स्वनिम विज्ञान के स्वरूप और उसकी अवधारणाओं को समझाइये?

1. स्वनिम विज्ञान के स्वरूप और उसकी अवधारणाओं को समझाइये?

उत्तर - स्वनिम विज्ञान का स्वरूप - स्वनिम विज्ञान भाषा विज्ञान की शाखा है जिसके अंतर्गत ध्वनि परिवर्तन के कारणों का अध्ययन किया जाता है। 

भाषा विशेष-संबंधों लघिष्टः सार्थको ध्वनिः। 

समध्वनेः प्रतिनिधित्वः भेदकृत स्वनिमो मतः।।

अर्थात स्वनिम किसी भाषा-विशेष से संबद्ध लघुत्तम सार्थक ध्वनि है। यह समान ध्वनियों की प्रतिनिधि होती है। अन्य ध्वनियों से किसी रूप में भिन्न होने के कारण इसको भेदक ध्वनि माना जाता है। 

स्वनिम विज्ञान (Phonemics) भाषा विज्ञान का एक प्रमुख अंग है। इसमें प्रत्येक भाषा के स्वनिमों (Phoneme) का वैज्ञानिक विश्लेषण-विवेचन पद्धति के द्वारा संकलन किया जाता है और उनके आधार पर प्रत्येक भाषा के लिए सुव्यवस्थित वैज्ञानिक-लिपि तैयार की जाती है। 

स्वनिम विज्ञान का संक्षिप्त इतिहास - स्वनिम (Phoneme) वर्णमाला के धोतित करता है। इसका इतिहास प्रायः उतना ही पुराना है, जितना वर्णमाला का। भाषा ध्वनि या वर्णमाला के अर्थ में 'फोनिम' शब्द का प्रयोग अवार्चीन है। फोनिम शब्द के जन्मदाता प्रो. हैवेट हैं। इन्होने 1876 ई. के लगभग इस शब्द का प्रयोग भाषा-ध्वनि के अर्थ में किया था। 

स्वनिम की परिभाषा - स्वनिम भाषा की वह लघुतम इकाई है, जो समान ध्वनियों का प्रतिनिधित्व करती है। यह अन्य ध्वनियों से भिन्न होती है। इसका संबंध किसी भाषा विशेष से होता है। यह परिभाषा बी ब्लोच एंड जी एल ट्रेगर ने दिया था। 

स्वनिम के भेद - स्वनिम या ध्वनिग्राम दो प्रकार के होते हैं -

  1. खंडय स्वनिम 
  2. अखण्डय स्वनिम 
1. खण्डय स्वनिम - खंड्य स्वनिम में वे ध्वनियाँ आती हैं, जिनको पृथक-पृथक बोला जा सकता है और स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त किया जा सकता है। इनकी स्वतंत्र सत्ता होती है। काल और प्रयत्न की दृष्टी से इनका विश्लेषण किया जाता है। खण्डय स्वनिम में स्वर और व्यंजन आते हैं। अ, इ, क, च आदि को स्वतंत्र रूप से पृथक-पृथक बोला और लिखा जा सकता है। खण्डय स्वनिम व्यक्त एवं विभाज्य है। 

2. अखण्डय स्वनिम - इसको खंडयेत्तर स्वनिम या खंडयेत्तर ध्वनिग्राम भी कहते हैं। अखण्डय स्वनिम को Prosodi Feature (छन्दः शास्त्रीय) विशेषताएँ माना जाता है इनकी स्वतंत्र सत्ता नहीं है। ये खण्डय स्वनिम पर निर्भर रखते हैं। इनमें मात्रा, सुर, संग्राम, बलाघात आदि आते हैं। अखंडय स्वनिम अव्यक्त और अविभाज्य है। 

स्वनिम विज्ञान की अवधारणा -

वैज्ञानिक दृष्टि से वायु-कणों के दबाव तथा विदलन से वयुमण्डलीय दबाव में आने वाले परिवर्तन या उतार-चढ़ाव का नाम 'ध्वनि' है। भाषा-विज्ञान में ध्वनि का यह व्यापक रूप ग्राह्य नहीं है। यही कारण है की सामान्य ध्वनि से भाषा ध्वनि को भिन्न रूप देने के लिए ही उसे भाषा-ध्वनि या वाक्स्वन नाम से अभिहित किया जाता है। इसकी परिभाषा इस प्रकार है - "उच्चारण तथा श्रवण की दृष्टि से स्वतंत्र व्यक्तित्व रखने वाली भाषा में प्रयुक्त ध्वनि की लघुत्तम इकाई का नाम ही भाषा-ध्वनि है।" इस ध्वनि के अध्ययन से संबंधित शास्त्र अथवा विज्ञान स्वन विज्ञान या ध्वनि-विज्ञान कहलाता है, जिसके पर्याय रूप में अंग्रेजी में फोनेटिक्स और फोनोलॉजी में कोई अर्थ भेद नहीं मानते ; परन्तु डॉ. भोलानाथ तिवारी इन दोनों में अंतर दिखाते  हुए लिखते हैं - "आजकल प्रायः फोनोटीएक्स का प्रयोग भाषा-विशेष की ध्वनियों की व्याख्या के लिए किया जाता है। "

इन दोनों अंग्रेजी शब्दों के लिए हिंदी पर्यायों की चर्चा के प्रसंग में डॉ. तिवारी का कथन है - "संस्कृत में ध्वनि-विज्ञान का पुराना नाम 'शिक्षाशास्त्र' था। हिंदी में इस प्रसंग में फोनेटिक्स के लिए मुख्यतः ध्वनि-विज्ञान, ध्वनि-शास्त्र अथवा स्वन-विज्ञान आदि तथा फनोलॉजी के लिए ध्वनि-प्रक्रिया, स्वन-प्रक्रिया या स्वन विज्ञान आदि नाम प्रयुक्त होते रहे हैं। एकरूपता की दृष्टि से फोनोलॉजी के लिए ध्वनि-प्रक्रिया, स्वन-प्रक्रिया, या स्वनिम-विज्ञान का प्रयोग किया जा सकता है।

Swanim vigyan ke svroop aur uski avdharnao ko samjhaeye?

Related Posts

Post a Comment