जनसंचार : प्रौद्योगिकी एवं चुनौतियाँ

जनसंचार : प्रौद्योगिकी एवं चुनौतियाँ 

'जनसंचार' एक परिभाषिक शब्द है, जिसका प्रयोग 'मास मिडिया' या 'मिडिया' के लिए किया जाता है। 'जनसंचार' (Communication) संचार का व्यापक स्तर है। संचार में 'जन' शब्द जुड़कर जनसंचार शब्द बना है, जिसका व्यापक अर्थ हम आगे स्पष्ट करेंगे। 

संचार का अर्थ -

शाब्दिक दृष्टि से विचार करें तो संचार एक तकनीकी शब्द है जो अंग्रेजी के क्म्युनिकेशन (Communication) शब्द का हिंदी रूपांतरण है। संस्कृत के चर धातु से 'संचार' शब्द निर्मित हुआ है। चर धातु का अर्थ है चलना। संचार का सामान्य अर्थ किसी बात को आगे बढ़ाना, चलाना या फैलाना है। 

जब हम संचार शब्द का प्रयोग कम्युनिकेशन के विशिष्ठ अर्थ में करते हैं, तब यह एक परिभाषिक शब्द बन जाता है। परिभाषिक शब्द बन जाने से उसका अर्थ सिमित हो जाता है। अंग्रेजी के कम्युनिकेशन शब्द का अर्थ है समूह, या मनुष्य का एक दूसरे के साथ संबंध, भाई चारा, मैत्रीभाव, सहभागिता आदि। यानी मनुष्यों का परस्पर व्यवहार सम्पर्क, आदान-प्रदान। 

'संचारण' क्रिया शब्द से 'संचार' संज्ञा शब्द बना है। संचारण क्रिया का अर्थ है - विचारों, भावनाओं या सूचनाओं का आदान-प्रदान या सूचित करना, बताना आदि। अतः संचार शब्द का अर्थ है - सामान्य संदेशों तथा सूचनाओं का आदान-प्रदान या व्यक्ति-व्यक्ति के बीच संकेतों की सामान्य प्रणाली द्वारा आदान-प्रदान की प्रक्रिया या विचार अभिव्यक्ति या सूचना प्रेषण का विज्ञान। 

सरल शब्दों में समझने के लिए कुछ उदाहरण लें। दो व्यक्तियों में आमने-सामने बैठकर होने वाली गपशप, टेलीफोन पर होने वाला वार्तालाप, पत्राचार, सेटेलाइट के माध्यम से दूरदर्शन पर प्रसारित कार्यक्रम आदि संचार है। 

चूँकि 'संचार' शब्द एक परिभाषिक शब्द बन चुका है अतः इस दृष्टि से 'एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक अर्थपूर्ण संदेशों को प्रेषित करना ही संचार है। अमेरिकी विद्वान पर्सिंग के अनुसार -

"मानव-संचार को प्रतीकात्मक क्रिया द्वारा व् अर्थों के कार्य व्यापार की सर्पिल या कुंडलीदार प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसमें लिखित, मौखिक एवं शब्द रहित संदेशों को भेजने तथा प्राप्त करने से जुड़े सभी तत्व शामिल हैं।"

इसका संक्षेप में अर्थ है की मानव संचार की प्रक्रिया सर्पिल (कुंडलीदार) यानी उतार-चढ़ाव वाली है। इसमें संदेश भेजना, संदेश प्राप्त करना तथा संदेश प्राप्तकर्ता की प्रतिक्रिया सम्मिलित होती है, जिसे 'Feedback' कहा जाता है। डॉ. हरिमोहन के अनुसार संचार के निम्नलिखत उद्देश्य हैं -

  1. भाव, विचार, संदेश, ज्ञान, सूचना आदि को दूसरे लोगों तक पहुँचाना। 
  2. अपने अनुभवों का परस्पर आदान-प्रदान करना। 
  3. समाज के सदस्यों को समझना, उनका विश्वास अर्जित करना। 
  4. ज्ञान, सूचना और अनुभवों को परस्पर बाँटना। उन्हें दूर-दूर तक पहुँचाना या फैलाना। 
जनसंचार का अर्थ - 

संचार के साथ 'जन' शब्द जुड़ने से 'जनसंचार' शब्द बनता है। 'जन' का अर्थ भीड़ समूह तथा जन समुदाय से है। मनुष्य के संदर्भ में 'जन' का अर्थ है बड़ी संख्या में एकत्र लोग। "यदि 'जन' शब्द को संचार का विशेषण माने तो इसका अर्थ होगा - "बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित करना या सम्मिलित करना। अर्थात जब संचार की प्रक्रिया या संदेशों के आदान प्रदान की प्रक्रिया बड़े पैमाने पर होती है तो वह जनसंचार कहलाता है। इसमें महत्व विचारों का है मशीन का नहीं क्योकि मनुष्य ही विचारों का जनक है, मशीनों का अन्वेषक है और जनसंचार का पुरस्कर्ता है।

टेक्नोलॉजी (प्रौद्योगिकी) के कारण अथवा उसके सहयोग से जनसंचार को प्रभावी ढंग से अंजाम दिया गया है। अतः संचार की अपेक्षा जनसंचार एक व्यापक क्रिया है। जब हम एक बड़े श्रोता या दर्शक समूह के साथ संचार करते हैं, तो वह जनसंचार कहलाता है। जनसंचार का श्रोता, दर्शक एक समूह होता है। 

जनसंचार प्रायः एकतरफा होता है। श्रोता और दर्शक गुमनाम होते हैं। रेडियो का श्रोता रेडियो वाचक को देख नही सकता, दूरदर्शन का दर्शक कार्यक्रम देने वाले को देख तो सकता है पर उससे बात नहीं कर सकता। स्त्रोत उनको नही जानता। इसलिए जो संदेश श्रोता या दर्शकों तक पहुँचता है उसकी प्रतिक्रिया या फीडबैक वापस स्रोत तक नहीं लौटती। जनसंचार में प्रेषक और बड़ी संख्या में श्रोता के बीच एक साथ सम्पर्क स्थापित होता रहता है। इसमें इस बात की संभावना बनी रहती है कि सुचना या जानकारी प्राप्त करने वाले लोगों में से अधिकाँश में कुछ न कुछ प्रतिक्रिया अवश्य उत्पन्न होगी। 

जनसंचार के माध्यम हैं - समाचार पत्र, रेडियो, टेलीविजन, फिल्म, कम्प्यूटर आदि। 

जनसंचार की प्रमुख विशेषताएँ -

  1. जनसंचार की एक विशेषता है कि जनसंचार द्वारा समाज की बौद्धिक सम्पदा का हस्तांतरण सम्भव होता है। 
  2. जनसंचार द्वारा विभिन्न विषयों पर आधुनिक जानकारी उपलब्ध कराई जाती है ताकि अनेक  समस्याओं का हल तुरंत खोजा जा सके। 
  3. जनसंचार द्वारा संदेश तीव्र गति से भेजा जाता है। समाचार-पत्र, रडियो, टेलीविजन, इंटरनेट, मोबाइल फोन आदि के द्वारा कोई भी संदेश तीव्रगति से आम जनता तक पहुँचाया जा सकता है। 
  4. युद्ध, आपातकाल दुर्घटना आदि के समय जनसंचार की मुख्य भूमिक होती है। 
  5. जनसंचार की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें जन सामान्य की प्रतिक्रिया का पता चल जाता है। 
  6. जनसंचार का प्रभाव गहरा होता है और उसे बदला भी जा सकता है। 
  7. जनसंचार एकतरफा होता है। 
इस प्रकार हम देखते हैं जनसंचार प्रौद्योगिकी या तकनीकी आधार पर विशाल रूप में लोगों तक सूचना के संग्रह और प्रेषण पर आधारित प्रक्रिया है। पारिख के अनुसार - "आज के विकसित प्रौद्योगिकी के युग में व्यक्ति घर बैठे ही अकेले फिल्म देख सकता है, घर बैठे ही दुनिया से सम्पर्क कर सकता है।"

चुनौतियाँ :-

 जनसंचार के विकास ने भौगोलिक एवं समय की सीमा को भी तोड़ दिया है। जनसंचार के कारण ही आज 'ग्लोबल विलेज' की परिकल्पना साकार हो रही है। 

आधुनिक युग में जनसंचार माध्यमों ने सामाजिक अधिरचनाके के अंतर्गत लम्बी छलांगें मारी हैं। संचार माध्यमों के क्रांतिकारी विकास ने दुनिया को गाँव में बदल दिया है। यहीं नहीं, इस प्रक्रिया में पुराने समाजों में परिवर्तन हुआ है। अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "टेक्नोलॉजी कम्युनिकेशन एन्ड चेंज" में लर्नर ने विस्तार से बताया है कि "आधुनिक जनसंचार माध्यम सामाजिक परिवर्तन के बड़े औजार हैं।"

मार्शल मैक्लूहान ने अपनी पुस्तक "अंडरस्टैंडिंग मीडिया (1964)" में समूची सभ्यता के विकास को संचार माध्यमों के विकास के रूप में देखा है। उन्होंने लिखा है कि इस इलेक्ट्रॉनिक युग में "माध्यम ही संदेश है" का नारा दिया है जिसका अर्थ यही है कि नितांत नया वातावरण बन चुका है। एक बड़ा छापाखाना, पुस्तक प्रकाशन, समाचार-पत्रों का प्रकाशन, जो एक नई संचार प्रक्रिया को जन्म देते हैं, अपने प्रभाव में अभुतपूर्व कही जा सकती है। प्रेस ने समूची सांस्कृतिक प्रक्रिया एवं मनुष्य व्यवहार को, उसकी अभिव्यक्ति को आंतरिक रूप से प्रभावित और नियमित किया है, प्रेस के कारण ही सार्वजनिक शिक्षा और साक्षरता सफल हुई है। कालांतर में रेडियो, फिल्म, दूरदर्शन ने जनसंचार माध्यमों के स्वरूप और भूमिका में क्रन्तिकारी परिवर्तन ला दिया है ऐसा परिवर्तन, जिसके बिना अभिव्यक्ति के किसी भी रूप पर मुकम्मिल बात सम्भव बात सम्भव नहीं, क्योकि पहले जहाँ "संदेश ही माध्यम था" वही आज "माध्यम ही संदेश" बन गया है। श्री मधुकर गंगाधर जी ने लिखा है कि "संचार साधनों द्वारा प्रचारित नई सूचनाओं से नई आशाएँ, नई आकांक्षाएँ उत्पन्न होती हैं। नई अभिरुचियों, समस्याओं के समाधान के नए बोध प्रकट होते हैं। प्रयोग और शुद्धिकरण की प्रवत्ति जाग्रत होती है। आज के सामाजिक विकास का मुख्य अभियंता संचार ही कहला सकता है।" जनसंचार प्रौद्योगिकी की चुनौतियों के संदर्भ में श्री एन. आर. चंद्रन, प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया, भोपाल ने एक सेमिनार को सम्बोधित करते हुए कहा था "नयी सुचना तकनीक के विशेषज्ञ हमारे ऊपर ऐसी तीव्रगति थोप रहे हैं जो जितनी भयावह है उतनी ही प्रदीप्त भी है। साधनों के अभाव के कारण भारतीय समाचार पत्र नई तकनीक अपनाने में उतनी तीव्रता से प्रगति नही कर सके जितनी तीव्रता से पश्चिम के विकसित देशों और जापान ने की है, परन्तु झुकाव बहुत ही साफ़ है। यदि 60 प्रतिशत से अधिक कार्यरत जनसंख्या सूचना से संबंधित उद्योगों में लगी है तो भारत भी इससे अप्रभावित नहीं रहेगा।"

विपरीत पक्ष :-

जनसंचार प्रौद्योगिकी ने जहाँ एक ओर उन्नति की है वहीं उसके कतिपय दोष भी हैं जो निम्नानुसार हैं -

  1. जनसंचार लोगों में असंतोष और असंयम का प्रसार करता है। 
  2. जनसंचार के द्वारा परम्परागत व्यवस्था को बदलने का प्रयास किया जाता है। 
  3. जनसंचार सूचनाएँ देता है, शिक्षा एवं मनोरंजन देता है लेकिन न तो यह रोजगार दे सकता है और न तो उपभोग योग्य वस्तुएँ वितरित कर सकता। 
  4. जनसंचार आकांक्षाएं तो जागृत कर सकता है लेकिन इन्हें पूरा करने के लिए ठोस आधार प्रदान नहीं कर सकता। कभी-कभी जनहित के नाम पर महत्वपूर्ण जानकारी छिपा ली जाती है या उसे तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत की जाती है, जिससे जनता में यह प्रश्न उठाया जाता है कि कौन सच बोलता है - सरकार या प्रेस। यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है।
इन दोषों के बावजूद भी जनसंचार प्रौद्योगिकी का भविष्य अत्यंत उज्ज्वल है। अब भारत में बीसियों समाचार-पत्रों ने फोटो कम्पोजिंग की प्रणाली अपना ली है। आफसेट प्रिंटिंग तो एक अपवाद ही नहीं नियम ही बन गया है। 

कम्प्यूटरों का प्रयोग भी शुरू हो गया है। पी.टी.आई. स्वयं समाचार संकलन करना तथा काँट-छाँट करने जैसे कार्य कम्प्यूटर प्रणाली से होने लगा है। 

उपग्रह तथा नई संचार तकनीक ने समाचार प्रचार में दूरी तथा समय का अंतर् काम करना सम्भव कर दिया है। अगले कुछ वर्षों में भारत का मानचित्र एक क्रांतिकारी परिवर्तन से गुजरेगा। गुणवत्ता और व्यापकता में जो अंतर् आया है, उससे कहीं ज्यादा बदलाव 21वीं सदी में होना सम्भव है। समाचार-पत्रों के व्यवसाय में औजार भी एक क्रांतिकारी परिवर्तन से गुजर रहे हैं और इसका बहुत प्रभाव पड़ेगा। उदाहरण के लिए टाइपराइटरों तथा टेलीप्रिंटरों की परेशान करने वाली खट-खट, कागज तथा टेप का एक अव्यवस्थित, अराजकतापूर्ण ढेर, फले-फूले क्लिपबोर्ड, कैंचियाँ खुटियाँ तथा गोड़दानी जो कि अभी तक समाचार कक्ष के एक अभिन्न अंग थे, कुछ समय बाद ही भूतकाल का अंग बन जायेंगे। समाचार कक्ष की सकल ही बदल गई है। कॉपीराइटिंग, सम्पादन, चयन, संवाद तथा इससे जुड़े और कई कार्य फिर वीडियो स्क्रीनों पर लिए जायेंगे। टाइम सेटिंग तो स्वचलित हो चूका है। इस प्रकार इलेक्ट्रॉनिक समाचार प्रदाय एक नया युग ला चूका है। हम पर इलैक्ट्रानिक क्रान्ति छा चुकी है। 

इलेक्ट्रॉनिक जनसंचार प्रौद्योगिकी ने समाचार माध्यम में बहुत बड़ा परिवर्तन ला दिया है। अमेरिका के अधिकांश दैनिक पत्र वीडियो डिस्प्ले टर्मिनल इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली से निकले जाते हैं। केवल टेलीविजन संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की एक सबसे बड़ी उपलब्धि है। वीडियो टेप दृश्य और ध्वनि को हाथ में लेने का एक बहुत ही परिवर्तनशाली अद्भूत माध्यम है। अब "माइक्रोवेव सर्किट" द्वारा तस्वीर तथा वर्णन सीधे समाचार कक्ष को भेजना सम्भव हो गया है। भारत को इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहना है। 

श्री होहेनवर्ग ने कहा है कि "टेलीविजन कोई अवांछित प्रभाव नहीं डालेगा। उन्होंने इंगित किया कि कनाडा में अमेरिकन फ़िल्में देखी जाती हैं। वहाँ अमेरिका का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा। फिर भी हमारे यहाँ टेलीविजन को इस बारे में सतर्क रहना है। यह देखने के लिए की मुश्किल से प्राप्त हुई स्वतंत्रता का किसी प्रकार से सांस्कतिक साम्राज्य द्वारा अपहरण न कर लिया जाये।" ए विजन फॉर इंडियन टेलीविजन रिपोर्ट में दूरदर्शन की विज्ञानबाजी के बारे में जोशी कमेटी ने लिखा है - "विज्ञापनबाजी और प्रायोजित कार्यक्रम अपरिहार्य है, किन्तु उन्हें ऐसा होना चाहिए कि वे स्वीकृत समाजिक लक्ष्यों को नष्ट न करें और शुध्द व्यावसायिकता एवं उपभोक्तावाद को बढ़ावा न दें। श्री सुधीर पचौरी ने लिखा है कि "यह बहस व्यर्थ है की मनुष्य टीवी की नकल करता है। सच यह है कि दूरदर्शन ने जिस मनुष्य की नकल की है वह भारत का मनुष्य नहीं, भारत की मानुषी नहीं, वे तमाम यूरोपीय या अमेरिकी जीवन शैली में जीने वाले या जीने की कामना करने वाले चेहरे हैं। चेहरे के ढाँचे आँख, नाक, कान, चाल ढाल, वेशभूषा, खानपान, रहनसहन, बोलचाल सबके भीतर एक तेज अमेरिकीकरण हो रहा है।"

जनसंचार : प्रौद्योगिकी एवं चुनौतियाँ
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