1. रस के अंगों का विवेचन कीजिये।
उत्तर - सबसे पहले तो आपका स्वागत है मेरे ब्लॉग Question Field Hindi में आज के इस पोस्ट में हम रस के अंगों का विवेचन करने वाले हैं।
रस के अंगों का विवेचन करने से पहले आईये जाने रस क्या है उसके बारे में उन Viewers के लिए जो पहली बार इस पोस्ट को पढ़ रहे हैं।
# रस क्या है?
काव्य या गद्य के पठन-पाठन एवं श्रवण से जिस भी प्रकार की हमें अनुभूती होती है उसे रस कहते हैं यहां इसका अर्थ स्वाद अर्थात आनंद से है।
#रस के अंगों का विवेचन
आइये अब जाने रस के अंगों के बारे में जैसे की हमने बचपन से पढ़ा है रस के चार अंग होते हैं स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी भाव।
लेकिन भरतमुनि के रस सूत्र में स्थायी भाव का उल्लेख नहीं किया गया है। उन्होंने स्थायी भाव को ही प्रधान अंग माना है क्योंकि विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी भाव की सहायता से स्थायी भाव ही रस के रूप में परिवर्तित होते हैं।
(1) स्थयी भाव - रसों की संख्या के समान ही स्थायी भाव की संख्या भी ग्यारह प्रकार है। जो की इस प्रकार हैं - श्रृंगार रस का स्थायी भाव रति , हास्य का हास , करूण का शोक , रौद्र का क्रोध , भयानक का भय , वीभत्स का जुगुप्सा , वीर का उत्साह , विस्मय का अद्भुत , शांत का निर्वेद , वातसल्य का पुत्र प्रेम और भक्ति रस का स्थयी भाव भगवत भक्ति है।
(2) विभाव - विभाव के दो भेद हैं आलंबन और उद्दीपन। जिसके ह्रदय में स्थयी भाव सोया रहता है , वह आश्रय कहा जाता है। जिसके कारण आश्रय का स्थायी भाव रस का रूप धारण करता है, उसे विभाव कहते हैं। जैसे की हम एक उदाहरण देखें पुष्प वाटिक के प्रसंग में राम श्रृंगार रस के आश्रय और सीता विभाव है। आलंबन को चेष्टाएँ तथा देश और काल उद्दीपन विभाव कहलाते हैं, क्योंकि ये रस को उद्दीप्त करते हैं।
(3) व्यभिचारी भाव - चिंता , शंका , धैर्य , तर्क आदि अनेक व्यभिचारी भाव हैं। ये भाव किसी एक रस से संबंध नहीं रखते , इसलिए इन्हें संचारी या व्यभिचारी भाव कहते हैं। ये भाव उपस्थित होकर शांत हो जाते हैं।
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Ras ke ango ka vivechan kijiye?
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