत्र-व्यवहार।
  2.  प्रशासनिक रिपोर्ट, सरकारी पत्रिकाएं और संसद में प्रस्तुत की जाने वाली रिपोर्ट।
  3.  सरकारी संकल्प और विधाई अनियमितताएं।
  4.  जिन राज्य सरकारों ने हिंदी को अपनी राजभाषा के रूप में अपना लिया है, उनसे पत्र व्यवहार।
  5.  संधियाँ और करार।
  6.  अन्य देशों की सरकारी और उनके दूतों और राष्ट्रीय संगठनों के साथ पत्र-व्यवहार।
  7.  राजनयिक और कौंसलीय पदाधिकारियों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में भारतीय प्रतिनिधियों के नाम जारी किए जाने वाले औपचारिक दस्तावेज।

 राष्ट्रपति का आदेश : 27 अप्रैल, 1960

     संसदीय राजभाषा समिति की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 344 खंड (6) के अंतर्गत प्रदत्त शक्तियों का व्यवहार करते हुए केंद्रीय सरकार के कार्यालयों के कामकाज में हिंदी को प्रस्थापित किए जाने के उद्देश्य से 27 अप्रैल, 1960 को पुनः एक आदेश जारी किया। इस आदेश की प्रमुख विशेषताएं संक्षेप में इस प्रकार हैं-

(1) शब्दावली-समिति द्वारा स्वीकृत सामान्य सिद्धांतों के अनुकूल शब्दावली - विज्ञान, तकनीकी, प्रौद्योगिकी की अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप वाली शब्दावली को कम से कम परिवर्तन के साथ अपना लिया जाए और विज्ञान एवं तकनीकी की शब्दावली के विकास के लिए समिति के सुझाव के अनुसार स्थाई आयोग का निर्माण किया जाए।

(2) प्रशासनिक संहिताओं तथा अन्य कार्य-विधि साहित्य की अनुवाद की भाषा में भारतीय भाषाओं की शब्दावली में यथाशक्य समरूपता की परिपाटी का पालन किया जाए। सांविधिक नियमों, विनिमय और आदेशों के अतिरिक्त सब संहिताओं एवं संपूर्ण कार्य-विधि साहित्य का अनुवाद शिक्षा मंत्रालय करें।

(3) प्रशासनिक कर्मचारी-वर्ग को हिंदी का प्रशिक्षण अनिवार्य - 45 वर्ष से कम आयु के सभी केंद्रीय कर्मचारियों के लिए (तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों के अतिरिक्त) गृह मंत्रालय हिंदी टाइप-राइटिंग तथा आशुलेखन के प्रशिक्षण का प्रबंध,केंद्रीय सरकार की सेवा में रत लोगों के लिए करे तथा शिक्षा मंत्रालय हिंदी टाइप-राइटर के मानक की बोर्ड (Key-Board) - कुंजीपटल के विकास के लिए शीघ्र कदम उठाए।

(4) हिंदी प्रचार - शिक्षा मंत्रालय वर्तमान हिंदी-प्रचार व्यवस्था की समीक्षा करे तथा समिति द्वारा समझायी दिशाओं पर आगे कार्यवाही करे एवं शिक्षा मंत्रालय, वैज्ञानिक अनुसंधान और सांस्कृतिक कार्य मंत्रालय आपस में मिलकर भारतीय भाषा-विज्ञान, भाषा-शास्त्र तथा साहित्य संबंधी-अध्ययन और अनुसंधान के को प्रोत्साहन देने के लिए समिति-निर्देशन आवश्यक मार्ग अपनाए तथा विभिन्न भारतीय भाषाओं को परस्पर निकट लाने के लिए और अनुच्छेद 351 में दिए गए निर्देश के अनुसार हिंदी का विकास करने के लिए आवश्यक योजना तैयार करे।

(5) केंद्रीय सरकारी विभाग के स्थानीय कार्यालयों के लिए भर्ती में भी समिति का मानना है कि स्थानीय कार्यालय एवं आंतरिक काम-काज में हिंदी का प्रयोग जानने एवं करने वाले कर्मचारी भर्ती करें जो जनता के साथ पत्र-व्यवहार में उन प्रदेशों की प्रादेशिक भाषाओं का प्रयोग भी कर सकें।

(6) नेशनल डिफेन्स एकेडमी (National Defence Academy) - जैसे प्रशिक्षण संस्थानों में भले ही माध्यम भाषा अंग्रेजी हो, किंतु शिक्षा संबंधी अन्य प्रयोजनों के लिए हिंदी-प्रयोग को प्रोत्साहन दिया जाए। रक्षा मंत्रालय आदि में भी यही रुख अपनाया जाए। प्रशिक्षण संस्थानों के प्रवेश में हिंदी और अंग्रेजी तथा परीक्षा माध्यम में भी हिंदी तथा अंग्रेजी के विकल्प चुनने की परीक्षार्थियों को सुविधा हो। प्रादेशिक भाषाओं के विकल्प पर भी विचार किया जाए।

(7) अखिल भारतीय सेवाओं तथा उच्चतर केंद्रीय सेवाओं में भर्ती के समय परीक्षा माध्यम अंग्रेजी प्रारंभ में बना रहे, परंतु हिंदी को बाद में वैकल्पिक माध्यम के रूप में अपना लिया जाए। परीक्षार्थी को परीक्षा की विकल्प भाषा हिंदी या अंग्रेजी चुनने की छूट हो।

 कुछ समय पश्चात वैकल्पिक माध्यम के रूप में हिंदी का प्रयोग संघ लोक सेवा आयोग के साथ परामर्श करके गृह मंत्रालय सुनिश्चित करें।

(8) केंद्रीय मंत्रालय के प्रकाशनों में हिंदी के देवनागरी अंकों के संबंध में तथा अंतरराष्ट्रीय अंकों के संबंध में के एक आधारभूत नीति प्रकाशन के स्वरूप, विषय वस्तु तथा उसकी जन-उपयोगिता के आधार पर निश्चित की जाए।

(9) अधिनियमों, विधेयकों इत्यादि की भाषा के संबंध में समिति की राय थी की विधियां अंग्रेजी में बनती रहे, किंतु उनका प्रमाणिक अनुवाद हिंदी में दिया जाए। इसका प्रबंध भी विधि मंत्रालय करेगा। राज्य-विधान-मंडल में पेश किए गए या पास किए गए अधिनियमों के मूल पाठ में यदि हिंदी अंतर किसी भाषा में हो तो उनके अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी अनुवाद भी उपलब्ध कराए जाने चाहिए।

(10) उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय की भाषा अंततः हिंदी ही हो जानी चाहिए। परिवर्तन का सुसंगत समय आने पर सभी आज्ञप्तियों, न्यायालय के निर्णयों तथा आदेशों की भाषा सब प्रदेशों में हिंदी होनी चाहिए, यद्यपि राष्ट्रपति का आदेश हो तो प्रादेशिक भाषा तथा हिंदी का विकल्प राजभाषा के रूप में प्रयोग में लाया जा सकता है।

(11) विधि क्षेत्र में हिंदी में काम करने के लिए आवश्यक प्रारम्भिक कदम - मानव विधि शब्दकोश के निर्माण हेतु केंद्र तथा राज्य की विधान निर्माण से संबंधित सांविधिक ग्रंथ का अधिनियम करने, विधि-शब्दावली तैयार करने आदि में भी हिंदी और अंग्रेजी दोनों का समान रूप से व्यवहार आंशिक रूप से होगा।

 विधि मंत्रालय यथासंभव सभी भारतीय भाषाओं में प्रयोग के लिए सर्वमान्य विधि शब्दावली की तैयारी और संविधियों के हिंदी अनुवाद संबंधित संपूर्ण कार्य विशेषज्ञों की राय से योजना बनाकर स्थाई आयोग बनाकर करें।

(12) हिंदी के प्रगामी प्रयोग के लिए योजना का कार्यक्रम समिति के अनुसार संघ सरकार बनाये एवं क्रियान्वयन को सुनिश्चित करें। इस बीच राजकीय प्रयोजनों के लिए संघ अंग्रेजी के प्रयोग पर कोई रोक न लगाए।

 राजभाषा संकल्प - 1968

    राजभाषा के रूप में हिंदी के प्रगामी प्रयोग को सुनिश्चित करने के लिए संसद के दोनों सदनों ने दिसंबर, 1967 में एक संकल्प पारित किया जो 'राजभाषा संकल्प - 1969' के नाम से जाना जाता है, इसे 18 जनवरी, 1968 में लागू किया गया। इसकी विशिष्ट बातें निम्नलिखित हैं-

  1.  संविधान के अनुसार देवनागरी लिपि में लिखी देवनागरी हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी।
  2.  वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट को संसद के समक्ष प्रस्तुत करना होगा।
  3.  अष्टम अनुसूची में उल्लिखित 18 प्रादेशिक भाषाओं के विकास का भी ध्यान रखा जायेगा।
  4.  संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में हिंदी को एक विषय के रूप में शामिल किया जाए।
  5.  संघ लोक सेवा आयोग तथा अन्य परीक्षाओं का माध्यम हिंदी या क्षेत्रीय भाषाएं रखा जाए तथा वैकल्पिक माध्यम के रूप में अंग्रेजी का प्रयोग जारी रखा जाए।
hindi ki sanvaidhanik sthiti par prakash daliye 

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