प्रश्न 8. वक्रोक्ति के भेदों पर प्रकाश डालिए।
वक्रोक्ति के भेद
उत्तर- वक्रोक्ति को अलंकार मानने वाले सबसे पहले आचार्य भामह हैं। उन्होंने इसे अतिशयोक्ति का पर्याय माना है।
आचार्य भामह ने वक्रोक्ति को काव्य की आत्मा न कहकर काव्य का जीवनाचायक तत्व माना है। जीवनाधायक तत्व का अर्थ लगभग आत्मा ही है।
वक्रोक्ति को काव्य की आत्मा मानने वाले आचार्य कुन्तक ने इसके निम्नलिखित छ भेद किये हैं -
- वर्ण वक्रता - यहाँ आचार्य कुन्तक का वर्ण से अभिप्राय प्राण-व्यंजना से है। एक-दो या अधिक वर्णों का बार-बार प्रयोग वर्ण वक्रता है।
- पद-पूर्वार्द्ध वक्रता - शब्द या पद के आरम्भ में उत्पन्न वक्रता पद-पूर्वार्द्ध वक्रता कहलाती है। आचार्य कुन्तक ने इसके भी आठ भेद किये हैं।
- पद-परार्द्ध वक्रता - जिस वक्रता का सम्बन्ध पद या शब्द के बाद वाले भाग से होता है, उसे पद-परार्द्ध वक्रता कहते हैं।
- वाक्य वक्रता - जहाँ वक्रता का आधार पूरा वाक्य होता है, वहां वाक्य वक्रता मानी जाती है।
- प्रकरण वक्रता - इसका तात्पर्य प्रसंग सम्बन्धी वक्रता से है। आचार्य कुंतक ने इसके भी चार भेद किये हैं।
- प्रबन्ध वक्रता - प्रबन्ध शब्द का अर्थ विशाल कथानक पर आधारित रचना से है । इसके भी छः भेद हैं।
wakrokti ke bhedo par prakash daliye
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