बसाई टुडू का चरित्र-चित्रण कीजिये।

1. बसाई टुडू का चरित्र-चित्रण कीजिये। 

बसाई टुडू का चरित्र-चित्रण

उत्तर - बसाई टुडू का चरित्र-चित्रण - बंगला भाषा की प्रसिद्ध उपन्यास लेखिका महाश्वेता देवी का नक्शल आंदोलन से जुड़ा उपन्यास 'अग्निगर्भ' एक चर्चित उपन्यास है जिसका प्रमुख चरित्र बसाई टुडू (टोरू) ही नायक पद के लिए उपर्युक्त पात्र है। उसकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं -

  1. परिचयात्मक विवरण 
  2. नक्सली आंदोलन से जुड़ाव 
  3. नेताओं के दुर्गुणों से वाकिफ 
  4. व्यावहारिक व्यक्ति 
  5. बुद्धिमान एवं कानून का जानकार 
  6. पुलिस का सिर दर्द 
  7. उद्देश्य के लिए समर्पित 
1. परिचयात्मक विवरण - बसाई टुडू बिहार का रहने वाला संथाल था तथा जब एक बुद्धिमान एवं जागरूक व्यक्ति था। कम्युनिष्ट पार्टी का सक्रिय सदस्य था तथा खेतिहर मजदूरों के लिए संघर्षरत था। जब उसने देखा की नेताओं को गरीबों की कोई चिंता नहीं है तब उसने पार्टी छोड़ दी और अपने ढंग से कार्य करने लगा। वह बाकली में पैदा हुआ। माँ-बाप जल्दी मर गए अतः बुआ के पास छः बरस तक रहा। वह जागुला किसान फ्रंट का कार्यकर्ता बना और तीस बरस तक क्षेत्र में घूम-घूमकर काम करने के कारण उस क्षेत्र में प्रत्येक घर में उसे घर का आदमी माना जाने लगा। 

बसाई पुलिस के लिए हौवा था। थाने का मुंशी देउकी मिसर तो उसके नाम से ही काँप जाता था। जाति-भेद से अपमानित एवं आहत होकर बसाई ने विद्रोह का रास्ता पकड़ा। अपने समाज की गरीबी देखकर वह दुःखी है। वह देखता था कि सांथाल लोग अकाल में चूहा, साँप खाते हैं और केवल लंगोटी पहनकर गुजारा करते थे। 

2. नक्शली आंदोलन से जुड़ाव - उसने जो छापामार लड़ाई प्रारम्भ की उससे पुलिस वाले उसे नक्सलवादी कहने लगे। तीस वर्षों तक गाँव-गाँव घूमता रहा जिससे सब उसे घर का आदमी कहने लगे थे। बसाई पुलिस के लिए हौवा था। पुलिस का मुंशी देउकी मिसिर उसके नाम से काँप जाता है। जाति भेद के अपमान से दुःखी बसाई विद्रोही बना था। अपनी बिरादरी के गरीबों को देखकर वह दुःखी रहता था। छुआछूत के नाम से उसे चिढ थी। जाति वर्ण के भेद को वह नहीं जानता था। उसकी कड़क आवाज लोगों को डरा देने के लिए काफी थी। 

3. नेताओं के दुर्गुणों से वाकिफ - बसाई जानता है कि सब नेता हरामी और बेईमान हैं। इसलिए कम्युनिस्ट पार्टी का समर्पित कार्यकर्ता दीर्घकाल तक रहने के बावजूद उसने पार्टी छोड़ दी। वह जानता है कि नेता बड़े होकर ऐशो आराम में लिप्त होते जाते हैं, गरीबों को भूल जाते हैं। उसके अनेकों अड्डे हैं। इन अड्डों का पता काली साँतरा को भी नहीं था, क्योंकि वह जानता था कि काली उसका दोस्त भले ही हो किन्तु पुलिस का मुखबिर भी है। नेताओं के प्रति अपने कटु अनुभवों को वह काली सांतरा के साथ इस प्रकार बाँटता है - "काली बाबू मैं खेत मजदूर हूँ। खेत मजदूरों के हक़ में किसी भी किसान सभा ने मदद नहीं की।"

वह बार-बार यह कहता है कि राजनीतिक दलों के व्यवहार से मेरा मन टूट चुका है। बसाई टुडू और काली सांतरा दोनों ही राजनैतिक दलों के नेताओं से दुःखी हैं क्योकि सभी पार्टियाँ कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करती हैं। बसाई टुडू कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य रहा है जबकि काली सांतरा कांग्रेस का सदस्य है, किन्तु वे जानते हैं कि सबका व्यवहार कार्यकर्ता के प्रति अच्छा नहीं है। युद्ध सैनिकों (कार्यकर्ताओं) के बल पर जीता जाता है पर उसका श्रेय सेनापति (नेता) ले जाते हैं। 

4. व्यवहारिक व्यक्ति - बसाई व्यवहार कुशल व्यक्ति है। काम कैसे निकाला जाता है, इसे वह अच्छी तरह जानता है। अवसर और व्यक्ति का पूरा लाभ उठाना उसे भली-भाँति आता है। जब जैसी जरूरत हो वह तब उसके अनुरूप अपने को बदल लेता है। 

5. बुद्धिमान एवं कानून का जानकार - बसाई को न्यूनतम मजदूरी कानून का पूरा ज्ञान है। वह जानता है कि यह सन 1953 में लागू हुआ। सन 1959 में इसमें संशोधन हुआ और सन 1968 में फिर रिवीजन हुआ। काली को वह जमींदारों का गुर्गा बताता है। बसाई की बातों में काली को बहुत कुछ प्राप्त हो रहा था, जमींदारों का शोषण कथा को वह अच्छी तरह समझता है। वह विवेक से काम करता है, आवेश में नहीं। वह काली से साफ कहता है कि मैं खेत मजदूरों की भलाई की उपेक्षा नहीं सह सका इसलिए पार्टी को छोड़ दिया। काम सीधी तरह हो तो ठीक अन्यथा उँगली टेढ़ी करना भी उसे आता है। कानून से यदि काम बनता है तो वह कानून की सहायता लेगा और जहां उँगली टेढ़ी करने से काम बनता हो वहाँ उसे ऐसा करने में देर नहीं लगेगी। वह काली सांतरा से साफ़ कहता है कि अपना काम बनाने के लिए यदि नक्सलों से उसे मदद लेनी पड़े तो लेगा और यदि तुमसे राजनीतिक मदद लेनी होगी तो उसमें भी गुरेज नहीं करूंगा। 

6. पुलिस जा सिर दर्द - बसाई पुलिस का सिर दर्द था। 1970 से 1976 तक पुलिस चार बार उसे मरा घोषित कर चुकी। चार बार उसकी लाश की पहचान कराई जा चुकी लेकिन पुलिस भी जानती है और जनता भी जानती है कि सचमुच में बसाई नहीं कोई और ही मरा होगा जिसकी लाश को बसाई की लाश कहकर पुलिस वाले प्रमोशन पा रहे हैं। 

7. उद्देश्य के लिए समर्पित - बसाई अपने उद्देश्य के लिए मारा गया। लस्कर बाहर से धान काटने वाले मजदूर ले आया जो उसे पसंद नहीं। वह मजदूरों को उनके खिलाफ भड़काता है। धक्का-मुक्की में धान के खेत में आग लग गई। सारा धान जल गया। लस्कर ने अपने घर में गुण्डे छिपा रखे थे जो बंदूक लेकर निकल आये। उन गुण्डों ने बसाई को मार डाला। अग्निगर्भ उपन्यास की चार अंतर्कथाओं में बसाई 'अग्निगर्भ' में उपस्थित है और पूरी कथा का केंद्रबिंदु है। 'एम्. डब्ल्यू. बनाम लाखिंद' में बसाई टोरू खेत मजदूरों के लिए न्यूनतम वेतन के लिए संघर्षरत दिखाई देता है। उसका रूख हिंसक है। मिनिमम वेज (न्यूनतम मजदूरी) न देने के कारण वह लाखिंद से स्पष्ट कहता है कि तुमको मार दूँगा। 

लस्कर जब बाहर से मजदूर ले आया तो बसाई मजदूरों के लिए संघर्ष करते हुए लस्कर के गुंडों और पुलिस की गोली से मारा गया। 

वह अपने वर्ग का सच्चा हितैषी था तथा शोषितों एवं पीड़ितों की और से संघर्ष करने वाला सच्चा वीर था। 

इस प्रकार बसाई खेत मजदूरों के हित में लड़ते-लड़ते कुर्बान हो गया। यही उसके जीवन की सार्थकता भी थी। 

लेखिका ने बसाई के रूप में एक ऐसे चरित्र की परिकल्पना की है जो एक उद्देश्य के लिए अपना बलिदान से देता है। 

वस्तुतः बसाई टुडू बार-बार मारा जाकर भी जनता के दिमाग में जीवित रहता है क्योकि वह 'अग्निबीज' है और यह सामंती कृषि व्यवस्था 'अग्निगर्भ' है जो ऐसे बसाई टुडुओं को निरंतर जन्म देती रहेगी यह बताना लेखिका का लक्ष्य है। 

बसाई टुडू एक संघर्षशील, विद्रोही प्रवित्ति का ऐसा व्यक्ति है जो अन्याय के खिलाफ लड़ता है। निश्चय ही वह एक प्रभावशाली पात्र के रूप में पाठकों को प्रभावित करता है। 

 basai tudu ka charitra-chitran kijiye?

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