1. संस्कृत के आचार्यों के अनुसार काव्य के प्रयोजनों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर - काव्य के प्रयोजनों पर भरतमुनि ने विचार किया और लोकहित अथवा लोकमंगल को काव्य रचना का प्रमुख प्रयोजन स्वीकार किया।
इसके बाद आचार्य भामह ने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति को काव्य का प्रयोजन स्वीकार किया।
आचार्य वामन ने काव्य प्रयोजनों के दृष्ट और अदृष्ट दो भाग किये। उन्होंने दृष्ट के अंतर्गत प्रीति और अदृष्ट प्रयोजन के अंतर्गत कीर्ति को स्वीकार किया।
आचार्य दण्डी ने काव्य के प्रयोजनों की चर्चा नहीं की है।
आचार्य कुंतक ने काव्य रचना के प्रयोजन के रूप में आह्लाद की उत्पत्ति और धर्म आदि की सिद्धि को माना है।
आचार्य रुद्रट ने स्थायी यश धन-प्राप्ति, विपत्ति नाश, आनंद की प्राप्ति, आप्त कामना और पुरुषार्थ चतुष्टय को काव्य का प्रयोजन बताया है।
आचार्य अभिनवगुप्त के अनुसार प्रीति काव्य के प्रयोजन हैं।
आचार्य राजशेखर ने सामाजिक दृष्टि से काव्य का प्रयोजन आनंद की प्राप्ति और कवि की दृष्टि से अक्षय कीर्ति माना है।
पंडितराज जगन्नाथ ने प्रीति अर्थात आनन्द के अतिरिक्त गुरु, राजा और देवता की प्रसन्नता को काव्य का प्रयोजन माना है।
आचार्य मम्मट ने यश, अर्थ (धन), व्यवहार ज्ञान, अशिव का विनाश, तुरन्त आनंद की प्राप्ति और प्रेयशी के समान उपदेश को काव्य प्रयोजन स्वीकार किया है।
आपको जानकारी कैसी लगी अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें।
Sanskrit ke aacharyo ke anusar kavya ke prayojano par prakash daliye?
Post a Comment