विभिन्न जनसंचार माध्यमों का स्वरूप - मुद्रण, श्रव्य, दृश्य-श्रव्य, इंटरनेट

* विभिन्न जनसंचार माध्यमों का स्वरूप - मुद्रण, श्रव्य, दृश्य-श्रव्य, इंटरनेट

कोई सूचना, विचार या भाव दूसरों तक पहुँचाना, अपने अनुभव को दूसरों के साथ बांटना, संचार कहलाता है।

मानव सभ्यता के विकास में संचार की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। मनुष्य संचार की विभिन्न स्थितियों को पार करता हुआ, आज संचार के अत्याधुनिक चरण में पहुंच गया है। 

जन संचार प्रक्रिया के 'माध्यम' (मीडिया) की भूमिका महत्वपूर्ण है। हम देश-विदेश की जानकारी पाने के लिए कई तरह के संचार यंत्रों या उपकरणों का सहारा लेते हैं। जैसे प्रेस (समाचार-पत्र) रेडियो, टेलीविजन, मोबाइल फोन आदि। इन जनसंचार के यंत्रों, उपकरणों द्वारा एक साथ बहुत सारे लोग एक जैसी जानकारी प्राप्त कर लेते हैं। इन संचार यंत्रों या उपकरणों आदि को ही संचार माध्यम या जनसंचार माध्यम कहते हैं। कई बार संक्षेप में इन्हें केवल मीडिया (Media) कह दिया जाता है, लेकिन मीडिया कहने में प्रायः समाचार-पत्र, रेडियो, टेलीविजन ही सम्मिलित होते हैं। जबकि जनसंचार माध्यम इनके अतिरिक्त और भी है जैसे - फिल्म, टेपरिकार्डर, वीडियो, वी.सी.डी., कम्प्यूटर, इंटरनेट, पेजर, टेलीफोन आदि-आदि अनेक साधन इसी श्रेणी में आते हैं। इन साधन या माध्यमों से हमें सूचना तो मिलती ही है, हमारा ज्ञानवर्धन होता है, मनोरंजन होता है और साथ ही में हमें शिक्षा भी मिलती है। 

वर्तमान युग सूचना युग (InformationAge) है। सूचना तकनीकी बहुत विकसित हो चुकी है। इसे हम सामान्यतः उच्च तकनीकी या हाईटैक पुकारते हैं। ऐसे में कोई भी सोच सकता है की संचार माध्यमों के बिना हम प्रगति नही कर सकते क्योकि जनसंचार का संबंध 'आधुनिक पूँजीवादी युग से है। ------ तार से टेलीफ़ोन तक, रेडियो से लेकर टेलीविजन तक और प्रिंटिंग प्रेस से लेकर कम्प्यूटर तक का आविष्कार इन्ही जरूरतों की वजह से हुआ है। 

जनसंचार माध्यमों से आशय और उनका वर्गीकरण - 

शब्दार्थ की दृष्टि से इस शब्द का अर्थ है, "बड़ी संख्या में लोगों के साथ सम्प्रेषण का मुख्य साधन या माध्यम, विशेष रूप से टेलीविजन, रेडियो और समाचार-पत्र।"

'माध्यम' का सामान्य अर्थ है - "वह साधन जिससे कुछ अभिव्यक्त अथवा सम्प्रेषित किया जाए।"

जनसंचार माध्यम का तात्पर्य यह है कि वे माध्यम जिनके द्वारा हम एक बड़े श्रोता या दर्शक समूह तक चाहे वे पास हों या दूर हों अपने भावों, विचारों को सम्प्रेषित करते हैं। भावों, विचारों के सम्प्रेषण के लिए जिन साधनों या उपकरणों का प्रयोग किया जाता है वे ही माध्यम है। इन जनसंचार के माध्यमों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. शब्द संचार माध्यम - (मुद्रण - माध्यम) समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, पुस्तकें आदि। 
  2. श्रव्य संचार माध्यम - रेडियो, आडियो कैसेट, टेपरिकार्डर आदि। 
  3. दृश्य संचार माध्यम - टेलीविजन (दूरदर्शन), वीडियो कैसेट, फिल्म आदि। 
इनमें से कुछ जनसंचार माध्यमों का संक्षेप में परिचय इस प्रकार है -

1. मुद्रण माध्यम (Press) -

मुद्रण माध्यम अन्य आधुनिक माध्यमों की अपेक्षा सबसे प्राचीन है। मुद्रण के अंतर्गत समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, जर्नल, पुस्तकें इत्यादि शब्द माध्यम आते हैं। ये लिखित माध्यम आज भी अन्य आधुनिक जनसंचार माध्यमों की अपेक्षा अत्यधिक विश्वसनीय हैं क्योकि मुद्रण माध्यम अन्य माध्यमों की अपेक्षा अधिक स्वतंत्र हैं और स्वशासित हैं।

विश्व के प्रायः सभी विकसित एवं विकाशील देशों में लगभग प्रत्येक पढ़ा-लिखा व्यक्ति दैनिक समाचार-पत्र पढ़ता है। एक समाचार-पत्र का पहला और मुख्य कार्य है समाचारों का मुद्रण। मुद्रण यंत्र  अविष्कार से मानव जाति के इतिहास में एक महान क्रांति हुई है। 

जैसे-जैसे शहरों का विकास हुआ और यूरोपीय देशों में व्यापार का फैलाव हुआ, लोगों को आवश्यकता अनुभव होने लगी कि सुदूर स्थानों पर क्या हो रहा है, इसकी जानकारी उन्हें मिलती रहे। 1702 ई. में लंदन का पहला दैनिक पत्र अस्तिव में आया। 

नयी अर्थव्यवस्था और नवीन शिक्षा पद्धति के कारण भारतीय जनता में एक ऐसी चेतना उत्पन्न हुई जिसके आधार पर लोग अपनी कठिनाइयों को समझने और उनको दूर करने की कोशिश करने लगे। इसके लिए प्रेस से बेहतर और कोई साधन नहीं था। भारत वर्ष में मुद्रण यंत्र स्थापित करने का श्रेय पुर्तगालियों को है। सन 1550 में उन्होंने दो मुद्रण यंत्र मँगवाकर धार्मिक पुरस्तकें छापनी प्रारम्भ की। सन 1674 में ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा मुम्बई में मुद्रण कार्य प्रारम्भ किया गया। 18 वीं सदी में मद्रास, कोलकाता, हुगली, मुम्बई आदि स्थानों में छापेखाने स्थापित हुए। 

अंग्रेजों और मिशनरियों के समाचार-पत्र प्रथम प्रकाशित हुए, किन्तु अपने देश के संदर्भ में पत्र निकालने की पहल राजा राममोहन राय ने की। सन 1821 में उनके सहयोग से "संवादकौमुदी" नामक साप्ताहिक बंगला पत्र का प्रकाशन हुआ। इसमें सामाजिक समस्याओं के संबंध में लेख रहते थे। बाद में सती प्रथा के विरुद्ध लेख लिखने के कारण वह पत्र भी बंद हो गया। इसी समय दो पत्र और प्रकाशित हुए "समाचार दर्पण" और 'दिग्दर्शन।' 1822 ई. में 'बॉम्बे समाचार' निकलना प्रारम्भ हुआ। दैनिक पत्र के रूप में यह आज भी निकल रहा है। 

द्वारिकानाथ टैगोर, प्रसन्नकुमार टैगोर, राजा राममोहन राय जैसे प्रगतिशील व्यक्तियों ने सन 1830 में 'बंगदूत' पत्र की नींव डाली। सन 1830 के अंत तक कोलकाता से तीन बंगला पत्र एक दैनिक, त्रिसाप्ताहिक, दो अर्ध साप्ताहिक, सात साप्ताहिक और एक पत्र प्रकाशित हो रहे थे। 

हिंदी का पहला पत्र 'उदन्त मार्तण्ड' सन 1826 में प्रकाशित हुआ। बाद में कोलकाता से ही 'प्रजामित्र' सन 1834 में प्रकाशित होने लगा। हिंदी का दैनिक पत्र "समाचार सुधावर्षण" 1854 ई. में प्रकाशित हुआ, जिसके सम्पादक श्यामसुंदर सेन थे। 

19 वीं सदी के उत्तरार्द्ध में देश में पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन और भी अधिक संख्या में होने लगा। इससे नए विचारों के आदान-प्रदान में सुविधा हुई। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मुद्रण ने बहुत बड़ी भूमिका का निर्वाह किया। इससे वैज्ञानिक दृष्टिकोण और राष्ट्रीयता के प्रचार-प्रसार में भी पर्याप्त सहयोग मिला। 

मुद्रण की स्वतंत्रता को लेकर प्रारम्भ से ही अंग्रेजों और भारतवासियों में टकराहट रही। इस संघर्ष में भी राजा राममोहन राय ने पहल की। एडम के समय में मुद्रण (प्रेस) की स्वतंत्रता पर जो आक्रमण हुआ, उसके विरोध में राजा राजमोहन राय ने कोलकाता उच्च न्यायालय में आवेदन किया। रमेशचंद्र दत्त के अनुसार संवैधानिक ढंग से राजनीतिक अधिकार प्राप्त करने के संघर्ष की शुरुआत थी। सन 1823 में प्रेस संबंधी अधिकार पत्र लेने का अधिनियम बना, जिसे सन 1835 में मेटकाफ ने समाप्त कर दिया। सन 1857 तक यही स्थिति रही। इसमें संदेह नहीं कि मुद्रण और समाचार-पत्रों के माध्यम से विचारों का आदान-प्रदान सहज हो गया। 

भारतीय पुर्नजागरण के लिए प्रेस का वरदान अत्यधिक मूलयवान सिद्ध हुआ। पुनर्जागरण के नेताओं ने प्रेस का पूरा-पूरा उपयोग किया। मुद्रण यंत्र के कारण भारतेन्दु युग के कवियों ने साहित्य के माध्यम से स्वतंत्रता की बिगुल बजाई थी।

संक्षेप में कहें तो प्रेस ने राष्ट्रीय चेतना के विकास में राजनीतिक चेतना जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस जनसंचार माध्यम ने देश के कोने-कोने में स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व की भावना जगाई थी। 

आज हमारे देश में हजारो पत्र पत्रिकाएँ निकल रही हैं। सभी का उल्लेख करना यहां सम्भव नहीं है। मुद्रण यंत्र की दृष्टि से इस लोकतांत्रिक देश में भारत का महत्वपूर्ण स्थान है। प्रसिद्ध पत्रकार बी. के नेहरू ने लिखा है कि "सरकार किसी भी तरीके से बनी हो, उसमें प्रेस की भूमिका निःसंदेह बहुत महत्वपूर्ण है। 

वर्तमान समय में भारत जैसे देश में प्रेस का महत्व बढ़ जाता है। समग्रतः सभी जगह प्रेस का मूलभूत दायित्व एक ही है, खबरें देना, देश की महत्वपूर्ण जानकारी को जन-जन तक पहुँचाना। आज की पत्रकारिता विश्व भर में मुद्रण माध्यम प्रेस के जरिए अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभा रही है। 

कभी-कभी यह चिंता जताई जाती है की रेडियो, टेलीविजन जैसे संचार माध्यमों के कारण प्रेस पिछड़ जाएगा। लेकिन यह चिंता निर्मूल है। हम देखते हैं की जिन घरों में रेडियो तथा टेलीविजन हैं उनमें समाचार-पत्र भी अनिवार्य रूप से ख़रीदे जाते हैं। कारण यह है की समाचार-पत्र की विश्वश्नीयता दूसरे माध्यमों की अपेक्षा अधिक होती है। इसलिए मुद्रण यंत्र (प्रेस) का प्रभाव कभी कम नहीं होगा। 

अब मुद्रण के क्षेत्र में बड़ा भारी परिवर्तन आ गया है। आफसेट, फोटो कम्पोजिंग और लेजर प्रिंटिंग ने मुद्रण के क्षेत्र में गुणात्मक परिवर्तन ला दिया है। 

2. इलेक्ट्रॉनिक माध्यम - 

इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के अंतर्गत केवल श्रव्य माध्यम और श्रव्य-दृश्य माध्यम आते हैं। केवल श्रव्य माध्यम में रेडियो, आडियो, कैसेट आदि आते हैं तथा श्रव्य दृश्य माध्यम में टेलीविजन, फिल्म, वीडियो कैसेट आदि आते हैं। ये सभी माध्यम संदेश को पल भर में पूरे विश्व में पहुंचा देते हैं और दृश्य श्रव्य सचित्र आदि  होने के कारण इनका प्रभाव भी अधिक होता है। प्रिंट मीडिया संदेश को वर्षों तक जीवित रख सकता है, कित्नु श्रव्य संदेश कुछ ही पलों का होता है विशेषकर रेडियो का। टी वी का संदेश चित्रों का सहयोग लेकर चलता है अतः वह कुछ समय तक स्मृती में रहता है। यहां कुछ माध्यम का परिचय संक्षेप में इस प्रकार है -

केवल श्रव्य माध्यम :-

मुद्रण माध्यम प्रेस के उपरान्त दूसरा महत्वपूर्ण जनसंचार माध्यम रेडियो (आकाशवाणी) है। यह श्रव्य माध्यम की श्रेणी में आता है। 

रेडियो माध्यम का स्वरूप -

आधुनिक युग में जनसंचार के अनेक सुव्यवस्थित माध्यम उपलब्ध हैं। टेलीफोन के बाद रेडियो के अविष्कार ने संचार की प्रक्रिया को दूरस्थ स्थानों तक सम्भव बनाकर मनुष्य समाज के भीतर अपना स्थान तक विश्वसनीय मित्र के रूप में बना लिया है। वास्तव में रडियो एक संचार साधन है, जिसके माध्यम से व्यापक जन समुदाय तक एक साथ संदेश पहुँचाया जा सकता है। रेडियो विधुत ऊर्जा के द्वारा ध्वनि तरंगों को काफी दूर तक भेजता है और ध्वनि तरंगों को भेजने में इतना कम समय लगता है कि समय की दृष्टि से इसे शून्य कहा जा सकता है। अर्थात किसी रेडियो स्टेशन से जिस समय संदेश प्रसारित होता है, ठीक उसी समय (कुछ ही सेकंड में) हजारों मील दूर बैठे लोग उसे अपने रेडियो सेट पर सुन सकते हैं। ट्रांजिस्टर के अविष्कार ने तो विद्युत ऊर्जा की अनिवार्यता को भी समाप्त कर दिया है। अब सामान्य बैटरी से काम हो जाता है। ट्रांजिस्टर संचार का सस्ता, सुविधाजनक एवं लोकप्रिय साधन बन गया है। निरक्षर लोग भी इस जनसंचार माध्यम से रुचिपूर्ण संदेश ग्रहण कर सकते हैं। एक साथ बैठकर मनोरंजन के कार्यक्रम सुन सकते हैं, कृषि के आधुनिक वैज्ञानिक खोजों से अवगत हो सकते हैं एवं नई-नई जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं। 

प्रिंट मीडिया या समाचार - पत्र समाचारों को उतनी तीव्रगति से नहीं पहुंचा सकते जितनी तीव्र गति से रेडियो पहुंचाता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए जवरीमल्ल पारख ने ठीक ही लिखा है कि "रेडियो निरक्षरों के लिए भी वरदान है, जिसके द्वारा वे सिर्फ सुनकर अधिक से अधिक सूचना, ज्ञान, मनोरंजन (जैसे की रेडियो नाटक) हासिल कर सकते हैं। रेडियो और ट्रांजिस्टर की कीमत भी बहुत अधिक नहीं होती। इस कारण वह सामान्य जनता के लिए भी कमोबेश सुलभ है। यही कारण है की टीवी के व्यापक प्रसारण के बावजूद तीसरी दुनिया के देशों में रेडियो का अपना महत्व आज भी कायम है।"

श्रव्य दृश्य माध्यम (टेलीविजन, फिल्म, वीडियो) -

श्रव्य दृश्य माध्यम में फिल्म तथा टेलीविजन की गणना होती है। वीडियो भी इसी श्रेणी में आता है। आज फिल्म और टेलीविजन की लोकप्रियता सबसे अधिक है, बल्कि फिल्म माध्यम भी अब टेलीविजन के साथ साँठ-गाँठ करके दुनिया का चेहरा बदलने में अपनी भूमिका निभा रहा है। अर्थात थियेटर जाने की जरूरत नही है, घर बैठे टी. वी. के पर्दे पर फिल्म देख सकते हैं। सच तो यह है कि इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों ने जहां मनुष्य को घर बैठे सारी दुनिया से जोड़ दिया है, वही वह शिक्षित होते हुए भी अशिक्षा के अंधेरे की ओर लौट रहा है। टेलीविजन ने हमारी पढ़ने की आदत बिगाड़ दी है और कंप्यूटर ने हमारी गणित की क्षमता को बांध दिया है। उसके बावजूद फिल्म तथा टेलीविजन की उपयोगिता में कोई कमी नहीं आ रही है। अब तो कंप्यूटर में भी फिल्म और टेलीविजन के साथ अपना प्रगाढ़ संबंध बना लिया है अर्थात कंप्यूटर ने पर्दे पर भी फिल्म देखा जा सकता है।

टेलीविजन संचार माध्यम का स्वरूप-

 'दूरदर्शन' शब्द टेलीविजन (Television - T. V. ) का पर्याय है। टेलीविजन शब्द ग्रीक तथा लैटिन भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है - टेली (Tele) और विजन (Vision) | इसमें 'टेली' ग्रीक शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है दूरी पर जबकि 'विजन' लैटिन शब्द है जिसका आशय है - 'देखना'। इस प्रकार हिंदी में इसके लिए सटीक शब्द बनाया गया है - "दूरदर्शन" । 'दूरदर्शन' का सामान्य अर्थ हुआ - दूर से देखा देखना या दूर के दर्शन। वैसे टेली + विजन का संक्षिप्त रूप टी.वी. ही बोला जाता है। दूरदर्शन हमारा भारतीय जनसंचार उपक्रम है यह सब जानते हैं, जबकि दूर-दर्शन (हाइफनयुक्त) विश्वव्यापी टेलीविजन का पर्याय है। 

 आज फिल्म और टेलीविजन की लोकप्रियता सर्वाधिक है। अब फिल्म और टेलीविजन का भी सांठ-गांठ हो चुका है। सच तो यह है कि इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यमों ने जहां मनुष्य को घर बैठे सारी दुनिया से जोड़ दिया है वहीं वह शिक्षित होते हुए भी अपनी सांस्कृतिक परंपराओं से कट रहा है। श्री सुधीर पचौरी ने लिखा है - "अमेरिका ने हमारे युवाओं की देह पर एम टी.वी. के माध्यम से कब्जा किया। इतनी भयानक "बॉडीप्ले" और "बॉडीलैंग्वेज" फैली है कि लगता नहीं कि अपने शहरी युवाओं के पास अपना हृदय या मस्तिष्क भी है। " यही मीडिया का यथार्थ है। इसके बावजूद फिल्म, दूर-दर्शन (टी.वी.) और कंप्यूटर की उपयोगिता एवं लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है, बल्कि यह बढ़ी ही है। 

 जहां तक पत्रकारिता के संदर्भ में इन माध्यमों की उपयोगिता का प्रश्न है, फिल्म की अपेक्षा दूरदर्शन बहुत महत्वपूर्ण हो चला है। इसने पत्रकारिता को पूरे विश्व में एक नया आयाम दिया है। इसका सबसे अच्छा प्रमाण है, अभी कुछ वर्ष पहले खाड़ी युद्ध का सी.एन. चैनल द्वारा उपग्रह के जरिए पूरे विश्व में आंखों देखा हाल का प्रसारण। इस प्रसारण से सारी दुनिया ने अपने शयनकक्ष या ड्राइंगरूम में बैठकर इस युद्ध के सजीव दृश्य देखे थे। 

 दूरदर्शन (Television) तरंगों के माध्यम से एक साथ दृश्य और आवाज दोनों को सुदूर स्थानों तक उसी तीव्र गति से भेजने में सफल हुआ, जिस गति से रेडियो द्वारा ध्वनि तरंगे भेजी जाती हैं। जनसंचार के क्षेत्र में यह बहुत बड़ा परिवर्तन था। अब लोगों की आवाज के साथ साथ दृश्य भी देखने को मिलने लगे। रेडियो की सीमा यह थी कि यह माध्यम पूरी तरह आवाज पर निर्भर था, जबकि समाचार-पत्र मुद्रित शब्दों पर। दूरदर्शन ने दो कदम आगे बढ़कर आवाज के साथ दृश्य (चित्र) दिखाकर लोगों का विश्वास जीत लिया और साथ ही एक ऐसा मनोरंजन का भरपूर खजाना परोस दिया, जिसमें देह को परत दर परत उघाड़कर रख दिया और एक ऐसी पीढ़ी का दृश्य 'सत्य' बना दिया है जो सिर्फ थिरकती, देह तोड़ती है, चीखती है, रोती है या कपड़े उतारती हैं। कुछ भी हो इसने विश्व की तमाम दूरियां मिटा दी हैं। आज समाचार पत्र का पाठक भी समाचार पत्र में उन कार्यक्रमों की सूची देखता है, जो विभिन्न चैनलों पर प्रसारित किये जाएंगे।

3. नव इलेक्ट्रॉनिक जनसंचार माध्यम -

 उपग्रह :- एक नवीनतम सुविकसित इलेक्ट्रॉनिक माध्यम उपग्रह (सैटेलाइट) भी है। उपग्रहों के कारण आजकल संचार की दुनिया में पर्याप्त विकास हुआ है। इसके लिए विश्वत रेखा के ऊपर एक निश्चित ऊंचाई पर उपग्रह स्थापित किया गया है। इन उपग्रहों को भूस्थिर उपग्रह की संज्ञा दी जाती है। यह उपग्रह अर्थात भूस्थिर उपग्रह प्रसारण की सुविधा प्रदान करते हैं, जिससे अंतरराष्ट्रीय संचार प्रणाली विकसित होती है। कई उपग्रह जब पृथ्वी की कक्षा में एक स्थान पर स्थिर हो जाता है तो वह पृथ्वी के साथ-साथ घूमने लगता है। इस प्रकार उपग्रह का परिक्रमा करने का समय एवं पृथ्वी के स्वयं अपनी कक्षा में घूमने का समय समान होता है। अतः इनको सुविधा पूर्वक संचार उपग्रहों की तरह इस्तेमाल किया जाता है। 

 पृथ्वी की विभिन्न कक्षाओं में सन 1956 के बाद कई कृत्रिम उपग्रह स्थापित किए गए हैं। इन उपग्रहों को रॉकेट की सहायता से स्थापित किया जाता है, जिसे रॉकेट लॉन्चर कहा जाग गया है। 

 इन उपग्रहों द्वारा भेजे गए समाचार एवं सूचनाएं दिन-रात पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हैं, जिनको दुनियाभर के देश रेडियो, टेलीविजन केंद्रों द्वारा प्राप्त कर सकते हैं। यह उपग्रह का ही चमत्कार है कि एक समाचार-पत्र के कई-कई संस्करण एक साथ अलग-अलग स्थानों से प्रकाशित हो रहे हैं। चेन्नई से प्रकाशित भी "दि हिंदू" समाचार पत्र हरियाणा के गुड़गांव से उसी समय प्रकाशित हो जाता है। 

 आज समाचार, लंबे लेख, चित्र आदि पलक झपकते ही फैक्स द्वारा सात समुंदर पार भी ज्यों का त्यों पहुंच जाता है। तात्पर्य है कि इन नव इलेक्ट्रॉनिक जनसंचार माध्यम उपग्रह ने पत्रकारिता के क्षेत्र में अनूठी क्रांति घटित कर दी है। 

इस काम में उत्कृष्ट रूप से विकसित कंप्यूटर भी हमारी बहुत सहायता कर रहा है। 

नव इलेक्ट्रॉनिक समाचार पत्र इंटरनेट - उपग्रह ने सूचना क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। आज हमारे सभी जनसंचार माध्यम टेलीफोन, मोबाइल, टी.वी. कंप्यूटर आदि उपग्रह से जुड़े हैं और प्रभावशाली ढंग से संचार प्रक्रिया में लगे हैं। 

धीरे-धीरे हम इंटरनेट के माध्यम से नव इलेक्ट्रॉनिक समाचार पत्र की ओर बढ़ रहे हैं। उपग्रहों और कंप्यूटरों की संचार क्रांति ने साधारण अखबारों के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। मीडिया विशेषज्ञ अब यह कहने लगे हैं कि भविष्य में समाचार पत्र छपेंगे नहीं कंप्यूटर के परदे पर चढ़ जाएंगे और अब यह धारणा साकार होने लगी है। 

 छापाखाना के अविष्कर्ता जोहानेस गुटबर्ग ने (1455) कभी यह सोचा भी नहीं होगा कि उनकी मुद्रण मशीन का यह हश्र होगा। विकसित देशों में इलेक्ट्रॉनिक न्यूज़पेपर प्रकाशित होने लगे हैं। 

 'इंटरनेट' दुनिया भर में अलग-अलग जगहों पर लगे कंप्यूटरों को जोड़कर सूचना की आवाजाही के लिए बनाई गई विशेष प्रणाली है। इसकी स्थापना अमेरिका में एक परियोजना के तहत हुई थी। इसका उद्देश्य था परमाणु हमले की स्थिति में संचार का एक नेटवर्क बनाए रखना, लेकिन जल्दी ही यह रक्षा शोध केंद्रों से लेकर व्यवसायिक क्षेत्रों में पहुंच गई। इंटरनेट पर कई सेवाएं उपलब्ध हैं। जैसे

1. ई-मेल - इलेक्ट्रॉनिक मेल, जिसके माध्यम से कोई भी सूचना, संदेश, पत्र दुनिया के किसी कोने में तत्काल पहुंचाया जा सकता है। 

2. डब्ल्यू-डब्ल्यू-डब्ल्यू -वल्ड वाइड वेब (world wide web) इस डेटा बेस के द्वारा कोई भी उपभोक्ता इच्छित सूचना प्राप्त कर सकता है। शुरू-शुरू में डब्लू-डब्लू-डब्लू में केवल लिखित सामग्री प्राप्त होती थी, लेकिन अब इसमें चित्र, ध्वनि कार्टून आदि उपलब्ध है। 

 3. होमपेज - इसमें कोई व्यक्ति, कंपनी या संस्था अपने बारे में विवरण देकर एक तरह से विज्ञापन कर सकता है। होमपेज से जानकारी लेने को 'हिट' कहा जाता है। 

4. सूचना भंडार - इंटरनेट से जुड़े कंप्यूटरों में सूचनाओं का विशाल भंडार उपलब्ध है। विश्वकोश पुरानी नई लोकप्रिय पुस्तकें, विशेष लेख, शोधपत्र, अखबार, पत्रिकाएं, कोर्ट के फैसले आदि के विशाल सूचना भंडार में से कोई भी उपभोक्ता मनचाही सूचना ले सकता है। 

 5. खेल बुलेटिन, टेलनेट - एफ. टी. पी. (फ़ाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल) जिसके जरिए हम दूर बैठे व्यक्ति से जानकारी अपनी फाइल में ले सकते हैं और अपनी जानकारी दे सकते हैं। 

6. आर्ची और गोफर - जैसे प्रोग्राम सूचनाओं के विशाल भंडार में से अपनी आवश्यकताओं की सूचना ढूंढने में मदद करते हैं। 

कहने का आशय यह है कि इंटरनेट एक विश्वव्यापी कंप्यूटर नेटवर्क है, जो दुनिया भर में फैला है, लेकिन उस पर ना तो किसी का नियंत्रण है और ना वह किसी कानूनी दायरे में आता है। इंटरनेट पर कोई भी व्यक्ति कोई भी जानकारी या तस्वीर डाल सकता है, जो दुनिया भर के उपभोक्ताओं तक पहुंच जाएगी। इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों का कोई नाम, पता नहीं होता। अतः किसने क्या जानकारी इसमें डाली, इसका पता लगाना मुश्किल है। यही कारण है कि इसके दुरुपयोग की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। 

 कुछ अन्य नव इलेक्ट्रॉनिक माध्यम - "मल्टीमीडिया" इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का समूह है। इससे शिक्षण प्रशिक्षण आदि कार्यक्रम संपादित होते हैं। नव इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों में "पेजर" (टेलीफोन की तरह छोटी सी डब्बी, जिसमें संदेश लिखित रूप में आते हैं), सेल्यूलर फोन (यह पेजर का विकसित रूप है लेकिन इसमें लिखित संदेश नहीं होता यहां कार्डलेस टेलीफोन का रूपांतरण है। फैक्स (लिखित संदेश को लिखित रूप में ही भेजने का काम करता है), ई-मेल (इंटरनेट द्वारा संचालित), कम्युनिकेटर (दुनिया का पहला वास्तविक चलता-फिरता (मोबाइल) ऑफिस दुनिया भर में आसानी से व्यापार करने में सफलता देता है आदि। 

इन सबमें महती भूमिका कंप्यूटर की है। वह दिन भी दूर नहीं जब हम एक दूसरे के कंप्यूटर मॉनिटर पर उभरकर आमने-सामने बातचीत करने लगे

इस प्रकार जनसंचार और जनसंचार के माध्यमों का प्रथम एवं अंतिम लक्ष्य मनुष्य जीवन की बेहतरी है। अतः इसके केंद्र में मनुष्य मात्र है। मनुष्य के द्वारा मनुष्य निर्मित संचार माध्यमों के सहयोग से मनुष्य समाज की उन्नति का यह चक्र जनसंचार का मूलमंत्र है, किंतु इन माध्यमों के उत्तरोत्तर विकास से जिस तीव्रता के साथ समाचार, संवाद, संदेश प्रेषित होते हैं, उतनी ही तीव्रता से उनकी प्रतिक्रियाएं होने लगी हैं। दंगे, फसाद, युद्ध, घृणा, सरकारी नीतियों में परिवर्तन आदि में तेजी आ गई है। जनता और सरकारें भी जनसंचार माध्यमों के प्रति अधिक सजग हो गई हैं। समाज के सभी घटकों पर इनका प्रभाव देखा जा सकता है। अंडरस्टैंडिंग मीडिया 1964 में मैक्लुहान ने लिखा है कि इन इलेक्ट्रॉनिक युग में माध्यम ही संदेश है, का अर्थ यही है कि नितांत नया वातावरण बन चुका है।"

विभिन्न जनसंचार माध्यमों का स्वरूप - मुद्रण, श्रव्य, दृश्य-श्रव्य, इंटरनेट
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Vibhinna jansanchar madhyamo ka svaroop mudran, shravy, drishya-shravya,internet

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