फीचर लेखन (रेडियो फीचर)
पृष्ठभूमि - फीचर लेखन आधुनिक लेखन की एक विधा है जो मीडिया के क्षेत्र में विकसित, पल्लवित और समृद्ध हुई।
फीचर क्या है? इस प्रश्न का एक सीधा सा उत्तर है कि -
फीचर एक ऐसा रचनात्मक और स्वानुभूतिपरक एक लेख है जिसका गठन किसी घटना विशेष को लेकर किया जाता है और उसका उद्देश्य मनोरंजन करना या किसी घटना विशेष की सूचना देना है।
यह अभिव्यक्ति का एक विशिष्ट रूप है, जिसमें ज्ञान, कल्पना, यथार्थ, घटनाओं, चमत्कार, कौतूहल, समस्या आदि सभी कुछ भावना प्रधान होता है और एक रसमय गद्य में बुना हुआ रहता है।
अर्थात कहने का एक ऐसा ढंग है कि जो पाठक या श्रोता के सामने उस स्थान, परिवेश और घटना का चित्र खड़ा हो जाए। इसलिए माना गया है कि फीचर नीरस, लंबा और गंभीर नहीं होना चाहिए।
फीचर की पृष्ठभूमि BBC से प्रारंभ होता है। बी.बी.सी. में 'फीचर' शब्द डॉक्यूमेंट्री (यथार्थ सूचनाओं पर आधारित रचना) के लिए प्रयुक्त हुआ। 60 वर्ष पूर्व बी.बी.सी. में 'फीचर' नाम से रचनाएं प्रसारित नहीं होती थी। इनके नाटक विभाग में रेडियो टेक्निक के बारे में नए-नए प्रयोग किए गए। उसे विशेष अवसरों पर विशेष कार्यक्रम आयोजित करने पड़ते थे। इन कार्यक्रमों को सामान्य कार्यक्रमों से अधिक प्रमुखता मिलती थी। लोग इन्हें "फीचर्ड प्रोग्राम" कहते थे। यहीं से रेडियो टेक्निक की दिशा में नये-नये प्रयोग किये गये। एक नये प्रकार की रचनाओं को "रेडियो डॉक्यूमेंट्री" नाम दिया गया। इस दिशा में और भी प्रयोग होते रहे। इससे रेडियो टेक्निक विकसित होती गई। अब बी.बी.सी. में नाटक विभाग से अलग एक विभाग है रेडियो डॉक्यूमेंट्री विभाग।
रेडियो डॉक्युमेंट्री शब्द ही फीचर में परिवर्तित हो गया। अंग्रेजी में यथार्थ घटनाओं और सूचनाओं पर आधारित नाटकीय रचनाओं को फीचर कहते हैं। इसी फीचर को हिंदी में रूपक कहा जाता है। अतः इसे रेडियो रूपक भी कह सकते हैं।
फीचर का अर्थ एवं परिभाषा - 'फीचर' का शब्दकोश के अनुसार अर्थ है रूप, लावण्य, आकृति, सौंदर्य, किसी वस्तु का गुण विशेष, शरीर का अंग विशेषतया मुख, दैनिक पत्र का विभाग या किसी बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहना। 'फीचर प्रोग्राम' का शब्दकोश के अनुसार अर्थ है - रेडियो से प्रसारित किये जाने वाले ऐसे प्रोग्राम जिसमें किसी मनुष्य, स्थिति और दूसरे हालात नाटकीय चित्र प्रस्तुत किया जाना।
तात्पर्य यह है कि फीचर एक ऐसा आलेख होता है जिसमें सत्य और तथ्य का उद्घाटन सप्रमाण रोचक ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। उसमें किसी घटना या व्यक्ति के निरूपण में लेखक की कल्पना और प्रत्युपन्न बुद्धि का परिचय मिलता है। फीचर या रेडियो फीचर के संबंध में कुछ विद्वानों की परिभाषाएं यहां प्रस्तुत की जा रही हैं-
- लुईस मैकनीस - इनके अनुसार - "रेडियो फीचर किसी गतिविधि का नाटकीय प्रस्तुतीकरण हैं, किंतु इसमें लेखक को रिपोर्टर या फोटोग्राफर से कुछ और अधिक होना चाहिए। उसे अपने यथार्थ सामग्री का चयन काफी विवेक से करना चाहिए।
- डॉ. उदय भान मिश्र - इनके अनुसार - "रेडियो फीचर तथ्यों एवं सत्यों की ध्वनियांकित सर्जनात्मक कृति है।"
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि किसी भी नीरस परन्तु यथार्थ विषय को रूपक के माध्यम से प्रस्तुत किया जा सकता है, परंतु उसमें मनोरंजकता एवं सजीवता होनी चाहिए, जिससे पाठक सुनकर बोर ना हो। इसके लिए लेखक को सतर्क रहना चाहिए। फीचर बहुत लंबा और गंभीर नहीं होना चाहिए। फीचर ऐसा होना चाहिए जो सुनते ही हृदय और मस्तिष्क में हलचल पैदा कर मन को प्रसन्न कर दे। फीचर सारगर्भित होना चाहिए। इसमें नाटकीयता और सपाटबयानी दोनों में समन्यवय होनी चाहिए।
रेडियो रूपक किसी भी विषय पर लिखा जा सकता है। इसमें प्रमुख तीन तत्व होते हैं - शब्द, संगीत और ध्वनि प्रभाव। इसमें वक्ता या वाचक एक या दो हो सकते हैं। इनमें एक स्वर स्त्री तथा दूसरा पुरुष का स्वर होता है। रेडियो रूपक या फीचर थोड़े से शब्दों में अपनी बात रोचकता के साथ प्रस्तुत करता है। विषय ऐसा होना चाहिए, जो महत्वपूर्ण हो और उसकी शब्द शक्ति प्रभावशाली हो। रेडियो माध्यम चुके अदृश्य माध्यम है इसलिए ध्वनि प्रभाव से काम लेते हुए चित्र को श्रोताओं के मस्तिष्क में उतारना चाहिए।
रेडियो फीचर की रचना प्रक्रिया -
रेडियो फीचर लेखक को फीचर लेखन के समय निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए -
1. विषय वस्तु चयन - रेडियो फीचर श्रव्य माध्यम है इसलिए इसके विषय चयन में सतर्कता जरूरी है। फीचर का विषय है ऐसा होना चाहिए जो लोक रुचि का हो, लोक मानव को छुए पाठकों में जिज्ञासा जगाए और उन्हें कोई नई जानकारी दे। सामान्य से सामान्य विषय का चयन किया जा सकता है लेकिन लेखक को चाहिए कि वह इसे इस कोण से देखें कि इस विषय की उपयोगिता क्या है पाठक किस वर्ग के हैं? और किस रूचि के हैं।
2. सामग्री संकलन - इसके लिए लेखक को विषयवस्तु के निकट जाना होता है। घटना स्थल, पर्यटन स्थल, मेला स्थल, रीति रिवाज, रहन-सहन, वस्त्र-आभूषण आदि के अध्ययन के लिए कैमरा, टेप रिकॉर्डर आदि पूरी तैयारी के साथ उसी स्थान पर जाना चाहिए जहां से सामग्री का संकलन करना है।
3. संपादन एवं संयोजन - सामग्री संकलन के बाद ही फीचर लेखक की अभिव्यक्तिपरक प्रक्रिया शुरू होती है। इसके लिए फीचर लेखन के लिए जो आचार संहिता बनाई गई है उसका पालन करते हुए सामग्री का संपादन और संयोजन कर लिखित फीचर को प्रस्तुत करने के उपर्युक्त बनाया जा सकता है। रेडियो फीचर की सफलता संपादक के संपादन कौशल पर निर्भर करता है।
4. रेडियोपरक भाषा - रेडियो अपनी प्रकृति में मुद्रण एवं श्रव्य दृश्य माध्यमों से भिन्न है। अतः उसकी भाषा भी इन सब से भिन्न है। रेडियो की अपनी भाषा है और इसका वैशिष्ट्य रेडियो लेखन में देखा जा सकता है। तकनीकी दृष्टि से रेडियो ध्वनियों के प्रसारण तक सीमित है, किंतु प्रस्तुतकर्ता का कर्तव्य है कि दे दियो की भाषा के अनुकूल ध्वनियों का चयन करें। इसमें सरलता के साथ-साथ श्रोताओं का ध्यान आकर्षित करने के लिए वक्ता को उतार-चढ़ाव या सुर, ताल और स्वर में विविधता लाने होती है। उसके ध्वनि प्रभाव का विशेष महत्व है। ध्वनि प्रभाव पात्रों की मनोदशा को व्यक्त कर देते हैं।
ध्वनि प्रभाव के साथ रेडियो रूपक की भाषा में वाक्य सरल हो छोटे छोटे हो शुद्ध हो और रोचक हों। में भारी-भरकम शब्दावली का प्रयोग न किया जाये। शब्दाडंबर ना हो, उलझे हुए वाक्य न हो।
5. स्पष्टता - रेडियो फीचर लेखन करते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि फीचर में निहित तथ्य स्पष्ट हो।
6. सरलता - फीचर लेखन में स्पष्टता के साथ सरलता का भी ध्यान रखना आवश्यक है। जटिल सामग्री या अभिव्यक्ति श्रोताओं को आकर्षित नहीं कर सकती।
7. संक्षिप्तता - पिक्चर में महत्वपूर्ण तथ्यों को ही महत्व देना चाहिए और उसके ही फीचर को सर्वांगपूर्ण बनाने में संक्षिप्तता का ध्यान रखना चाहिए।
8. तथ्यपरकता - रेडियो फीचर की विषयवस्तु यथार्थ एवं तथ्यपूर्ण होना चाहिए।
9. विश्वसनीयता - रेडियो फीचर के लेखन में ऐसे तथ्यों का निरूपण किया जाना चाहिए, जो विश्वसनीय हों। अतः संपादन करते समय संदिग्ध प्रतीत होने वाले शब्दों या अंशों को हटा देना चाहिए।
10. रोचकता - रोचकता फीचर की बहुमूल्य निधि है रोचकता के अभाव में श्रोता कार्यक्रम में रुचि नहीं लेगा।
रेडियो फीचर लेखन की आचार संहिता -
एक विद्वान के अनुसार रेडियो लेखन के समय निम्नलिखित आचार संहिता का पालन करना चाहिए-
- मित्रदेश की आलोचना नहीं होना चाहिए।
- धर्म और संप्रदाय पर आक्षेप नहीं किया जाना चाहिए।
- हिंसा को प्रोत्साहन नहीं देना चाहिए।
- ऐसा कुछ प्रसारित न किया जाये, जिसमें न्यायालय की अवमानना हो।
- ऐसा कुछ प्रसारित न किया जाये जो राष्ट्रपति सरकार या न्यायालय के प्रतिकूल हो।
- राजनैतिक दल का नाम लेकर आलोचना न की जाये।
- संविधान के विपरीत किसी प्रकार का प्रसारण न किया जाये।
- आकाशवाणी के प्रसारणों में किसी उद्योग के व्यापारिक नाम का ऐसा प्रसारण नहीं होना चाहिए जिससे उसका विज्ञापन होता हो।
- किसी व्यक्ति या किसी संस्था को लाभ पहुंचाने के लिए प्रसारण न किया जाए।
- कोई अपील प्रसारित नहीं हो सकती। राष्ट्रीय संकट होने पर अपील प्रसारित की जा सकती है।
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