1. किसी समाचर-पत्र के लिए सम्पादकीय का महत्व क्या है? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर - सम्पादकीय या अग्रलेख किसी भी समाचार-पत्र के समादक द्वारा लिखे गए लेख को कहा जाता है। समाचार-पत्र में यह लेख नियत पृष्ठ पर प्रकाशित किये जाने की प्रथा है। यह पृष्ठ दूसरा हो सकता है, या फिर तीसरा, चौथा, पाँचवां या मध्य पृष्ठ। समाचार-पत्र की विषय सामग्रीय का नियोजन और उसके लिए नियत किये गए पृष्ठ विभाजन का स्वरूप समाचार-पत्र की पृष्ठ संख्या के आधार पर उसके सम्पादन विभाग द्वारा निश्चित कर दिया जाता है। यह कार्य समाचार-पत्र के नियमित पाठकों की सुविधा के लिए किया जाता है, ताकि वह अपनी रूचि के अनुकूल सामग्री का अवलोकन करने के लिए निर्धारित पृष्ठ को समाचार-पत्र प्राप्त होते ही देख सकें। स्वभाववश हर पाठक सबसे पहले समाचार-पत्र में अपनी रूचि की सामग्री ही पढ़ने को उत्सुक होता है।
प्रायः सम्पादकीय सामाजिक घटनाओं, देशी व विदेशी हालातों, प्रशासनिक नीतियों-व्यवस्थाओं, राजनीतिक या सामाजिक समस्याओं आदि पर चिंतन-मनन और विमर्श करने वाला लेख होता है। सम्पादक महोदय किस सीमा में अपने वैचारिक संदेश का प्रसारण करे, यह बात नीति रूप में समाचार-पत्र के क्षेत्रीय प्रसार के दायरे को स्पर्श करती हुई होती है। यदि समाचार-पत्र का प्रसारण क्षेत्र स्थानीय होता है तो सम्पादक महोदय का दायित्व होता है कि वह स्थानीय जनता की समस्याओं पर, जो मुख्य रूप से स्थानीय प्रशासन, समाजिक दशा-परिवेश या घटनात्मक परिदृश्यों से संबंधित हो विचार करें, क्योंकि समाचार-पत्र की अपनी प्रसार शक्ति के अनुसार लक्ष्य-वेध करने का उद्देश्य इस नीति से सिद्ध होता है। वस्तुतः अपने प्रसार-क्षेत्र की उस दशा का निरूपण करना जो क्षेत्रीय जनता के लिए समस्या के रूप में किसी कारण उत्पन्न हो रही होती है, प्रकाश में लाना समाचार-पत्रों का कर्तव्य तथा उन लोगों को चैतन्य करना, जिनकी अक्षमता, मूर्खता, अकुशलता, अनाचारिता या व्यवहार से ऐसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं, धर्म होता है।
सम्पादक महोदय अपने सम्पादकीय के रूप में प्राप्त अस्त्र से उस लक्ष्य को भेदने की चेष्टा करते हैं, जिसकी ओर से असंस्कृत, असुविधाजन, अप्रिय या अवांछनीय समस्याओं को पैदा करने वाले स्वेक्षाचारी या अक्षम लोग आहत हो सकें और सीधे मार्ग पर आ जाएँ। निश्चित रूप से अधिकांशतः प्रशासनिक अधिकारी या समाज को उद्वेलित करने वाले अन्य लोग आर्थिक शक्ति राज शक्तिया लोक शक्तिपाकर स्वेच्छाचारी हो जाते हैं और अपने आचार या कर्तव्य को भूलकर बिना किसी की परवाह किये कुछ भी करते रहकर सामाजिक या प्रशासनिक विरूपता पैदा करते हैं।
प्राचीनकाल में जब समाचार पत्र नहीं थे, ऐसी अनाचारी स्थिति की चर्चा घर-घर से उठकर गलियों-मोहल्लों में फ़ैल जाया करती थी और जनता के विक्षोभ को प्रकट करती थी, परन्तु जब समाचार-पत्रों का प्रकाशन होने लगा तो जन-विक्षोभ को प्रकट करती थी, परन्तु जब समाचार-पत्रों का प्रकाशन होने लगा तो जन-विक्षोभ या असुविधाओं के लिए उत्तरदायी लोगों पर सम्पादकीय अस्त्र से प्रहार करना उनका कर्तव्य हो गया। प्रायः यह कार्य सम्पादक लोग अपने सम्पादकीय या अग्रलेखों द्वारा ही करते हैं। वस्तुतः यही पत्रकारिता का उद्देश्य भी है।
Kisi samachar-patra ke liye sampadakiya ka mahatva kya hai? sankshep me likhiye.
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