1. जायसी के 'पद्मावत' का परिचय प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर - जायसी को भक्ति-काल की निर्गुण धारा की प्रेममार्गीय शाखा का प्रतिनिधि कवि माना जाता है। इनके तीन ग्रन्थ माने जाते हैं- पद्मावत, अखरावट और आखिरी कलाम। 'पद्मावत' महाकाव्य है। इसमें चित्तौड़ के राजा रतनसेन और सिंहलद्वीप की राजकुमारी पद्मावती की प्रेम कहानी का वर्णन है।
'पद्मावत' में रतनसेन आत्मा का और पद्मावती परमात्मा की प्रतीक है। हीरामन तोता गुरु के स्थान पर है। पद्मावत का पर्याप्त अंश इतिहास पर आधारित है।
चित्तौड़ पर अलाउद्दीन का आक्रमण ऐतिहासिक घटना है। हीरामन तोता से पद्मावती के सौन्दर्य का वर्णन सुनकर चित्तौड़ का राजा रतनसेन जोगी बनकर घर से निकला और बड़ी तपस्या के बाद उसने पद्मावती को पाया पद्मावती से विवाह होने के बाद रतनसेन अपनी ससुराल में बहुत समय तक रहा।
उसकी पहली पत्नी नागमती की विरह-व्यथा एक पक्षी से सुनकर रतनसेन पद्मावती सहित आ गया एक युद्ध में रतनसेन मारा गया तो दोनों रानियाँ पद्मावती और नागमती उसके साथ सती हो गयी।
'पद्मावत' की रचना जन-साधारण के प्रयोग की भाषा अवधी में हुई है। दोहा-चौपाई छन्दों में विरचित 'पद्मावत' की शैली मसनवी कही जाती है पद्मावत का विभाजन खण्डों में है। जायसी सूफी सम्प्रदाय के मानने वाले थे, जिसमें ईश्वर की प्राप्ति का साधन प्रेम माना जाता है।
सूफी सम्प्रदाय में ईश्वर की उपासना उसे स्त्री मानकर की जाती है। इसमें पद्मावती के सौन्दर्य का जो वर्णन है, वह किसी नारी का नहीं हो सकता। वह सर्वव्यापक ईश्वर का ही हो सकता है। हिन्दी साहित्य में नागमती के विरह का वर्णन सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
जायसी का 'पद्मावत' अन्योक्ति है या समासोक्ति, इस विषय में विवाद है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि जायसी का 'पद्मावत' हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है।
Jayasi ke padmawat ka parichay prastut kijiye.
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