प्रश्न 2. अलंकारों के वर्गीकरण का परिचय दीजिए।
उत्तर -
अलंकारों के वर्गीकरण का परिचय
काव्यशास्त्र में रससूत्र की प्रस्तुति सबसे पहले भरतमुनि ने की है और उन्हें रसवादी आचार्य माना जाता है, पर उन्होंने काव्य की आत्मा को नहीं बताया। सबसे पहले काव्य की आत्मा अलंकार को बताया गया। यह कार्य अलंकारवादी आचार्य भामह ने किया।
अलंकारवादी आचार्यों में दण्डी को सबसे पहले माना जाता है। उन्होंने अलंकारों की संख्या 37 मानी है। दण्डी के बाद अलंकारवादी आचार्य भामह हुए।
इन्होने दण्डी के कुछ अलंकारों को माना कुछ को नहीं माना। इन्होने अपनी ओर से 6 नए अलंकार प्रस्तुत किए। भामह के बाद अलंकारवादी आचार्यों में उद्भट का नाम आता है।
इन्होने आचार्य भामह के कुछ अलंकारों को मान्य और कुछ को अमान्य करते हुए अपनी ओर से 7 नए अलंकार प्रस्तुत किये। उद्भट के बाद अलंकारवादी आचार्य वामन हुए।
इन्होने दण्डी के 13 और भामह के दो अलंकारों को न मानते हुए तीन नवीन अलंकार प्रस्तुत किए। अलंकारों का पहली बार वर्गीकरण आचार्य रुद्रट ने किया।
उन्होंने अलंकारों के दो भेद शब्दालंकार करते हुए अलंकारों की संख्या 62 तक पहुँचा दी। अलंकारों का वर्गीकरण करने वाले दूसरे आचार्य महाराज भोज माने जाते हैं।
उन्होंने अलंकारों के तीन वर्ग किये - शब्द वर्ग, अर्थ वर्ग और अभय वर्ग। इन्होने अलंकारों की संख्या 69 की।
अलंकारों का वर्गीकरण करने वाले तीसरे आचार्य रुय्यक हैं। उन्होंने 75 अलंकार स्वीकार किये। इन्होने अलंकारों का वर्गीकरण शुद्ध और अशुद्ध दो खंडों में करके इनके भी अनेक उपखण्ड किये।
Alankaron ke vargikaran ka parichay dijiye?
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