प्रश्न 10. ध्वनि सिद्धांत के स्वरूप का वर्णन कीजिए।
ध्वनि सिद्धांत के स्वरूप
उत्तर- भारतीय आचार्य आनन्दवर्द्धन ने ध्वनि को काव्य की आत्मा घोषित किया है। भरतमुनि, भामह, दण्डी और वामन ने भी ध्वनि को मान्यता प्रदान की है। इनमें से किसी ने भी ध्वनि को काव्य की आत्मा नहीं कहा है। अलंकारवादी आचार्य भामह ने उक्ति वैचित्र्य को काव्य का जीवनाधायक तत्व माना है। आचार्य भामह ने वक्रोक्त्ति की परिभाषा करते हुए कहा है 'शब्द और अर्थ की विलक्षणता ही वक्रोक्ति है।' किसी बात को घुमा-फिरा कर कहने से कथन में वक्रता आ जाती है। आचार्य अभिनवगुप्त ने वक्रोक्ति को परिभाषित करते हुए कहा है -
प्रतीयमानं पुनरन्यदेव वस्त्वस्ति वाणीषु महाकवीनाम्।
यत्तत् प्रसिद्धावयवातिरेक्तं विभातिलावण्य मिवांगनासु।।
(जिस प्रकार नायिका के मुख, नाक, कान आदि अनेक अवयव होते हैं, किन्तु लावण्य का कोई अवयव नहीं होता। फिर भी वह सभी अवयवों से स्फुटित होने वाला प्रधान तत्व है। इसी प्रकार प्रतीयमान अर्थ किसी शब्द का उद्वेलित अर्थ नहीं होता, किन्तु सभी शब्दों के संकेत से स्फुटित होता है।)
आचार्य आनन्दवर्द्धन के अनुसार जहाँ अर्थ अपने आपको और शब्द अपने अर्थ को गुणीभूत करके अभिव्यक्त करते हैं, उस विशेष काव्य को विद्वान ध्वनि कहते हैं।
Dwani siddhant ke swaroop ka warnan kijiye?
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