हिन्दी साहित्य के इतिहास की पुनर्लेखन की समस्या पर विचार कीजिए।

एम. ए. हिंदी 

(प्रथम सेमेस्टर)

आदिकाल एवं पूर्व मध्यकाल 

(प्रथम प्रश्न-पत्र)

 इकाई-1. आदिकाल-इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 4. हिन्दी साहित्य के इतिहास की पुनर्लेखन की समस्या पर विचार कीजिए।

अथवा

    हिन्दी साहित्य के इतिहास-लेखन की आधारभूत सामग्री एवं क्रमिक विकास का वर्णन कीजिए। 

Table of Content

  1. आधारभूत सामग्री
  2. निष्कर्ष

उत्तर - आधारभूत सामग्री - हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखने वाले विद्वानों ने जिस आधारभूत सामग्री का प्रायः उपयोग किया है, उसे दो वर्गों के अन्तर्गत परिगणित किया जा सकता है - 1. अन्तःसाक्ष्य अथवा साहित्य के परिचय ग्रन्थों से प्राप्त सामग्री, 2. बहिर्साक्ष्य अर्थात् साहित्येत्तर क्षेत्रों से उपलब्ध सामग्री डॉ. रामकुमार वर्मा ने अपने हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास शीर्षक ग्रन्थ में अन्तः साक्ष्य के अन्तर्गत निम्नलिखित ग्रन्थों का उल्लेख किया है-

    1. गोकुल नाथ कृत 'चौरासी वैणव की वार्ता' तथा 'दो सौ बावन वैष्णव की वार्ता', 2. नाभादास कृत 'भक्तमाल', 3. गुरु अर्जुन देव कृत, 'श्री गुरु ग्रन्थ साहब', 4. बाबा बेनीमाधव दास कृत 'गोसाई माला', 5. ध्रुवदास कृत 'भक्त नामावली', 6. तुलसी (मानसकार तुलसी नहीं) नामक व्यक्ति कृत 'कवि-माला', 7. कालिदास त्रिवेदी कृत 'कालीदास हजार', 8. भिखारीदास कृत 'काव्य निर्णय', 9. बलदेव कृत 'सत्कवि-गिरा-गिलास', 10. सूदन कृत 'कवि नामावलि', 11. सुब्बासिंह कृत 'विद्वान मोद तरंगिणी', 12. कृष्णानन्द व्यास देव कृत 'सागरोदभव राग कल्पद्रुम', 13. सरदार कवि कृत 'श्रृंगार संग्रह', 14. ठाकुर प्रसाद त्रिपाठी कृत 'रस चन्द्रोदय', 15. 'गोकुल भूखन', 16. हरिश्चन्द्र कृत 'सुन्दरी तिलक', 17. शिवसिंह सेंगर कृत शिवसिंह सरोज, 18. देवी प्रसाद मुन्सिफ कृत 'कवि रत्न माला', 19. हफीजुल्ला खाँ कृत 'अनेक कवियों की कविताओं का संग्रह', 20. लाला भगवान दीन कृत संक्ति सरोवर है।

    बहिर्साक्ष्य के अन्तर्गत साहित्येतर ग्रन्थ, शिलाशेख, दानपात्र, ऐतिहासिक दस्तावेज, सुरक्षित पत्र पण्डो द्वारा संग्रहीत वंशावलियों के विवरण तथा धार्मिक तथा ऐतिहासिक महत्व के स्थान माने जाते हैं। इस वर्ग में गण्य ग्रन्थ निम्नलिखित हैं-

    ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व के स्थानों में प्रमुख हैं-1. कबीर चौरा, काशी, 2. असीघाट, काशी 3. कबीर की समाधि, बस्ती जिले में आभी नदी का तट, 4. जायसी की समाधि, अमेठी, 5. तुलसी की मूर्ति, राजापुर, 6. तुलसी के निवास स्थान के अवशेष, सोरों 7. नरसिंह जी का मन्दिर, सोरों, 8. केशवदास का स्थान, टीकमगढ़ और सागर ।

    उपर्युक्त आधारभूत सामग्री का जितना वस्तुगत प्रयोग इतिहास-लेखक कर सके हैं, उतनी ही अधिक प्रामाणिकता और वैज्ञानिकता उनके ग्रन्थों में दृष्टिगोचर होती है। फिर भी वैयक्तिक संस्पर्शो, रचनात्मक कल्पना एवं प्रमाणाधारित अनुमानों का प्रयोग साहित्य के इतिहास को स्वस्थ एवं सजीव रूप में प्रस्तुत करता है और साहित्यिक प्रवृत्तियों को सामाजिक परिप्रेक्ष्य में उभर कर स्पष्ट करता है। सामाजिक अतीत जहाँ साहित्य को अर्थ की गरिमा एवं सोद्देश्यता की दिशा प्रदान करता है, वहाँ साहित्य भी जातीय अतीत से रचनात्मक प्रेरणा लेकर वर्तमान एवं भविष्य को सँवारता चलता है।

    हिन्दी साहित्य का इतिहास प्रस्तुत करने के मौलिक प्रयास कम नहीं हुए हैं। सभी इतिहास ग्रन्थों में 'चर्चित चर्वणम्' अथवा 'गतानुगतिकता' की प्रवृत्ति होती तो इतिहास के निम्नलिखित ग्रन्थों में घिसे-पिटे तथ्यों की पुनरावृत्ति के अतिरिक्त कोई नई बात न मिलती। स्पष्ट है कि वस्तुस्थिति कुछ और है। निम्नलिखित ग्रन्थों में हिन्दी साहित्येतिहास के अतीत का साक्षात्कार प्रामाणिक किन्तु मौलिक परिप्रेक्ष्य में कराने के विविध प्रयास हुए हैं- 

1. गार्सा द तासी कृत 'इत्वार द ला लितेयत्यूर ऍदूई ऐ ऐंदुस्तानी' , (फ्रेंच में) (सन् 1839 ई.) 2. महेशदत्त शुक्लकृत 'भाषा काव्य संग्रह' (जीवन चरित सहित 1873 ई.), 3. शिव सिंह सैंगर कृत 'शिव सिंह सरोज' (1883 ई.), 4. सर जार्ज ए. ग्रियर्सन कृत 'माडर्न वरनाक्युलर लिटरेचर ऑफ हिन्दोस्तान' (1889 ई.), 5. बाबू श्यामसुन्दर दास कृत हिन्दी कोविद रत्न माला, (दो भाग) (1909 ई.), 6. मिश्र बन्धु कृत 'मिश्र-बन्धु विनोद' (1913 ई.), 7. मिश्र बन्धु कृत 'हिन्दी नव रत्न' (1910 ई.), 8. पं. रामनरेश त्रिपाठी कृत 'कविता कौमुदी' (1917 ई.), 9. एडविन ग्रीब्ज कृत 'एस्केच ऑफ हिन्दी लिटरेचर' (1917 ई.), 10. एफ. ई. के. कृत 'ए. हिस्ट्री आफ हिन्दी लिटरेचर' (1920 ई.), 11. वियोगी हरि कृत 'बृज माधुरी सार' (1923 ई.), 12. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शीकृत 'हिन्दी साहित्य विमर्श' (1923 ई.), (13) पं. बदरीनाथ भट्ट कृत 'हिन्दी' (1925 ई.), (14) अखौरी गंगा प्रसाद सिंह कृत 'हिन्दी के मुसलमान कवि' (1926 ई.), (15) गौरी शंकर द्विवेदी कृत 'सुकवि सरोज' (1927 ई.), (16) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल कृत 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' (1934 ई.), (17) डॉ. श्यामसुन्दर दास कृत 'हिन्दी भाषा और साहित्य' (1930 ई.), (18) पं. अयोध्या सिंह उपाध्याय कृत 'हिन्दी भाषा और उसके साहित्य का विकास' (1930 ई.), (19) सूर्यकान्त शास्त्री कृत 'हिन्दी साहित्य का विवेचनात्मक इतिहास' (1930 ई.), (20) डॉ. रमाशंकर शुक्ल कृत 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' (1934 ई.), (21) पं. कृष्ण शंकर शुक्ल कृत 'आधुनिक हिन्दी साहित्य का इतिहास' (1934 ई.), (22) राहुल सांकृत्यायन कृत 'पुरातत्व निबन्धावली' (1937 ई.), (23) डॉ. इन्द्रनाथ मदान कृत 'मॉडर्न हिन्दी लिटरेचर' (1939 ई.), (24) डॉ. हीरालाल जैन कृत 'जैन साहित्य की पूर्व पीठिका और हमारा अभ्युत्थान' (25) डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी कृत 'हिन्दी साहित्य की भूमिका' (1940 ई.), (26) ब्रजलाल कृत 'खड़ी बोली हिन्दी साहित्य के इतिहास' (1940 ई.), (27) भुवनेश्वरप्रसाद मिश्र माधव कृत 'संत साहित्य' (1941 ई.), (28) डॉ. लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय कृत 'आधुनिक हिन्दी साहित्य' (1941 ई.), (29) डॉ. श्रीकृष्णलाल कृत 'आधुनिक हिन्दी साहित्य का विकास', (30) डॉ. गणपतिचन्द्र गुप्त कृत 'हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास' (1965 ई.), (31) डॉ. त्रिभुजन सिंह कृत 'हिन्दी साहित्य : एक परिचय' (1968 ई.), (32) डॉ. जयकिशन प्रसाद खण्डेलवाल कृत 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' (1949 ई.), (33) डॉ. लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय कृत 'हिन्दी साहित्य का इतिहास', (34) डॉ. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र कृत 'हिन्दी साहित्य का अतीत' (1960 ई.), (35) पं. रामबहोरी शुक्ल एवं डॉ. भगीरथ मिश्र कृत 'हिन्दी साहित्य का उद्भव और विकास' (1956 ई.)।

    निष्कर्ष - उपर्युक्त प्रयासों के अतिरिक्त हिन्दी साहित्येतिहास के विभिन्न कालों एवं पक्षों का विविध दृष्टियों से जो रेखांकन शोध-प्रबन्धों के माध्यम से हुआ है, वह हिन्दी के अतीत को उसके अज्ञात पक्षों के साथ उजागर करने में सफल रहा है।

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प्रश्न 3. हिन्दी साहित्य के आदिकाल के आविर्भाव काल अथवा सीमा निर्धारण के सम्बन्ध में विभिन्न मतों का उल्लेख करते हुए अपना मत स्पष्ट कीजिए।

hindi sahitya ke itihas ki punarlekhan ki samasya par vichar kijiye

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