रिपोतार्ज : repotarge

रिपोतार्ज

 रिपोतार्ज फ्रांसीसी भाषा का शब्द है तथा इसकी गणना आधुनिक साहित्य विधाओं के अंतर्गत की जाती है। जिस रचना में वर्णनीय विषय का आंखों देखा तथा कानों सुना ऐसा विवरण प्रस्तुत किया जाए कि पाठक के हृदययंत्री के तार झंकृत हो उठें और वह उसे भूल न सके उसे रिपोतार्ज कहते हैं। इसमें तथ्यों के कलात्मक एवं प्रभावोत्पादक ढंग से व्यक्त किया जाता है।

रिपोतार्ज आधुनिक साहित्य का वह रूप है जो मुख्यतः महायुद्धकालीन परिस्थितियों का खाद-पानी पाकर फूला-फला है। उसके उद्भव और विकास श्रेय सोवियत संघ को है जहां की परिस्थितियां इसके पल्लवन के लिए अधिक अनुकूल रहे हैं। श्री शिवदानसिंह चौहान का मत है कि रिपोतार्ज क्रांतिकारी साहित्य के माध्यम के रूप में ही विकसित हो सकता है। रिपोर्ताज लेखक सामान्य लेखकों से इस बात को लेकर भिन्न है कि वह शत-प्रतिशत कलाकार नहीं होता, वह आधा पत्रकार होता है और आधा कलाकार। रिपोर्ताज लेखक का काम केवल कल्पना से नहीं चलता। वह जो कुछ लिखता है उसमें उसका अनुभव होता है। यथार्थ और सत्य का उत्कृष्ट आग्रह रिपोतार्ज की पहली अनिवार्य आवश्यकता है, जिसके लिए यह जरूरी है कि रिपोर्ट लेखक जिन परिस्थितियों का चित्रण करें, उससे उसका साक्षात परिचय हो। रिपोतार्ज की दूसरी आवश्यकता उसकी साहित्यिकता, चित्रात्मकता अथवा कलात्मकता है। रिपोतार्ज लेखक का कार्य रेखाचित्रकार से मिलता-जुलता है। रेखाचित्रकार की तरह रिपोतार्ज लेखक भी छोटी-छोटी घटनाओं और विवरणों का सहारा लेकर चित्र उभारने का प्रयास करता है।

रिपोतार्ज आधुनिक युग की देन है, इसलिए आवश्यक है कि आधुनिक जीवन की जटिलताओं और संघर्षों से रिपोतार्ज लेखक का रूबरू परिचय हो। वर्तमान जीवन के सभी पहलुओं- सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक का - उसे स्पष्ट ज्ञान होना चाहिए।

रिपोतार्ज में रूपक के सभी सारे गुण हैं। संवादी प्रसंग, नाटकीयता और तथ्यपरकता इसमें भी है। हिंदी में इस विधा की परंपरा शिवदानसिंह चौहान की रचना 'लक्ष्मीपुरा' से प्रारंभ होती है। 'अल्मोड़े का बाजार' बंगाल का अकाल प्रकाश चंद्र गुप्त के उल्लेखनीय रिपोतार्ज हैं। आधुनिक युग में जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी, निर्मल वर्मा, श्रीकांत वर्मा, कमलेश्वर आदि उल्लेखनीय रिपोर्ताज लेखक हैं।

रेडियो के संदर्भ में डॉक्टर मधुकर गंगाधर का कथन है कि "रेडियो के लिए इस सुविधा में बहुत संभावनाएं हैं। इसका कथानक श्रोताओं को बांधता है और नाटकीयता, रोचकता पैदा करता है। तथ्यपरकता इसे वर्तमान से जोड़कर 'इतिहास का दस्तावेजी उद्घोषक बना देता है। इसमें कल्पना प्रसूत अभिव्यंजना होती है, किंतु तथ्यों पर आधारित होने के कारण यह प्रमाणित रिपोर्ट भी है। इसका रिपोर्ट होना इसे अन्य विधाओं से अलग करता है। श्रोताओं के लिए यह एक शक्तिशाली प्रसारण के रूप में उपस्थित होता है।"

एक अच्छे रिपोतार्ज में रेडियो की अन्य विधा के सारे गुण होना चाहिए जो आलेख की आत्मा है, जैसे सहज, सरल होना। एक अच्छे रिपोतार्ज में फोटोग्राफी, शब्दचित्र नहीं, शब्दचित्र में कूची की कला होती है, वहां मौलिकता तथ्य को नया रूप देती हैं, फोटोग्राफी में कैमरा बोलता है। तथ्य ज्यों का त्यों रहता है, किंतु जिसमें कौण सी धूप-छांव की अभिव्यक्ति होती है कि लोग मुग्ध हो जाते हैं।

रेडियो में दृश्य नहीं होता है। रिपोतार्ज शब्दों द्वारा उस कमी को पूरा करता है अतः अपनी चित्रमयता के कारण एक अच्छा रिपोतार्ज रेडियो की अन्य विधा को मात कर सकता है। इसकी बड़ी संभावना है।

Ripotarj.

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