1. कोदूराम दलित के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर लेख लिखिए।
कोदूराम दलित : Koduram Dalit
उत्तर - कोदूराम दलित के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर लेख इस प्रकार प्रस्तुत है -
दुर्ग के रहने वाले कोदूराम दलित छत्तीसगढ़ साहित्य में अपना एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। उन्होंने स्वयं अपने परिचय रूप में यह पंक्तियां लिखी हैं -
मोरा गवंईहा नाम, भुलाहू झन गा भइया।
जनजहिति खातिर गढ़े हवंव मैं ये कुंडलिया।
शउक मुहूँ ला घलो हवय, कविता गढ़ई के।
करथव काम दुरुग माँ मैं लड़का पढ़ई के।।
भाव पक्ष - बाल साहित्य एवं व्यंग्य-विनोद लिखने में दलित जी की दक्षता अनुपम है। राष्ट्रीय भावों से उनका कवि-आवेश अत्यंत जागृत है। वह हर भारतवासी को एक आदर्श रूप में देखना चाहते हैं, संभवत: इसी कारण उपदेशात्मक प्रवृत्ति आपकी कविता में पग-पग पर दिखाई पड़ती है। सामयिक विषयों पर भी उनकी कलम ने चमत्कार सिद्धि प्राप्त की है। लोक प्रचलन के दृश्यों को चित्रित करने में वह सिद्धहस्त हैं।
घाम-दिन गहस, आस बरखा के दिन,
सनन-सनन चलेपवन लहरिया।
छाये रथे अकास-मां, चारों खूँट, धुवां साही,
बरखा के बादर निच्चट भिष्म करिया।।
चमकय बिजली, गरजे धर घेरि-बेरी,
बरसे मसूर-धार पानी छर-छरिया।
भर मैं खवाई खोधरा, कुंवा डोल-डांगर "औ",
टिप टिप ले भरगे-नदी, नरवा, तरिया।।
नश्त्य, गीत, ढोल, मंजीरों का भी कवि ने प्रयोग किया है -
ढोलक बजायै, मस्त होके अल्हा गाय, रोज,
इंहा-उहां कनको गँवइया-सहरिया।
रूख-तरी जायें, झुला-झूलै सुख पाउं अउ,
कजरी-मल्हार खूब सुनाय सुन्दरिया।।
नांगर चलायं खेत जा-जाके किसान मन,
बोयं धान कोदो, गायै करमा ददरिया।
उनके काव्य में गाँव की अलग खान-पान आदि भी दृष्टव्य दिखाई पड़ते हैं -
भाजी टोरे बर खेत-खार 'औ' बियारा जाये।
नान-नान टूरा-टूरी मन धर-धर के।
केनी, मुसकेनी, गंडरू, चरोटा, पथरिया,
मंचरिया भाजी लायं ओली भर भर के।।
मछरी मारे ला जायं ढ़ीमर केंवट मन,
तरिया 'औ' नदिया मां फांदा धर-धर के।
कला पक्ष - आपकी भाषा अत्यंत सरल, मुहावरेदार तथा सहज जन संस्कृति के अनुकूल है। अलंकारादि प्रयोग के प्रति इनका विशेष आग्रह नहीं दृष्टिगत होता है। यत्र-तत्र पारंपरिक अलंकारों के प्रयोग मिल जाते हैं। इनमें राष्ट्रीयता की भावना सर्वोपरि है।
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कोदूराम दलित का जन्म 1910 में जिला दुर्ग के टिकरी गांव में हुआ था।
गांधीवादी कोदूराम प्राइमरी स्कूल के मास्टर थे उनकी रचनाएं करीब 800 है पर ज्यादातर अप्रकाशित हैं। कवि सम्मेलन में कोदूराम जी अपनी हास्य व्यंग रचनाएं सुनाकर बेहद हँसाते थे। उनकी रचनाओं में छत्तीसगढ़ी लोकोक्तियों का प्रयोग बड़े स्वभाविक और सुन्दर तरीके से हुआ करता था।
उनकी रचनाएँ -
ठिसयानी गोठ
कनवा समधी,
अलहन,
दू विमाताउ, हमर देस,
कृष्ण जन्म,
बाल निबंध कथा कहानी,
छतीसगढ़ी शब्द भण्डार और लोकोक्ति।
उनकी रचनाओं में छत्तीसगढ़ का गांव का जीवन बड़ा सुंदर झलकता है - चऊ मास
गीलें होंगे मांटी, चिखला बनिस धुरी हर,
बपुरी बसुधा के बताइस पियास हर।
हरियागे भुइयां सुग्घर मखेलमलसाही,
जाठिमसहे बन, उल्होईस कांदी-घास हर।।
जोहत रहिन गंज दिन ले जेकर बांट,
खेतीलक्ष्मन के पूरन होंगे आस हर।
सुरुज लजा के झांके बपुरा-ह-कभू-कभू
"रस बरसइया आइस चउमास हर।।"
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