प्रश्न 7. वक्रोक्ति सिद्धांत की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
वक्रोक्ति सिद्धांत की अवधारणा
उत्तर- वक्रोक्ति शब्द का सामान्य अर्थ टेढ़ा अथवा आस्वाभाविक कथन है। संस्कृत साहित्य में वक्रोक्ति शब्द वाक् छल, क्रीड़ा-कलाप तथा हास-परिहास के अर्थ में भी प्रयोग किया जाता है। आचार्य कुन्तक ने वक्रोक्ति को काव्य की आत्मा माना है। इससे पूर्व किसी आचार्य ने वक्रोक्ति की चर्चा नहीं की है। आचार्य कुन्तक के अनुसार वैदग्ध्यभंगीभणिति अर्थात् चतुर कवि का कर्म कुशलता से कथन है। उन्होंने वक्रोक्ति को अलंकार अर्थात् शोभा बढाने वाला माना है। आचार्य कुन्तक ने वक्रोक्ति के छः वेद माने हैं -
(1) वर्णविन्यास वक्रता, (2) पद-पूर्वार्द्ध वक्रता, (3) पद-परार्द्ध वक्रता, (4) वाक्य वक्रता, (5) प्रकरण वक्रता, (6) प्रबंध वक्रता।
वक्रोक्ति का इतिहास अथर्ववेद से आरम्भ होता है। आचार्य भामह ने अपने काव्यालंकार में अलंकार को काव्य का सर्वस्व मानते हुए वक्रोक्ति को काव्य का प्राण माना है। आचार्य दण्डी ने काव्य को स्वभावोक्ति और वक्रोक्ति दो भागों में बांटा है। आचार्य रुद्रट ने वक्रोक्ति को शब्दालंकार के अन्तर्गत रखकर इसके दो भेद-काकू और श्लेष किये हैं ।
Wakrokti siddhant ki awdharna par prakash daliye.
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