संस्कृत काव्यशास्त्र के अनुसार काव्य के भेद अथवा प्रकार बताइए।

1. संस्कृत काव्यशास्त्र के अनुसार काव्य के भेद अथवा प्रकार बताइए। 

उत्तर - संस्कृत काव्यशास्त्र की बात करें तो संस्कृत के आचार्यों ने सबसे पहले काव्य के दो भेद - (1) प्रबंध काव्य और (2) मुक्तक काव्य, स्वीकार किये हैं।

प्रबंध काव्य का आधार कथानक होता है। 

मुक्तक काव्य का कथानक से संबंध नहीं होता है। इसके बाद 

प्रबंध काव्य के दो भेद - 1. महाकाव्य और 2. खंडकाव्य किये गए हैं। महाकाव्य के भिन्न-भिन्न आचार्यों ने अनेक लक्षण किये हैं। इनमें प्रमुख हैं -

सर्गबद्ध होना, महान चरित्रों से सुशोभित होना, विशाल-आकार, जटिल शब्दों का अभाव, अर्थ सौष्ठव से सम्पन्न, अलंकारों से युक्त सत्पुरुष पर आश्रित होना चाहिए। 

इसके अतिरिक्त उसमें मंत्रणा, दूत प्रेषण, अभिधा, युद्ध, नायक का अभ्युदय एवं पांच संधियों का निर्वाह होना चाहिए। 

महाकाव्य में नायक का वर्णन पहले और प्रतिनायक का बाद में होना चाहिए। इसमें एक रस प्रमुख तथा शेष रस अप्रधान रूप में होने चाहिए। लौकिक व्यवहार के साथ-साथ नायक को आरम्भ से अंत तक दिखाना चाहिए। 

    खंडकाव्य में महाकाव्य के कुछ ही लक्षणों का निर्वाह होता है -

खण्डकाव्यं भवेत्काव्यस्यैक देशानुसारि च। 

    इसके अतिरिक्त चम्पू काव्य भी होता है, जिसमें गद्य और पद्य दोनों का समावेश होता है। गद्य-काव्य में कथा और आख्यायिका के दो प्रकार होते हैं। 

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Sanskrit kavyshastra ke anusar kavya ke bhed athva prakar bataiye?

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