Hello friends पिछले पोस्ट में हमें बात किया था मैथिलीशरण गुप्त द्वारा लिखित साकेत महाकाव्य की व्याख्या के बारे में आज इसकी चर्चा को आगे बढ़ाते हुए आइये बात करते हैं -
इसी काव्य की पात्र या कहें रामायण की मुख्य पात्र कैकेई के बारे में इसमें हम उनके चरित्र का चित्रण करेंगे तो आज हम कैकेई के चरित्र चित्रण की बात करेंगे कैसा था उनका स्वभाव कैसी थी उनकी मंसा इन सब के बारे में।
गुप्त जी का मानना है कि संसार के रंगमंच पर अभिनय करने के लिए जो पात्र उतरते हैं, उनमें से केवल कुछ सीखे सिखाए आते हैं। अधिकांश को यही सीखना पड़ता है, तात्पर्य है कि संसार में उत्पन्न अधिकांश मनुष्य मनुष्य ही होते हैं देवता नहीं वे मानव सुलभ दुर्बलता हूं से ग्रस्त होते हैं एवं उनके चरित्र परिस्थितियों के घात प्रतिघात से उत्कर्ष अपकर्ष को प्राप्त होते हैं।
इन्हें मानव पात्रों में से एक है कैकेई जो परिस्थिति के प्रभाव से अपने को मुक्त नहीं रख पाती किंतु अंत में उसके अंतर के संस्कार उसे अवनति के घर से बाहर निकालने में समर्थ होते हैं और फिर वहां हमारी दृष्टि में है और त्याज्य न रहकर सहानुभूति की पात्रा बन जाती हैं।
साकेत में गुप्त जी ने तिरस्कृत और लांक्षित कैकेई पर अत्यंत सहानुभूति से विचार किया है, युग-युग से पद दलित और अपमानित कैकेई के धूल दूसरी चरित्र चित्र को सहज संवेदना युक्त करो से उठाकर कवि ने अपनी लेखनी से उसमें त्याग साधुदा और पवित्रता के रंग भरे हैं।
डॉ नगेंद्र के शब्दों में युग युग की लांचा नारी को भव्य माता के रूप में देख जगत आज चकित है साकेत की कैकेई पर्स परिस्थितियों के घात प्रतिघात से प्रभावित होती हैं। दासी मंथरा उसके चरित्र के अपकर्ष का पथ प्रशस्त करती है और कैकेई परिस्थिति के प्रवाह में बह कर राम वन गमन के लिए उत्तरदाई बनती हैं।
परंतु राजा दशरथ की मृत्यु और उसके उपरांत भरत का छोड़ देना क्रोध और निवेदन उनके अंदर की शक्तियों को पुनः जागृत कर देते हैं और तब वहां अपने कुकृत्य के लिए ना केवल स्वयं को फटकारती है, अपितु राम के तथा संपूर्ण साकेत समाज के समक्ष क्षमा याचना भी करती है।
सरलता भी ऐसी है व्यर्थसमझ जो सके ना अर्थ अनर्थभरत को करके घर से त्याज्यराम को देते हैं नृप राज्य।
तो प्रस्तुत है इन बिंदुओं के आधार पर कैकेई का चरित्र चित्रण -
पुत्र प्रेमी -
वैसे तो वह राम को ही सबसे ज्यादा प्रेम करती हैं, लेकिन दासी मंथरा के बहकावे में आकर उन्होंने ऐसा किया ऐसा रामचरित मानस के आधार पर कहा जा सकता है। लेकिन सोचने की बात यह भी है की स्वयं राम ने माता कैकेई के प्रति जब भरत ने अपशब्द कहे थे तब उसे भी नकार दिया था। राम वन भेजने के पीछे और भी कारण बताये जाते जैसे की एक ऋषि के द्वारा कैकेई को बताना की यदि कोई चौदह साल तक दशरथ के बाद राज करेगा तो निश्चय ही इस वंश का नास हो जाएगा। तो कई लोगों का कहना है की कैकई ने शायद इसीलिए ऐसा किया। तो यहां पर यह सिद्ध होता है की वन केवल पुत्र प्रेमी थीं बल्कि वह वंश की रक्षा भी करना चाहती थीं।
स्नेह मयी -
कैकेई सबसे ज्यादा प्रेम राम को करती थी कैकेई यह जानती थीं की जब राम वन को जाएंगी तो उन्हें बहुत कष्ट होगा पर फिर भी उन्होंने ऐसा किया क्योकि डर था। उस ऋषि की बात को वह भूल नहीं पाई थी तथा वह नहीं चाहती थीं की राम उनके वंश के विनाश का कारण बने और वह यह भी नहीं चाहती थी की भरत राज गद्दी पर बैठे और हुआ भी ऐसा ही राम के वन गमन के पश्चात राम के चरण पादुका को भरत ने राज सिंहासन पर रखा और स्वयं कुश के आसान पर बैठे थे और वहीं से राज काज को सम्हाला था। इसी प्रकार मंथरा से वह कई बार राम के प्रति लड़ चुकी थी। फिर भी आखिर में उन्हें राम को वनवास भेजना ही पड़ा।
स्वार्थी -
पुत्र प्रेम को स्वार्थी कहें या क्या कहें यह समझ नही आता लेकिन उन्होंने पुत्र प्रेम के कारण ही और रघुकुल की रक्षा के लिए ऐसा किया था। जिसकी वजह से उनके पुत्र ने उन पर लांक्षन लगाया था। और उसके बावजूद राम ने कैकेई को कुछ न कहने की सलाह भरत को दी थी। उन्हें पता था की इसके पीछे जरूर कोई न कोई कारण है।
घमंड -
जब बात अपने पर आ जाती है और अपने वंश की रक्षा पर आ जाती है तो रघुकुल की रक्षा के लिए उन्होंने शायद घमंडी कहलाना भी उचित समझा और वह इस कदर अपने-आप को निचे झुकाते चली गई की आखिर में उसके पुत्र ने भी उसको तिरस्कृत किया। दशरथ के द्वारा वरदान मांगने के अनुरोध पर ऐसा वरदान मांगने के बाद का दृश्य देखें तो ये रूप झकता है जिसमें वह सिर्फ भरत के मोह को प्रदर्शित कर रही है लेकिन ऐसा बिलकुल नही है वह राम से भी उतना ही प्रेम करती थीं।
साहसी -
जब एक बार युद्ध में राजा दसरथ की सहायता कैकेई ने की थी तब राजा दसरथ ने उन्हें वरदान देने का वादा किया था यह क्यों किया था? बेसक उनकी बाहदुरी को देखकर उन्होंने ऐसा किया था। युद्ध के दौरान जब राजा दसरथ के रथ के पहिये का कील निकल गया था तब उन्होंने राजा दसरथ के सहयता के लिए अपनी हाँथ की अंगुली को उस रथ के पहिये को निकलने से रोका था। और अपना साहस तथा प्रेम उन्होंने दसरथ के प्रति दिखाया था।
निडर -
कैकेई जो भी बात करती थी निडर होकर करती थीं यहां मैथलीशरण के कविता में भी देखा जा सकता है। मंथरा के बहकावे में आकर उन्होंने जो कुछ भी किया उसके लिए वह शर्मिंदा थीं। पूरी सहजता और निडरता के साथ उन्होंने अपने अपराध को स्वीकार किया और राम से माफी भी मांगी। वह किसी भी बात को लेकर निडर रहती थीं ज्यादा भाउकता उनकी संवादों में देखने को नहीं मिलता है।
सारांश -
उपर्युक्त साकेत महाकाव्य के और रामचरित मानस के अच्छे तरिके से अध्ययन करने पर यह कह पाना की कैकेई का चरित्र कैसा था? यह विचार करने योग्य है क्योकि कई जगहों पर न केवल रचनाकारों ने बल्कि राम ने भी कैकेई के संदर्भ में अच्छी बातें कहीं हैं। इस प्रकार यह एक दुरूह कार्य है। जिसे की अध्ययन करके ही समझा जा सकता है।
मेरा नाम खिलावन पटेल है मैं हिंदी साहित्य और कम्प्यूटर का विधार्थी हूँ मैं जब भी किसी हिंदी साहित्य के किसी विषय के बारे में इंटरनेट पर कोई चीज ढूंढने की कोशिश करता हूँ और मुझे कोई ऐसी चीज मिल जाती है। जिसमें सुधार करने की आवश्यकता होती है तो मैं अवश्य सहयोग देता हूँ साथ ही मैं डीजल मैकेनिक जैसे विषय पर भी ब्लॉग लिखता हूँ मेरे ब्लॉग का लिंक निचे है।
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