1. राम काव्य की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर -
रामभक्ति काव्यधारा की प्रमुख प्रवृत्तियाँ
भक्तिकाल की सगुण काव्यधारा में राम काव्य धारा का अपूर्व महत्व है। रामभक्ति धारा में अनेक कवि हुए, किन्तु राम भक्ति धारा का साहित्यिक महत्व अकेले तुलसीदास के कारण है। इस धारा के अन्य कवियों और तुलसीदास की में अन्तर तारागण और चन्द्रमा का नहीं, बल्कि तारागण और सूर्य का है। तुलसीदास की आभा के सामने ये साहित्याकाश में रहते हुए भी चमक न सके। इसलिए इस धारा का अध्ययन मुख्यतः तुलसीदास में ही केन्द्रित करना होगा। इस काव्य धारा की प्रमुख प्रवृत्तियाँ इस प्रकार हैं -
रामचरित प्रमुख विषय -राम काव्यधारा की प्रमुख विशेषता यह है कि इसके कवियों ने विष्णु के अवतार भगवान राम को ही अपनी कविता का विषय बनाया है। इसके राम शील, शक्ति और सौन्दर्य की साकार प्रतिभा है।
सेवक-सेव्य भाव की भक्ति - इस धारा के कवियों ने ज्ञान की अपेक्षा भक्ति को अधिक महत्व दिया है। इसलिए कहा गया है "ज्ञान कठिन है, भक्ति सरल।" इस काव्यधारा में कवियों की भक्ति दास्य भाव की है। उन्होंने स्वयं को भगवान राम का सेवक माना तथा राम को अपना स्वामी माना है। इस प्रकार की भक्ति के कारण ही इस काव्य में लघुता, दैन्यता, उदारता, आदर्शवादिता, नम्रता आदि भावों की प्रधानता दृष्टिगोचर होती है।
स्वांतः सुखाय की भावना - रामभक्ति काव्यधारा की एक प्रमुख प्रवृत्ति यह भी है कि इसमें अधिकांश रूप से कवियों ने स्वांतः सुखाय काव्यों की रचनाएँ की हैं। इन्होंने किसी राजा-महाराजा या विशिष्ट व्यक्ति का गुणगान नहीं किया।
तुलसी ने तो इस विषय में स्पष्ट घोषणा की है-
कीन्हे प्राकृत जन गुण माना।
सिर धुनि गिरा लागि पछिताना।।
समन्वय की भावना - राम काव्यधारा में समन्वय की भावना के दर्शन होते हैं। काव्यधारा के कवियों ने अपने समय हे प्रचलित विभिन्न मतों एवं विचारधारा का समन्वय स्थापित करके लोक कल्याण के मार्ग को आगे बढ़ाया। राम भक्त कवियों ने मुख्यतः सगुण एवं निर्गुण भक्ति के भेदभाव को दूर करने का प्रयत्न किया।
तुलसी ने स्पष्ट रूप से कहा है-
अगुनहि सगुनहि नहि कुछ भेदा।
रामभक्त कवियों ने ज्ञान, भक्ति और कर्म में सुन्दर समन्वय स्थापित किया। भाव यह है कि इस काव्यधारा के कवियों ने समन्वय की भावना को विशिष्ट रूप से प्रस्तुत किया है।
शिवम् की भावना - रामभक्ति काव्यधारा में शिवम की भावना अर्थात् लोक मंगल की भावना के दर्शन होते हैं। इस काव्य की यह प्रवृत्ति हिन्दी साहित्य की अपूर्व देन है। इस काव्य धारा के कवियों ने समाज को निवृत्ति की ओर अग्रसर नहीं किया, वरन् सामाजिक कर्त्तव्यों की पूर्ति करते हुए उच्च भूमि को प्राप्त करने की प्रेरणा प्रदान की है।
मर्यादा की प्रधानता - इस शाखा की एक प्रधान विशेषता यह है कि इसमें लोक मर्यादा को विशेष महत्व दिया गया है। उसी का परिणाम है कि इस काव्यधारा में भारतीय जीवन का मर्यादित और संयत रूप देखने को मिलता है। इसमें जिन पात्रो का चित्रण किया गया है, वे सदैव ही मर्यादा का ध्यान रखते हैं; जैसे-राम माता के सामने सीता को समझाने में संकोच करते हैं, राजा दशरय वचनों की मर्यादा में बँधे होने के कारण राम को न चाहते हुए भी वन जाने की आज्ञा देते हैं, सीता जी कोई बात मर्यादा के कारण ही अपनी सासों के समक्ष नहीं कह पाती हैं। इस काव्यधारा के कवियों ने श्रृंगार चित्रण निरूपण में भी मर्यादा का ध्यान रखा है।
आदर्शवादिता - राम काव्यधारा में मर्यादावाद के साथ-साथ जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आदर्शवादी सिद्धान्तों का निरूपण किया गया है। इसी का परिणाम है कि इस काव्यधारा में आदर्श स्वामी, सेवक, माता-पिता, भाई, राजा, गुरु, पत्नी, सखा तथा पूजा आदि के दर्शन होते हैं। राम आदर्श सम्राट हैं, अयोध्यावासी आदर्श प्रजा हैं, भरत आदर्श भाई तथा हनुमान आदर्श सेवक हैं। आदर्श पुत्र के गुण देखिए -
सुन जननी सोई सुत बड़भागी जो पितु मातु चरन अनुरागी।
रस योजना - विष्णु के अवतार पुरुषोत्तम राम के जीवन का समग्र वर्णन करने के लिए इस काव्य में श्रृंगार करुण, रौद्र, वात्सल्य, अद्भुत आदि रसों का सुन्दर परिपाक हुआ है। इस काव्यधारा के श्रृंगार रस में उच्छृंखलता और अश्लीलता के दर्शन नहीं होते हैं। मर्यादित श्रृंगारिक वर्णन का उदाहरण देखिए -
राम को रूप निहारित जानकी, कंगन के नग की परछाई।
यातॆ सबै सुधि भूलि गयी, कर टेक रही पल टारत नाही।।
चरित्रांकन - राम काव्य जिन पात्रों का कवियों ने समावेश किया है, उनका अत्यन्त सजीव और स्वभाविक रूप से चरित्रांकन किया है। राम काव्यधारा के कवियों ने अपने काव्य में सद् और असद् दोनों प्रकार के पात्रों का प्रयोग किया है। सद् पात्रों के अन्तर्गत राम, लक्ष्मण, भरत, दशरथ, सीता, कौशल्या आदि आते हैं। असत् पात्रों की श्रेणी में रावण, बाली, खर-दूषण आदि आते हैं।
जीवन को अनेकरूपता का वर्णन - राम काव्यधारा के कवियों ने मानव जीवन के प्रत्येक पक्ष पर कुछ प्रकाश अर डाला है। यदि राम काव्यधारा के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ 'रामचरितमानस' का अवलोकन करें तो उसमें जीवन की विविध समस्याओं और कर्तव्यों के समझने में बड़ी सफलता मिलती है। भाव यह है कि जीवन का ऐसा कोई भी पक्ष नहीं है, जिसका स्पर्श इस काव्यधारा के कवियों ने नहीं किया है।
अवतारवादी भावना - राम काव्यधारा में अवतारवादी भावना के भी दर्शन होते हैं। इस काव्यधारा के कवियों ने अपने आराध्य रामचन्द्रजी को सच्चिदानन्द ब्रह्म माना है। उनका विश्वास है कि भगवान राम ने अधर्म का विनाश करने के कि तथा भक्तों पर कृपा करने के लिए नर रूप धारण किया है -
उमा अखंड एक रघुराई। नर गति भगत कृपालु दिखाई।।
प्रकृति चित्रण - राम काव्यधारा में प्रकृति चित्रण की छटा भी देखने को मिलती है। इस काव्यधारा के कवियों ने उद्दीपन, आलंकारिक, उपदेशात्मक और मानवीकरण के रूप में प्रकृति का चित्रण किया है। उपदेशात्मक रूप में प्रकृति चित्रण का एक उदाहरण देखिए -
बूँद अघात सहै गिरी कैसे, खल के वचन संत सह जैसे।
क्षुद्र नदि भरि चलि गतराई, जस धोरेउ धन खल उतराई ।।
अवधी एवं ब्रजभाषा का प्रयोग - इस काव्यधारा की विशेषता यह भी है कि इसमें अवधी और ब्रज दोनों ही भाषाओं का प्रयोग किया गया है। तुलसीदास ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ रामचरितमानस की रचना अवधी भाषा में की है। इसके अतिरिका इन्होंने विनयपत्रिका, कवितावली, गीतावली आदि की रचना के लिए ब्रज भाषा को अपनाया। इस काव्यधारा के कवियों का अवधी एवं ब्रज भाषा पर पूर्ण अधिकार था।
छन्द योजना - राम काव्यधारा के कवियों ने आदिकाल के छप्पय, सन्त काव्य के दोहा, सूफी काव्य के चौपाई छंदों को अपने काव्य में स्थान दिया। इसके अतिरिक्त इन कवियों ने सोरा, सवैया, घनाक्षरी, कुण्डलिया, तोमर, त्रिभंगी बैलें छन्दों का भी प्रयोग किया है। केशव की रामचन्द्रिका तो छन्दों का अजायबघर ही मानी जाती है।
अलंकार योजना - जिस प्रकार इस काव्यधारा के कवियों ने छन्दों के प्रयोग में विविधता का परिचय दिया है उसी प्रकार आचार्य केशवदास ने अलंकारों की रामचन्द्रिका में भरमार कर दी है। वैसे तुलसीदास के काव्य में प्रायः सभी अलंकार उपलब्ध हो जाते हैं, परन्तु उन्होंने अलंकारों का प्रयोग स्वाभाविक और सजीव रूप में किया है। इस काव्यधारा के कवियों ने अधिकांश रूप में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, प्रतीप, व्यतिरेक, अतिशयोक्ति आदि अलंकारों का प्रयोग किया है। उत्प्रेक्षा अलंकार का उदाहरण देखिए -
अधिक सनेह देह भई चोरी।
सरद् ससिह जनु चितव चकोरी।।
हिन्दी साहित्य में रामकाव्य धारा का अद्वितीय महत्व है। इस काव्यधारा को रामानुजाचार्य के परम शिष्य रामानंद ने जनता के सामने रखा। इसमें तुलसी, अग्रदास, नाभादास, केशवदास, सेनापति, प्राणचन्द्र चौहान आदि कवि हुए हैं। इस काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि श्री तुलसीदास जी थे। उनके द्वारा रचित 'रामचरितमानस' भक्त हृदय का प्राण है।
श्री वियोगी हरि ने ठीक कहा है, "जिन्होंने चिर पिपासाकुल संसार संतृप्त पंथिकों के लिए सुशील सुधार-त्रोहास्विनी पुण्य सलिला रामभक्त मन्दाकिनी सी धवल धारा बहा दी, जिन्होंने साहित्य सेवियों के सम्मुख भगवती भाव कुंज कलिकाओं से अनुराग मकरन्द प्रस्तावित किया है, जिन्होंने साहित्य सेवियों के सम्मुख भगवती आरती की अप्रितम प्रतिमा प्रत्यक्ष कर दी है। भला उनका प्रातः स्मरणीय नाम किस अभागे अरसिक के हृदय पटल पर अंकित न होगा।
इस काव्यधारा ने रामचरितमानस समन्वय भावना, सेवक-सेव्य भाव की भक्ति, मर्यादा की प्रधानता, चरित्र अंकन, आदर्शवादिता, दार्शनिकता, शिवम् की भावना, स्वान्तः सुखाय रचनाएँ जैसी अनेक प्रवृत्तियों से हिन्दी साहित्य को सुशोभित किया। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि इस काव्यधारा का सांस्कृतिक और साहित्यिक दृष्टि से अपूर्व महत्व है।
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