शौरसेनी प्राकृत
शौरसेनी प्राकृत वह भाषा है जो मथुरा या शूरसेन जनपद में बोली जाती थी। यह प्राकृत भाषा के पांच प्रमुख भेद के अंतर्गत आने वाला पहला भाषा है। शौरसेनी प्राकृत मध्यकाल काल में उत्तरी भारत में बोली जाने वाली भाषा है। जो की अब मध्य प्रदेश के अंतर्गत आता है।
हिंदी भाषा और उसके विकास में महत्वपूर्ण भूमिका रहा इस भाषा का फिर इसके बाद अपभ्रंश का विकास हुआ जिसमें शौरसेनी अपभ्रंश हमें देखने को मिलता है।
इस प्रकार अपभ्रंश से ही हिंदी भाषा का उद्भव हुआ था। शौरसेनी अपभ्रंश से ही पश्चिमी हिंदी, राजस्थानी, गुजराती का विकास हुआ।
इसके अंतर्गत बोलियों का भी विकास हुआ जिसमें छत्तीसगढी बोली एक है। छत्तीसगढ़ी साहित्य का इतिहास एवं विकास इससे जुड़ा हुआ है। मागधी प्राकृत भाषा पूर्वी दिशा में और शौरसेनी प्राकृत के शिलालेख उत्तर-पश्चिम दिशा में मिलते हैं।
इन भाषाओं के मिलने से एक और मागधी भाषा का जन्म हुआ जिसे अर्धमागधी भाषा कहा जाता है और अर्धमागधी भाषा से ही वर्तमान छत्तीसगढ़ी भाषा का विकास हुआ है।
इन भाषाओं के मिलने से एक और मागधी भाषा का जन्म हुआ जिसे अर्धमागधी भाषा कहा जाता है और अर्धमागधी भाषा से ही वर्तमान छत्तीसगढ़ी भाषा का विकास हुआ है।
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