प्रश्न 3.रीति की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -
रीति की अवधारणा
रीति सम्प्रदाय के प्रवर्तक आचार्य वामन ने रीति को " काव्य की आत्मा " स्वीकार करते हुए घोषणा की -
रीतिरात्मा काव्यस्य
भरतमुनि ने चार प्रकार की रीति - आवन्ती, दक्षिणात्मा, पाँचाली और ऑन्गमागधी स्वीकार की है। अग्निपुराणकार ने भी रीति की संख्या चार मानी है। उनके अनुसार रीति के भेद वैदर्भी, गौड़ी, पाँचाली और लाटी हैं।
आचार्य वाणभट्ट ने रीति का नाम तो नहीं लिया है , पर चार भागों में भाषा का जो निम्नलिखित रूप बताया है, वह रीति ही है -
" उत्तर दिशा के लोग श्लेष बहुल, पश्चिम दिशा के लोग अर्थमात्र , दक्षिण दिशा के लोग उत्प्रेक्षामय और गौड़ देश के लोग आडम्बर वाली भाषा बोलते हैं। "
आचार्य वामन ने विशिष्ट पद रचना को रीति कहा है। विशेष तात्पर्य है - गुणों का अपने में समावेश करना। गुण वास्तव में शब्द के होते हैं।
इसी आधार पर आचार्य मम्मट ने रीति के भेद न बताकर गुणों के तीन भेद - प्रसाद, ओज और माधुर्य बताये हैं। अग्निपुराणकार ने बोलने की कला को रीति कहा है।
' सरस्वती कंठाभरण ' के रचयिता महाराज भोज ने रीतियों को मार्ग कहा है। राजशेखर ने अपने ग्रंथ ' काव्यमीमांसा ' में रीति का अधिकारी सुवर्णनाम को बताया है।
Riti ki avdharna spashta kijiye?
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