दोस्तों सभी जानते हैं, की सभी जंतुओं में श्वसन की क्रिया होती है और श्वशन के माध्यम से ही सभी जीव जीवित रहते हैं। लेकिन श्वशन के साथ पानी भी आवश्यक होता है। तो आज हम बात करते हैं पौधों जल अवशोषण के बारे में सबसे पहले हम आपको बताते हैं।
पौधों जल अवशोषक के अंग
प्रायः पौधों में जल का अवशोषण मूल (जड़) के द्वारा होता है,लेकिन कुछ पौधों में जल का अवशोषण पत्तियों तथा तनों के द्वारा भी होता है। जलोद भीद (hydrophyte) पादपों (पौधों) में जल का अवशोषण प्रायः सामान्य सतह के द्वारा होता हैं।
वुड wood,1925 के अनुसार कुछ पौधों जैसे कोचिका बेवोसिया kochia baosia तथा रेगोडिया rhagodia आदि जल अवशोषण वायुमण्डल से करते हैं। इसी प्रकार का जल अवशोषण अंगूर (vits),चुकन्दर (beta), मूंग (phaseolus), बैगन (solanum), तथा मिर्च (Lycopersicum) में भी पाया जाता है।
इस प्रकार पत्तियों द्वारा जल का अंतर्ग्रहण निम्न बिंदुओं द्वारा प्रभावित होता है
- एपिडर्मिस तथा क्यूटिकिल की संरचना एवं पारगम्यता(permeability)
- पत्ती की सतह पर रोमों की उपस्थिति।
- एपिडर्मिस के समीप स्थित मृदुतक ( Parenchyma ) कोशिकाओं में जल की कमी।
पौधों में जल अवशोषण |
जल अवशोषित करने वाले अंग
पौधों में जल का अवशोषण जड़ की सम्पूर्ण सतह द्वारा नहीं होता है,अपितु मूल के सिरे ( ROOT TIP ) के समीप मूल रोमों (ROOT HAIR ) से होता है। मूल के सिरे को चार भागों में बाँटा जा सकता है।
1. मूल टोपी प्रदेश ( Root cap zone ) - यह मूल के सिरे पर एक आवरण के रूप में उपस्थित होता है जो मूल को मिट्टी के कणों से रक्षा करता है।
2. परविभाजी प्रदेश ( meristemetic zone ) - इस प्रदेश (क्षेत्र ) की कोशिकाएं लगातार विभाजित होती रहती हैं तथा विभाजित होकर नई कोशिकाएं बनती रहती हैं। इस प्रदेश की कोशिकाओं द्वारा श्वशन तथा खनिज लवणों का अवशोषण तीव्र गति से होता है।
3. दीर्घ प्रदेश (Zone of Elongation) - इस प्रदेश की कोशिकाएं जड़ की लम्बाई बढाती है।
4. मूल रोम प्रदेश ( root hair zone ) - यह प्रदेश(भाग) दीर्घी प्रदेश के ठीक पीछे होता है,जिस पर अनेक एक कोशिकीय मूल रोम पाए जाते हैं। इसी प्रदेश में मूल रोमों द्वारा सबसे अधिक जल का अवशोषण होता है। इस प्रदेश के ऊपर परिपक्व प्रदेश स्थित होता है।
जल अवशोषण की क्रिया विधि
पौधों में जल अवशोषण की क्रिया मूल रोमों द्वारा होती है। यह मूल रोम मिट्टी के कणों के सम्पर्क में रहते हैं तथा परासरण क्रिया से कोशिका जल का अवशोषण करते हैं। प्रत्येक मूल रोम में एक रिक्तिका होती है जो कोशिका रस से भरी रहती है। मूल रोम का कोशिका द्रव्य एक प्रकार की अर्धपारगम्य झिल्ली का कार्य करता है जिसमें होकर भूमि जल तथा लवणों के आयन अंदर विसरित होते हैं।
मूल रोम कोर्टेक्स कोशिकाओं से सम्बंधित रहते हैं। ये एंडोड़र्मिस तक फैले रहते हैं एण्डोर्मिस के भीतर की ओर पेरीसायकिल कुछ स्थानों पर प्रोटोजाइलम से जुड़ी रहती है। इस प्रकार मूल रोमों द्वारा जाइलम तक जल की गति होती रहती है। पौधों में जल अवशोषण की क्रिया दो प्रकार की होती है -
1. सक्रिय अवशोषण
यह प्रायः उन पौधों में होता हैं जिनकी मिट्टी में पानी की पर्याप्त मात्रा होती है अथवा पौधों में वाष्पोत्सर्जन बहुत कम होता है। सक्रिय अवशोषण निम्नलिखित दो विधियों द्वारा होता है
(i) सक्रिय अवशोषण के प्रासरणीय सिद्धांत -
मूल रोम मिट्टी से अन्तः परासरण द्वारा जल अवशोषण करते हैं जिससे मूल दाब बढ़ जाता है। परासरण सिद्धांत के अनुसार जल अवशोषण, प्रसरण दाब की प्रवणता के अनुसार होता है। यदि जाइलं रस का परासरण विभव , मृदा विलयन से अधिक है तो जल अवशोषण मूल के जाइलम द्वारा होने लगता है। इस सिद्धांत को सर्व प्रथम अटकिन्स 1916 तथा प्रीस्टले 1922 ने दिया था।
उन्होंने बताया की जल का अवशोषण मृदा जल तथा कोशिका रस के परासरणीय अंतर के फलस्वरूप होता है। प्रायः मृदा जल का परासरण दाब कम 1.ATM तथा कोशिका रस का अधिक 2 ATM होता है, अतः जल का अवशोषण स्वतः होता रहता है और कोई उपापचयी ऊर्जा की आवश्यकता नहीं होती तथा कोशिका रस का अधिक DP ( परासरण दाब ) होने से अर्धपारगम्य झिल्ली से अंतः परासरण द्वारा मृदा जल कोशिका रस में आ जाता है।
इस मत को अनेक वैज्ञानिकों ने मान्यता नहीं दिया क्योकि इस मत के अनुसार ऊर्जा की आवश्यकता नहीं होती है, किन्तु कोशिका में लवणों का सन्तुलन रखने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
विभिन्न वैज्ञानिकों का मत है की जल अवशोषण परासरण की क्रियाविधि द्वारा होता है, क्योंकि मूल दाब तथा जाइलम रस के उच्च परासरण दाब में घनिष्ट सम्बन्ध होता है। अटकीन्स 1916 का कथन है कि समीपस्थ परिन्काइमी कोशिकाएं जाइलम वेसिकल्स में शर्करा स्त्रावित करती है। प्रीस्टले 1922 के अनुसार कोशिकाओं के पदार्थ जो जाइलम अवयव को पृथक करते हैं आवश्यक विलय प्रदान करता है। एंडरसन एवं हाउस 1967 के अनुसार जीवित कोशिकाओं के जाइलम अवयवों द्वारा लवणों का अवशोषण होता है।
(ii) सक्रिय अवशोषण का अपरासरण सिद्धान्त
प्रसिद्ध वैज्ञानिको, बेनट क्लार्क आदि 1936 थीमेन 1951 ,बोगेन एवं प्रेल 1953 के अनुसार पौधों में सक्रिय जल अवशोषण नॉन ऑस्मोटीक विधि द्वारा होता है। उन्होंने बताया की जल का अवशोषण , सांद्रण प्रवणता के विपरीत होता है। इस प्रकार के सक्रिय अवशोषण के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। पौधों की जड़ों को यह ऊर्जा, मूल कोशिकाओं की सक्रिय उपापचयी क्रियाओं जैसे श्वसन द्वारा प्राप्त होती है।
2. निष्क्रिय अवशोषण
निष्क्रिय अवशोषण पौधों में जल की कमी तथा अधिक वाष्पोत्सर्जन वाली दशाओं में होता है जिससे पत्ती की कोशिकाओं का DPD अधिक हो जाता है। अतः ये कोशिकाएं जाइलम कोशिकाओं से जल खीचने लगती है जिसके फलस्वरूप जाइलम कोशिकाओं में तनाव उत्पन्न हो जाता है तथा कोर्टेक्स की कोशिकाओं में पानी खींचने लगता है।
इस क्रिया द्वारा कोर्टेक्स की कोशिकाओं में खिंचाव उत्पनन हो जाता है जो मिट्टी से पानी खींचने लगती है अर्थात निष्क्रिय अवशोषण में जल परासरण द्वारा अवशोषन नहीं होता है वरन् उत्पन्न तनाव के कारण जल का अवशोषण होता है। अतः जड़ों मे DPD उत्पन्न हो जाता है जो जड़ की एपीडर्मल कोशिकाओं से जाइलम कोशिकाओं तक बढ़ता चला जाता है।
उपरोक्त परिस्थितियों में जड़ रोम के कोशिका रस में कमी -3 से -5 तक बढ़ जाती है जबकि मृदा जल का DPD सदैव -1 बार से कम रहता है। मूल रोम के उच्च DPD के फलस्वरूप अन्तः प्रसारण द्वारा जल अवशोषण होता है।
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