1. रस से संबंधित साधारणीकरण का परिचय दीजिये।
उत्तर - पिछले पोस्ट में हमने रस के अंगों का विवेचन किया था आज के इस पोस्ट में हम रस से संबंधित साधारणीकरण की चर्चा कर्नेगे -
भरतमुनि के रससूत्र की व्याख्या के प्रसंग में साधारणीकरण की मान्यता आवश्यक हुई। नायक अथवा नायिका की रसानुभूति के प्रसंग में नाटक के आधार पर शंका हुई कि वास्तविक श्रृंगार रस और उसका स्थायी भाव रति अर्थात प्रेम तो दुष्यंत और शकुंतला में रहा था वे आज हैं नहीं। जो पात्र उनका अनुभव कर रहे हैं उनमें प्रेम या रति का होना असम्भव है। यदि उन्हें चित्र तुरंग न्याय से किसी प्रकार दुष्यंत और शकुंतला मान भी लें तो उनका प्रेम देखकर दर्शकों के मन में रति के स्थान पर लज्जा का भाव उदय होना चाहिए, क्योंकि भारतीय संस्कृति के अनुसार दूसरों की रति देखना लज्जा का विषय है।
साधारणीकरण शब्द का प्रयोग सबसे पहले भट्ट्नायक ने किया और भावकत्व व्यापार को साधारणीकरण माना।इनका विरोध करके आचार्य अभिनवगुप्त ने दो स्तरों पर साधारणीकरण स्वीकार किया। पहले स्तर पर विभावादि देश और काल के बंधन से मुक्त हो जाते हैं तथा दूसरे स्तर पर प्रमाता स्व और पर की चेतना से छुटकारा पा जाता है।आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने आलंबन न कहकर पहला साधारणीकरण आलंबनत्व को माना है।
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Ras se sambandhit sadharnikaran ka parichay dijiye.
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