मुकुटधर पांडेय : छायावाद एवं पूर्ववर्ती काव्य प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. मुकुटधर पांडेय ने किस साहित्यिक स्थिति में काव्य रचना आरम्भ की?
उत्तर - आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने मुकुटधर पांडेय को अपने 'हिंदी साहित्य' के इतिहास में आधुनिक काल के द्वितीय उत्थान में स्थान दिया है। इस द्वितीय उत्थान की खड़ीबोली की कविताओं में दो बातों की कमी देखी जाती है - पहली कमी कल्पना के रंग का फीकापन और दूसरी कमी ह्रदय के वेग की स्पष्ट व्यंजना का अभाव। यह कमी ब्रजभाषा की कविता में मनोरंजन करने वालों को भी बहुत खटक रही थी और बंगला तथा अंग्रेजी पढ़ने वाले भी यह कमी अनुभव कर रहे थे। इस कमी को दूर करने के लिए कुछ कवि ब्रजभाषा की ललित पदावली खड़ी बोली में लाना चाहते थे। अंग्रेजी और बंगला की कविता से प्रभावित सुधीजन लाक्षणिक, वैचित्र्य-व्यंजक चित्र-विन्यास तथा रुचिकर अन्योक्तियाँ देखना चाहते थे। सरस्वती आदि पत्रिकाओं में बंगला भाषा के खड़ी बोली में किये पारसनाथ सिंह के अनुवाद सन 1910 में प्रकाशित होने लगे थे। इन कारणों से खड़ी बोली की कविता से असंतुष्ट कुछ कवियों ने कविता को नया रूप देना आरम्भ कर दिया था। इसमें कल्पना की प्रधानता थी। इस प्रकार के कवियों में मैथिलीशरण गुप्त, मुकुटधर पांडेय और बद्रीनाथ झा प्रमुख थे। इन तीनों की कविताओं का वस्तु-विन्यास विश्रृंखल और शीर्षक अनूठे थे। इनकी भाषा चित्रमयी, कोमल और व्यंजक थी।
प्रश्न 2. श्री मुकुटधर पाण्डेय की कविताओं की विशेषता उदाहरण सहित प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर - श्री मुकुटधर पाण्डेय का चिंतन परम्परा और समय दोनों से अप्रभावित था। वे न किसी विशेष पद्धति पर चल रहे थे और न किसी वाद से बंधे हुए थे। वे तो खड़ीबोली की कविता को जनप्रिय और रुचिकर बनाना चाहते थे। उन्होंने पाठक की रूचि और समय की मांग को पहचाना। इससे पहले मुकुटधर पाण्डेय ने अनेक पद्धतियों अर्थात काव्यरचना शैलियों को अपनाया था। इस समय अर्थात सन 1910 के आस-पास उन्होंने अपनी काव्य रचना शैली में पूरा परिवर्तन कर दिया और पूर्णरूप से नवीन रचना पद्धति अपनायी। आपकी इस प्रकार की रचनाओं 'आँसू', 'उद्गार' आदि ने सम्पादकों और पाठकों का ध्यान आकर्षित किया। उदाहरण के रूप में मुकुटधर पाण्डेय की कविता की कुछ पंक्तियों में प्रस्तुत हैं -
हुआ प्रकाश तपोमय मग में,
मिला मुझे तू तत्क्षण जग में।
दम्पत्ति के मधुमय विलास में,
शिशु के स्वप्नोत्पन्न ह्यास में।
वन्य कुसुम के शुचि सुवास में,
या शिशु के क्रीड़ा प्रयास में।
Mukutdhar pandey chhayavad ewm poorvavarti kavya prashna uttar drut path ke kavi.
3. सन 1910 के आसपास खड़ीबोली की हिंदी कविता का जो नया रूप आरम्भ हुआ, उसमेंम, मुकुटधर पाण्डेय के योगदान को रेखांकित कीजिए।
उत्तर - कुछ कवि इस समय अर्थात सत्र 1910 के आस-पास जीवन और जगत के मध्य नवीन कविता के संचार के इच्छुक थे। ये कवि प्रकृति के साधारण और असाधारण दोनों रूपों पर प्रेम-पूर्ण दृष्टि डालकर इसके रहस्यपूर्ण सच्चे संकेतों की परीक्षा करके भाषा को अधिक चित्रात्मक, सजीव और मार्मिक रूप देकर, कविता का अकृत्रिम और स्वच्छंद मार्ग बना रहे थे। अब तक भक्ति के क्षेत्र में उपन्यास एकदेशीय था अथवा एक धर्म विशेष में प्रतिष्ठित था। इस भावना के स्थान पर ये कवि सार्वभौम भावना की ओर बढ़ रहे थे। इनकी कविता में सुन्दर एवं रहस्य्पूर्ण संकेत भी रहते थे। इस आधार पर हिंदी कविता की नयी आशा का प्रवर्तन करने में इन्ही कवियों को और विशेष रूप से मैथिलीशरण गुप्त तथा मुकुटधर पांडेय को माना जाता था। इस दृष्टि से छायावाद का रूप-रंग खड़ा करने वाले कवियों ने अंग्रेजी तथा बंगला की समीक्षाओं का कोई भय नहीं था। मुकुटधर पाण्डेय की कविता की चार पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं -
जब संध्या को हट जावेगी भीड़ महान,
तब जाकर मैं सुनाऊँगा निज गान।
शून्य कक्ष के अथवा कोने में ही एक,
बैठ तुम्हारा करूँ वहां नीरव अभिषेक।
प्रश्न 4. आधुनिक काल की हिन्दी कविता में छायावाद लाने का श्रेय जिन कवियों को है, उनमें मुकुटधर पाण्डेय की श्रेष्ठता सिद्ध कीजिए।
उत्तर- सन 1901 के आसपास अंग्रेजी और बंगला भाषाओं की समीक्षाओं में हिन्दी के छायावादी कवियों के सम्बन्ध में जो आंधी उठ रही थी, वह इस प्रकार थी—“इन कवियों के मन में एक आंधी उठ रही थी, जिससे आन्दोलित होकर ये उड़े जा रहे थे। इनमें एक नूतन वेदना की छटपटाहट थी, जिसमें सुख की नूतन अनुभूति भी छिपी हुई थी। रूढ़ियों के भार से दबी हुई युग की आत्मा अपनी अभिव्यक्ति के लिए हाथ-पैर मार रही थीं।” आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इसका विरोध करते हुए अपने 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' में लिखा है-“न कोई आँधी चल रही थी, न तूफान था। न नयी कसक थी, न वेदना थी। न प्राप्त युग की नाना परिस्थितियों का हृदय पर कोई नया आघात था। न उसका आहत नाद था। इन बातों का कुछ अर्थ तब हो सकता था, जब काव्य का प्रवाह ऐसी भूमियों की ओर मुड़ता, जिन पर ध्यान न दिया गया होता। छायावाद के पहले नये-नये मार्मिक विषयों की ओर हिन्दी कविता प्रवृत्त होती जा रही थी। कमी थी तो आवश्यक और व्यंजक शैली की तथा कल्पना और संवेदना के अधिक योग की। तात्पर्य यह है कि छायावाद जिस आकांक्षा का परिणाम था, उसका लक्ष्य केवल अभिव्यंजना की रोचक प्रणाली का विकास था जो धीरे-धीरे स्वतन्त्र ढर्रे पर मैथिलीशरण गुप्त, श्री मुकुटधर पाण्डेय आदि के द्वारा हो रहा था।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की इन पंक्तियों से स्पष्ट है कि हिन्दी में छायावादी कविता के आरम्भ में मुकुटधर पाण्डेय का विशेष योगदान है। छायावाद का विशाल प्रासाद जिस नींव पर खड़ा हुआ, उसमें एक ईंट ही नहीं, एक विशाल पाषाण खण्ड के रूप में मुकुटधर पाण्डेय भी थे। इस दृष्टि से मुकुटधर पाण्डेय का नाम छायावादी कविता के आदि हस्ताक्षरों में गिना जाना चाहिए।
प्रश्न 5. सिद्ध कीजिए कि आचार्य रामचन्द्र ने भी मुकुटधर पाण्डेय को हिन्दी कविता में छायावाद का जन्मदाता स्वीकार किया है।
उत्तर - ऐसे बहुत कम व्यक्ति है जो जन्मदाता की ओर दृष्टिपात करते हैं। अधिकांश लोगों की दृष्टि नये जन्मे बालक की ओर ही रहती है। ठीक यही परिभाषा मुकुटधर पाण्डेय के विषय में भी चरितार्थ होती है। निश्चित रूप से मुकुटधर पाण्डेय हिन्दी कविता में छायावाद के जन्मदाता है। यह बात अलग है कि बाद में छायावादी कविता उस मार्ग पर नहीं चली, जिसका आरम्भ श्री मुकुटधर पाण्डेय ने किया था। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने हिन्दी साहित्य के इतिहास में इस तथ्य को स्वीकार किया है और वे कारण भी बताये हैं, जिनसे प्रभावित होकर हिन्दी कविता दूसरे मार्ग पर चली। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' में लिखा है
"गुप्तजी और मुकुटधर पाण्डेय के द्वारा स्वच्छन्द नूतन धारा चल ही रही थी कि श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर की उन कविताओं की धूम मच गयी जो अधिकतर पाश्चात्य ढांचे का आध्यात्मिक रहस्यवाद लेकर चली थी। परन्तु ईसाई सन्तों के छायाभास तथा यूरोपीय काव्य क्षेत्र में प्रवर्तित आध्यात्मिक प्रतीकवाद (सिंबालिज्म) के अनुकरण पर रखी जाने के कारण बंगला में ऐसी कविताएँ छायावादी कही जाने लगी थी। यह वाद क्या प्रकट हुआ, एक बने-बनाये मार्ग का दरवाजा-सा खुल पड़ा और हिन्दी के कुछ नये कवि उधर एकबारगी झुक पड़े जो उनका अपना क्रमशः बनाया हुआ रास्ता नहीं था। इसका दूसरे साहित्यिक क्षेत्र में प्रकट होना, कई कवियों का एक साथ इस पर चल पड़ना और कुछ दिनों तक इसके भीतर अंग्रेजी और बंगला की पदावली का जगह-जगह ज्यों का त्यों अनुवाद रखा जाना, ये बातें मार्ग की स्वतन्त्र उद्भावना को सूचित नहीं करती।"
प्रश्न 6. सिद्ध कीजिए कि आधुनिक काल की कविता के आरम्भ में श्री मुकुटधर पाण्डेय की कविताओं का विशेष योगदान है।
उत्तर-आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने श्री मुकुटधर पाण्डेय को छायावादी हिन्दी कविता का जन्मदाता स्वीकर किया है। छायावादी कविता आधुनिक काल के तृतीय उत्थान में आती है। इस तृतीय उत्थान का आरम्भ सन 1918 में हुआ। इस समय तक प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त हो चुका था। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' में लिखा है—“यद्यपि कई वादों के कूद पड़ने के प्रेमगान की परिपाटी (लव लिरिक्स) का फैशन चल पड़ने के कारण अर्थभूमि का बहुत कुछ संकोच हो गया है और हमारे वर्तमान काव्य का बहुत-सा भाग कुछ रूढ़ियों को लेकर नूतन पथ ग्रहण करके कई कवि चले.....तृतीय उत्थान के आरम्भ में पं. मुकुटधर पाण्डेय की रचनाएँ छायावाद के पहले नूतन स्वच्छंद मार्ग निकाल रही थीं। मुकुटधर जी की रचनाएँ निरन्तर प्राणियों की गतिविधि का भी रहस्यपूर्ण परिचय देती हुई स्वाभाविक स्वच्छन्दता की ओर झुकती मिलेंगी। प्रकृति प्रांगण के चर-अचर प्राणियों को पूर्ण परिचय, उनकी गतिविधि पर आत्मीयता व्यंजक दृष्टिपात, सुख-दुःख में उनके साहचर्य की भावना, ये सब बातें स्वाभाविक स्वच्छन्दता के पदचिन्ह है। सर्वश्री सियाराम शरण गुप्त, सुभद्रा कुमारी चौहान, ठाकुर गुरुभक्त सिंह, उदय शंकर भट्ट इत्यादि कई विस्तृत अर्थभूमि पर स्वाभाविक स्वच्छन्दता का मर्मपथ ग्रहण कर चल रहे थे। ये न तो नवीनता का प्रदर्शन करने के लिए छन्दों का तिरस्कार करते हैं, न उन्हीं में एकबारगी बंधकर चलते हैं।"
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के इस कथन से स्पष्ट है कि मुकुटधर पाण्डेय ने ही सन 1918 के आस-पास हिन्दी कविता के लिए एक नवीन मार्ग बनाया जो समय की आवश्यकता थी। वह मार्ग हिन्दी कविता का अपना मार्ग था, बंगला अथवा अंग्रेजी कविता से उधार लिया हुआ नहीं था। इस आधार पर कहा जा सकता है कि पं. मुकुटधर पाण्डेय आधुनिक काल की हिन्दी कविता के सशक्त हस्ताक्षर हैं, वे छायावाद के जन्मदाता है और आधुनिक हिन्दी कविता में उनका विशेष स्थान है।
प्रश्न 7. हिन्दी कविता में छायावाद के आने में पं. मुकुटधर पाण्डेय की भूमिका निर्धारित कीजिए।
उत्तर- प्रथम विश्वयुद्ध सन 1914 से 1918 तक अर्थात् चार वर्ष तक चला। आचार्य, समीक्षक और आलोचक स्वीकार करते हैं कि छायावाद प्रथम विश्वयुद्ध के विनाश से उत्पन्न निराशा और कुण्ठा के कारण आरम्भ हुआ। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने हिन्दी साहित्य का इतिहास में छायावाद शीर्षक से लिखा है-
"संवत 1970 (सन 1913) तक किस प्रकार खड़ी बोली के पद्यों में ढलकर मंजने की अवस्था पार हुई और श्री मैथिलीशरण गुप्त, मुकुटधर पाण्डेय आदि कई कवि खड़ीबोली काव्य को अधिक कल्पनामय, चित्रमय और अन्तर्भाव व्यंजना रूप देने में प्रवृत्त हुए, यह कहा जा चुका है। उनके कुछ रहस्य भावापन्न प्रतीक मुक्तक भी दिखाये जा चुके है। ये किस प्रकार के कार्य क्षेत्र का प्रसार चाहते थे, प्रकृति की साधारण असाधारण वस्तुओं में अपने चिर सम्बन्ध का सच्चा मार्मिक अनुभव करते हुए चले थे, इसका भी निर्देश हो चुका है।"
यह स्वच्छन्द नूतन पद्धति अपना रास्ता निकाल रही थी कि रवीन्द्रनाथ की रहस्यात्मक कविताओं की धूम हुई और कई कवि एक साथ रहस्यवाद और प्रकृतिवाद या चित्र भाषावाद की कविताओं को ही एकान्त ध्येय बनाकर चल पड़े। चित्र भाषा या अभिव्यंजना पद्धति पर जब लक्ष्य टिक गया तब उसके प्रदर्शन के लिए लौकिक या अलौकिक प्रेम का क्षेत्र ही काफी समझा गया। इस बंधे हुए क्षेत्र के भीतर चलने वाले काव्य ने छायावाद का नाम ग्रहण किया।"
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के इस कथन से स्पष्ट है कि छायावाद की भूमिका मुकुटधर पाण्डेय ने ही आरम्भ की थी।
प्रश्न 8. पं. मुकुटधर पाण्डेय की कुछ काव्य-पंक्तियों का उदाहरण देकर सिद्ध कीजिए कि उनमें छायावाद के अंकुर दिखाई देते हैं, छायावाद नहीं।
उत्तर- पं. मुकुटधर पाण्डेय छायावादी कवि नहीं है, अपितु छायावाद के जन्मदाता है, छायावाद के लिए भूमि तैयार करने वाले हैं। छायावाद की सबसे बड़ी विशेषता है, प्रकृति पर मानवता का आरोप। इससे पहले तक प्रकृति केवल उद्दीपन रही थी, आलम्बन नहीं। छायावादी कवियों ने प्रकृति को आलम्बन बनाकर आकर्षक कविताओं की रचना की। डॉ. रामकुमार वर्मा की निम्नलिखित पंक्तियाँ तारों भरी रात पर मालिन का आरोप करती हैं -
इस सोते संसार बीच सजकर जगकर रजनी बाले।
कहाँ बेचने ले जाती हो, ये गजरे तारों वाले।।
पण्डित मुकुटधर पाण्डेय की कविताओं में प्रकृति पर मानवीयता का आरोप नहीं है, पर अलंकार के प्राचीन भाव होने की घोषणा करते हैं। हिन्दी में मानवीकरण अर्थात् प्रकृति को मानव का रूप प्रदान करना अंग्रेजी से आया और मुकुटधर पाण्डेय से बाद की बात है। अंग्रेजी में इसे 'परसॉनीफिकेशन' कहते हैं। पण्डित मुकुटधर पाण्डेय ने अपने जीवन को लघु तरणी अर्थात् नाव मानकर लिखा है -
मेरे जीवन की लघु तरणी,
आंखों के पानी में तर जा।
मेरे उर का छिपा खजाना,
अहंकार का भाव पुराना।
बना आज तू मुझे दिवाना,
तप्त श्वेत बूंदों में ढर जा।
स्पष्ट है कि यह छन्द योजना और अलंकार ग्रहण छायावाद की झलक प्रस्तुत करता है। इस आधार पर पण्डित मुकुटधर पाण्डेय को छायावाद का जन्मदाता कहा जा सकता है।
प्रश्न 9. मुकुटधर पाण्डेय छायावाद के जन्मदाता है, सिद्ध कीजिए।
उत्तर- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने छायावाद का आरम्भ संवत् 1970 (सन् 1913) से माना है। यह समय प्रथम विश्वयुद्ध से पहले का है, क्योंकि विश्वयुद्ध सन 1914 से आरम्भ हुआ। मुकुटधर पाण्डेय का रचना काल उन्होंने सन 1910 माना है। उस समय हिन्दी की जिस प्रकार की छन्द योजना, भाषा-व्यंजना आदि की आवश्यकता थी, उसी आधार पर आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' में उन्हें छायावाद का जन्मदाता माना है।
प्रश्न 10. मैथिलीशरण गुप्त और पं. मुकुटधर पाण्डेय की काव्य-रचना का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- मैथिलीशरण गुप्त की कविता में जहाँ देश-प्रेम की भावना प्रधान है, वहीं मुकुटधर ने असीम सत्ता की ओर संकेत किया है -
जब संध्या की हट जायेगी भीड़ महान्
तब जाकर मैं तुझे सुनाऊँगा निज गान।
शून्य कक्ष के अथवा कोने में ही एक,
बैठ तुम्हारा करूँ वहाँ नीरव अभिषेक।।
प्रश्न 11. स्पष्ट कीजिए कि मुकुटधर पाण्डेय ने काव्य-रचना में नूतन पद्धति अपनायी।
उत्तर- मैथिलीशरण गुप्त जी तो किसी विशेष पद्धति या वाद में न बँधकर कई पद्धतियों पर अब तक चले आ रहे थे, पर मुकुटधर पाण्डेय जी बराबर नूतन पद्धतियों पर चले। उनकी इस ढंग की प्रारम्भिक रचनाओं में 'आँसू', उद्गार इत्यादि ध्यान देने योग्य हैं। उदाहरण के रूप में 'आँसू' की कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं -
मेरे जीवन की लघु तरणी,
आंखों के पानी में तर जा।
प्रश्न 12. पण्डित मुकुटधर पाण्डेय की प्रकृति सम्बन्धी कविता की कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर- अभी तक छायावाद का आरम्भ नहीं हुआ था पर मुकुटधर पाण्डेय ने प्रकृति वर्णन इस रूप में किया है -
हुआ प्रकाश तमोमय नभ में,
मिला मुझे तू तत्क्षण जग में,
दम्पत्ति के मधुमय विलास में,
शिशु के स्वप्नोत्पन्न हास में,
वन्य कुसुम के शुचि सुवास में,
या शिशु क्रीड़ा के प्रयास में
प्रश्न 13. स्पष्ट कीजिए कि छायावाद की रोचक प्रणाली का विकास मुकुटधर पाण्डेय की कविताओं में धीरे-धीरे हो रहा था।
उत्तर - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने 'हिन्दी साहित्य का इतिहास में स्वीकार किया है कि छायावाद के पहले नये-नये मार्मिक विषयों की ओर हिन्दी कविता प्रवृत्त होती जा रही थी। कसर थी तो आवश्यक और व्यंजक शैली की, कल्पना और संवेदना के अधिक योग की। तात्पर्य यह है कि छायावाद जिस आकांक्षा का परिणाम था, उसका लक्ष्य केवल व्यंजना की रोचक प्रणाली का विकास था जो धीरे-धीरे अपने स्वतन्त्र ढर्रे पर भी मैथिलीशरण गुप्त, मुकुटधर पाण्डेय आदि के द्वारा हो रहा था।
प्रश्न 14. मुकुटधर पाण्डेय की ऐसी काव्य-पंक्तियाँ प्रस्तुत कीजिए, जिसमें रहस्यवाद के तत्वों का समावेश हो। उत्तर - मुकुटधर पाण्डेय की निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों में रहस्यवाद के तत्व का संकेत प्राप्त होता है -
मेरे जीवन की लघु तरणी,
आंखों के पानी में तर जा।
मेरे उर का छिपा खजाना,
अहंकार का भाव पुराना,
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