भाषा और भाषा विज्ञान पर टिप्पणी लिखिए।

1. भाषा और भाषा विज्ञान पर टिप्पणी लिखिए। 

उत्तर - भाषा और भाषा विज्ञान में टिप्पणी इस प्रकार प्रस्तुत है -

भाषा 

भाषा का अर्थ और अभिप्राय - मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, इससे उसका एक दूसरे से सम्पर्क में आना स्वाभाविक है। सम्पर्क में आने से विचार विनिमय अनिवार्य है, अतः जिस साधन से यह विचार-विनिमय होता है, उसे ही भाषा की संज्ञा दी जाती है अथवा यह कहा जा सकता है की भावाभिव्यक्ति के साधन को सामान्य रूप से 'भाषा' कह दिया जाता है। इस प्रकार के अर्थों में पशु पक्षियों की बोली, इंगित आदि नही स्वीकार किये जाते हैं। 

पारस्परिक व्यवहार में विचार-विनिमय को दो साधनों से होता देखा जाता है - 1. शब्दों एवं वाक्यों द्वारा 2. संकेतों के द्वारा। शब्दों या वाक्यों के अलावा संकेत भी अपना मंतव्य दूसरों तक पहुंचाने में समर्थ होते हैं; यथा -

1. ग्रामीण अंचलों में हल्दी, सुपारी अथवा इलायची बांटना आदि वैवाहिक निमंत्रण का सूचक है। 

भाषा की उत्पत्ति पर विचार करते समय पाणिनि ने उसे 'भाष'  धातु से जोड़ा है जिसका अर्थ है - "भाष व्यक्तायां वाचि।" (व्यक्त वाणी का नाम भाषा है।) इसके बारे में यह भी स्पष्ट किया गया है - "भाष्यते व्यक्तवागरूपेण अभिव्यजयते इति भाषा। " (व्यक्त वाणी के रूप में जिसकी अभिव्यक्ति की जाती है, उसे भाषा कहते हैं।) अतः प्रचलित अर्थ में भाषा से तात्पर्य मानवीय सार्थक वाणी से है, जिसका प्रयोग मनुष्यों द्वारा सोचने और विचार प्रकट करने के लिए होता है। महर्षि पतंजलि ने भी भाषा का अर्थ यही दिया है - "व्य्क्ताः वाचि वर्णाः येषाम त इमे व्यक्तवाचः। " (वर्णों के द्वारा व्यक्त सार्थक वाणी का नाम भाषा है।)

भाषा की परिभाषा - 

कामता प्रसाद गुरु के अनुसार - भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचार दूसरों पर भलीं-भाँति प्रकट कर सकता है और दूसरों के विचार स्पष्टतया समझ सकता है। 

भाषा विज्ञान 

व्यवहारिक दृष्टि से भाषा की उपयोगिता स्वीकार करने पर भाषा के संबंध में अनेकानेक जिज्ञासाओं का उठना भी स्वाभाविक है। यथा - भाषा किसे कहते हैं? इसकी उत्पत्ति और विकास कैसे हुआ? भाषा का प्रयोग किस प्रकार होता है? इसके अवयव क्या हैं? इसकी उच्चारण विधि क्या है? विश्व की भाषाओँ का परस्पर संबंध क्या है? इन सब शंकाओं का समाधान भाषा-विज्ञान के माध्यम से ही हो सकता है। 

भाषा विज्ञान की परिभाषा - 

डॉ. भोलानाथ तिवारी के अनुसार - "भाषा-विज्ञान का सीधा अर्थ है - भाषा का विज्ञान और विज्ञान का अर्थ है -विशिष्ट ज्ञान। इस प्रकार भाषा का विशिष्ठ ज्ञान 'भाषा-विज्ञान' कहलायेगा।"

भाषा विज्ञान भाषा का अध्ययन करता है। उसे दो विभागों में बाँटा जा सकता है - 1. मुख्य विभाग तथा 2. गौण विभाग 

1. मुख्य विभाग - इसके अंतर्गत निम्न विज्ञान आते हैं जिनका अध्ययन भाषा विज्ञान के रूप में किया जाता है। 

  1. प्रोक्ति विज्ञान - अपने मंतव्य को सम्प्रेष्य बनाने के लिए प्रयुक्त वाक्यों के समुच्चय का नाम प्रोक्ति है। जिसमें एक से अधिक वाक्य आपस में सुसंबद्ध होकर एक इकाई बन जाते हैं। प्रोक्ति विज्ञान भाषा विज्ञान की वह शाखा है जिसमें प्रोक्ति का अध्ययन-विश्लेषण किया जाता है। इसके एक-कालिक, काल-क्रमिक, तुलनात्मक, व्यतिरेकी, सैद्धांतिक आदि अनेक भेद हैं।
  2. वाक्य विज्ञान - भाषा विज्ञान की वह शाखा जो वाक्य का अध्ययन विश्लेषण करती है। 
  3. रूप विज्ञान - रूप रचना का ही अध्ययन किया जाता है। 
  4. शब्द विज्ञान - शब्दों का अध्ययन किया जाता है। 
  5. ध्वनि विज्ञान - शब्दों का विश्लेषण करने पर हम ध्वनि पर पहुँचते हैं। उच्चारित ध्वनियों का अध्ययन इस विज्ञान के अंतर्गत किया जाता है। इसे स्वन विज्ञान भी कहा जाता है।
  6. अर्थ विज्ञान - इसके अंतर्गत भाषा के अर्थ-पक्ष का, अर्थात - अर्थ क्या है? अर्थ का निर्धारण कैसे होता है? अर्थ कितने प्रकार का होता है? अर्थ परिवर्तन के कौन-कौन से कारण हैं और इसकी दिशाओं का अध्ययन किया जाता है। 
2. गौण विभाग 

गौण का अर्थ केवल इतना है की ये विभाग मुख्य नही होते हैं, इसका यह अर्थ कदापि नहीं है की ये विभाग या शाखाएं महत्वपूर्ण नहीं हैं। सत्य तो यह है की इसका अपना अलग महत्व रहा है तथा है। कुछ प्रमुख गौण विभाग निम्न हैं -

लिपि विज्ञान, भाषा की उत्पत्ति की समस्या, भाषाओँ का वर्गीकरण, भौगोलिकता, भाषा-कालक्रम विज्ञान, भाषीय प्रागैतिहासिक खोज, शैली विज्ञान, सर्वेक्षण पद्धति आदि। 

उपर्युक्त गौण विभागों के अतिरिक्त कतिपय अन्य महत्वपूर्ण विषय भी भाषा-विज्ञान से संबंधित हैं। उदाहरणार्थ - सुर-विज्ञान, भाषा-शिक्षण-विज्ञान, बोली-शिक्षण-विज्ञान, भाषा की प्रकृति तथा भाषा-विज्ञान का इतिहास आदि। 

Bhasha aur bhasha vigyan par tippani likhiye?

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