एम. ए. हिंदी
(प्रथम सेमेस्टर)
आदिकाल एवं पूर्व मध्यकाल
(प्रथम प्रश्न-पत्र)
इकाई-1. आदिकाल-इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
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प्रश्न 3. हिन्दी साहित्य के आदिकाल के आविर्भाव काल अथवा सीमा निर्धारण के सम्बन्ध में विभिन्न मतों का उल्लेख करते हुए अपना मत स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
आदिकाल की सीमा का निर्धारण
आदिकाल की सीमा का निर्धारण निम्न प्रकार है-
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1. प्रस्तावना - हिन्दी साहित्य के आदिकाल के नामकरण एवं सीमा निर्धारण के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद रहा है। कुछ विद्वान् इस काल का प्रारम्भ विक्रम की सातवीं शताब्दी से, कुछ नवीं शताब्दी से, कुछ दसवीं शताब्दी से तो कुछ विद्वान् आदिकाल का प्रारम्भ 13 वीं शताब्दी से मानते हैं।
2. आदिकाल का आरम्भ - (i) हिन्दी साहित्य के प्रथम इतिहास लेखकों के मतानुसार डॉ. जार्ज ग्रियर्सन तथा मिश्र बन्धुओं ने हिन्दी साहित्य का आरम्भ सम्वत् 700 वि.सं. से माना है। इसका आधार उन्होंने 'पुष्य' या 'पुण्ड' नामक कवि माना है। शिव सिंह सरोज ने 'पुष्य' को हिन्दी साहित्य का प्रथम कवि माना है। इस कवि का समय सम्वत् 713 वि.सं. के लगभग बताया गया है। यही कवि हिन्दी साहित्य का प्रथम कवि सिद्ध होता है। यद्यपि 'पुष्य' नामक कवि का कोई भी ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है फिर भी परवर्ती इतिहासकारों में डॉ. रामकुमार वर्मा ने भी इस कवि के अस्तित्व को स्वीकारा है। यही कारण है कि-
(ii) डॉ. रामकुमार वर्मा ने हिन्दी साहित्य का आरम्भ सम्वत् 750 से माना है।
(iii) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य का प्रारम्भ 1050 से 1375 विक्रमी सं. तक माना है। इस सम्बन्ध में उन्होंने निम्नलिखित तर्क दिए हैं-
(क) अपभ्रंश या प्राकृताभास हिन्दी का पहला पता बौद्ध के पद्यों से ज्ञात होता है।
(ख) यह समय सातवीं शताब्दी का अन्तिम काल है।
(ग) यही प्राकृताभास या पुरानी हिन्दी मुंज या भोज के समय से (सम्वत् 1050 के लगभग से) शुद्ध साहित्य में मिलती है।
(घ) अतः सम्वत् 1050 से ही हिन्दी का विकास होने लगता है।
(ङ) 'पुष्य' कवि को प्रमाण के अभाव में स्वीकार नहीं किया जा सकता इसलिए सम्वत् 750 से हिन्दी की शुरुआत नहीं मानी जा सकती।
निष्कर्ष देते हुए आचार्य रामचन्द्र शुक्ल लिखते हैं-"अतः हिन्दी साहित्य का आदिकाल सम्वत् 1050 से लेकर सम्वत् 1375 वि. तक अर्थात् महाराज भोज के समय से लेकर हम्मीर देव के समय से कुछ पीछे तक माना जा सकता है ।"
(iv) डॉ. श्यामसुन्दर दास व डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने आदिकाल का आरम्भ 11वीं शताब्दी से स्वीकार किया है। वैसे वास्तविक हिन्दी का आरम्भ आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी 15वीं शताब्दी से मानते हैं। उनका मत है-"दसवीं से चौदहवीं शताब्दी तक के समय में लोकभाषा में लिखित जो साहित्य उपलब्ध हुआ है, उसमें परिनिष्ठित अपभ्रंश से कुछ आगे बढ़ी हुई भाषा का रूप दिखाई देता है......... . वस्तुतः वह हिन्दी की आधुनिक बोलियों में से किसी-किसी के पूर्व रूप में ही उपलब्ध होता है। इसी समय से हिन्दी भाषा का आदिकाल माना जाता है।
(v) डॉ. गणपति चन्द्र गुप्त तथा डॉ. देवेन्द्र कुमार जैन का नाम उल्लेखनीय है। डॉ. गणपति चन्द्र गुप्त हिन्दी का विकास बारहवीं शताब्दी के अन्त से व डॉ. देवेन्द्र जैन 14वीं शताब्दी से मानते हैं। डॉ. गणपति चन्द्र गुप्त ने 'हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास' में स्पष्ट किया- "इन सभी दृष्टियों से बारहवीं सदी के अन्तिम चरण में हिन्दी साहित्य का अविर्भाव मानना तर्क संगत प्रतीत होता है। इससे पूर्व का समय जिसे हिन्दी के इतिहासकार आदिकाल, वीरगाथाकाल या चारणकाल आदि में स्थान देते रहे हैं, हिन्दी की प्रारम्भिक रचनाओं की दृष्टि से शून्य है। उसे इसलिए हिन्दी साहित्य की काल सीमाओं से बाहर समझना चाहिए। वस्तुतः हिन्दी साहित्य का आरम्भ यहीं (12 वीं सदी के अन्तिम चरण) से होता है।"
(vi) भाषा वैज्ञानिक डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी, डॉ. उदयनारायण तिवारी ने हिन्दी साहित्य का प्रारम्भ 13वीं शताब्दी से माना है।
(vii) साहित्य समीक्षक डॉ. नामवर सिंह 13वीं शताब्दी के अन्त से हिन्दी की शुरुआत मानते हैं। श्री पुरुषोत्तम प्रसाद आसोपा 'आदिकाल की भूमिका' नामक ग्रन्थ में अपना मत इस प्रकार स्पष्ट करते हैं-"यह सच है कि हिन्दी साहित्य का वास्तविक विकास चौदहवीं शताब्दी से शुरू हुआ, जब भक्त कवियों की पीयूषमयी वाणी समस्त जन-मन में हिलोरें लेने लगी थी।"
(viii) डॉ. नगेन्द्र ने सातवीं सदी के अन्त से थोड़ा पहले लगभग मध्य से, तथा
(ix) राहुल सांकृत्यायन ने 8वीं सती के अपभ्रंशों को पुरानी हिन्दी कहकर अपने सिद्ध सामंत युग का आरम्भ इसी काल से मान लिया और इस काल की सीमा 13वीं सदी मानी ।
(x) डॉ. शिवकुमार शर्मा हिन्दी भाषा का अस्तित्व 13वीं शताब्दी से मानते हुए लिखते है- “भाषा विज्ञान की दृष्टि से हिन्दी का विकास ग्राम्य या लौकिक अपभ्रंश तो तेरहवीं शताब्दी के लगभग निश्चित होता है अतः आधुनिक आर्य भाषा हिन्दी का अस्तित्त्व 13वीं सदी में स्वीकार करना नितान्त समीचीन प्रतीत होता है। ऐसी स्थिति में सम्वत् 1050 वि. सं. में हिन्दी का अस्तित्त्व और हिन्दी साहित्य का विकास मानना सर्वथा भ्रान्त है।"
इस प्रकार आदिकाल की पूर्वापर सीमा निर्धारण का प्रश्न अत्यन्त विवादास्पद रहा है।
3. समीक्षा - हिन्दी साहित्य के प्रादुर्भाव तथा नामकरण व आदिकाल के सीमा निर्धारण के सम्बन्ध में प्रस्तुत विभिन्न मतों में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल तथा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का मत मान्य रहा है। अतः आदिकाल का प्रारम्भ 10वीं शताब्दी से ही माना जाता है। इसी आधार पर हिन्दी साहित्य का अध्ययन अध्यापन होता है। हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा सोलह भागों में प्रकाशित 'हिन्दी साहित्य के इतिहास' का आधार यही मान्यता है।
कुछ विद्वानों ने 13वीं सदी भक्तिकाल से हिन्दी साहित्य का प्रारम्भ माना। यदि भक्तिकाल से ही साहित्य का अविर्भाव माना जाए तो निम्नलिखित समस्याएँ सामने आती हैं। श्री पुरुषोत्तम प्रसाद आसोपा ने आदिकाल की भूमिका में इन समस्याओं का उल्लेख किया है-
भक्तिकाल से हमारे हिन्दी साहित्य का आविर्भाव मानने पर यह स्पष्ट करना कठिन हो जायेगा कि भक्ति की अवधारण एकाएक कैसे हुई।
सूफी कवियों एवं तुलसी द्वारा अपनायी गई चरित काव्य पद्धति हिन्दी में प्रारम्भ से ही कैसे आ गई।
भक्तिकालीन कवियों द्वारा अपनायी गयी चरित काव्य, काव्य-रूढ़ियों, परम्पराओं का उत्स भी अज्ञात रहेगा।
साहित्य की भाषा में भी अपभ्रंश की प्रवृत्ति से भिन्न संस्कृत के तत्सम शब्दों को अपनाये जाने की प्रवृत्ति कैसे विकसित हुई।
काव्य रूपों की दृष्टि से तुलसी और कबीर का साहित्य वैविध्यपूर्ण है। उनके द्वारा अपनाए गए दोहा-चौपाई वाले चरित काव्य, कवित्त-सवैया, दोहों में धर्म तथा नीति के उपदेश, बरखै, सोहर आदि छन्द, लीला, विनय के पद, मंगल काव्य, चर्चरी काव्य आदि काव्य रूप प्रारम्भ से ही हिन्दी में कैसे विकसित हुए।
4. निष्कर्ष - इस प्रकार स्पष्ट है कि हिन्दी साहित्य का प्रारम्भ 13-14वीं शताब्दी भक्तिकाल से नहीं माना जा सकता। किसी भी भाषा के साहित्य का विकास शनैः-शनैः होता है एकदम प्रौढ़ता अथवा समृद्धि किसी में भी नहीं आती। यदि आदिकालीन साहित्य की उपेक्षा की जायेगी तो भक्तिकाल के साहित्य में जो प्रेम, भक्ति और दर्शन का समन्वय, सूक्ष्मता, वैशिष्ट्य और गाम्भीर्य आदि तत्व विद्यमान हैं, उन्हें कदापि साहित्य क्षेत्र में किया गया प्रथम प्रयास नहीं माना जा सकता। अतः आदिकालीन साहित्य का महत्वपूर्ण स्थान है।
राहुल सांकृत्यायन ने 'हिन्दी काव्यधारा' में आदिकालीन साहित्य की उपेक्षा से होने वाली हानि पर प्रकाश डालते हुए कहा है- “अपभ्रंश के कवियों को विस्मरण करना हमारे लिए हानि की वस्तु है। यही कवि हिन्दी काव्यधारा के प्रथम सृष्टा थे। उन्हें छोड़ देने के बीच के काल में हमारी बहुत हानि हुई है और आज भी उसकी सम्भावना है।" अतः आदिकाल का अस्तित्व अवश्य स्वीकार किया जाना चाहिए। इससे सिद्ध होता है कि हिन्दी साहित्य का प्रारम्भ दसवीं शताब्दी आदिकाल से ही मानना चाहिए।
यहां तक पढ़ने के लिए धन्यवाद अपना भविष्य बनाएं खुश रहें !
Hindi sahitya ke aadikal ke aavirbhav kal athva seema nirdharan ke sambandh me vibhinna maton ka ullekh karte huye apna mat spasht kijie.
aadikal ki sima ka nirdharan
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