डॉ. मधुकर गंगाधर | Dr. Madhukar Gangadhar

डॉ. मधुकर गंगाधर हिंदी साहित्य के जानेमाने कथाकार एवं कवि थे। जिन्होंने आकाशवाणी पर भी अपने कला का प्रदर्शन किया है। 

इन्होने आकशवाणी पटना में काम किया था जहां वे फणीश्वरनाथ रेणु के सहयोगी के रूप में कार्यरत थे। 

इसके आलावा वे दिल्ली आकाशवाणी में उप महानिदेशक एवं ऑल इंडिया रेडियो में निदेशक के पद पर भी कार्य कर चुके थे। 

इन्हें 'नई कहानी' आंदोलन के प्रमुख कहानीकारों में से एक माना जाता है। हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले फणीश्वरनाथ रेणु और कमलेश्वर इनके मित्र थे। 

जीवन परिचय 

मधुकर गंगाधर के जन्म की बात करें तो इनका जन्म पूर्णिया जिले जो की वर्तमान बिहार राज्य में है वहां के रुपौली (वर्तमान थाना) स्थित झलारी नामक गाँव में 7 जनवरी सन 1932 को हुआ था। तथा इनके कार्यकाल की बात करें तो इन्होनें ऑल इंडिया रेडियो में उनतीस वर्ष तक काम किया था। 

इनकी मृत्यु 7 दिसंबर 2020 को दिल्ली के एक अस्पताल में हुई थी। 

डॉ. मधुकर गंगाधर की साहित्य रचना 

डॉ. मधुकर के लेखन की बात करें तो इन्होने बहुत से विधाओं में अपने कला का प्रदर्शन या कहें लेखन का काम किया। उनकी प्रकाशित कृतियों की बात करें तो उनके द्वारा दस कहानी-संग्रह, आठ उपन्यास, तीन संस्मरण की पुस्तकें, चार कविता-संग्रह,  तीन नाटक के अलावा चार अन्य विधाओं की रचना भी शामिल हैं। 

डॉ. मधुकर गंगाधर के द्वारा लिखे कुछ उपन्यासों के नाम कुछ इस प्रकार हैं -

  1. मोतियों वाले हाथ (1962),
  2. यही सच है (1964),
  3. उत्तरकथा (1984),
  4. फिर से कहो,
  5. सातवीं बेटी (1976),
  6. गर्म पहलुओं वाला मकान (1983),
  7. सुबह होने तक (1978),
  8. जयगाथा (2009),
  9. धुवांतर (2014),
  10. भीगी हुई लड़की (2016),
  11. नील कोठी (2020)

डॉ. मधुकर ने 100 से ज्यादा कहानियाँ लिखी हुई हैं जो की हिंदी साहित्य में  अपना एक अलग ही स्थान रखती हैं इसके अलावा इनके द्वारा लिखे कहानियों को चार खंडो में मुकुल प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित किया गया है। 

डॉ. मधुकर गंगाधर के लिखे कुछ कहानी संग्रह के नाम इस प्रकार हैं -

  1. तीन रंग : तेरह चित्र, 
  2. हिरना की आँखें, 
  3. नागरिकता के छिलके,
  4. मछलियों की चीख, 
  5. गाँव कसबा नगर,
  6. गर्म गोश्त : बर्फीली तासीर,
  7. शेरछाप कुर्सी,
  8. बरगद, सौ का नोट तथा 
  9. उठे हुए हाथ। 

इसके अलावा इन्होंने अन्य विधाओं में छः कविता संग्रह, तीन संस्मरण हर विधाओं में अपनी पहचान बनायी थी। उन्होंने बांग्ला के 'ढोढ़ाय चरित मानस' का हिंदी में रूपांतरण किया था। 

जीवन के अंतिम समय में वे 'अंतिम-यात्रा' लिख रहे थे, ऐसा लगता था कि उन्हें अपनी अंतिम-यात्रा का आभास पहले से ही हो चुका था। 

dr._madhukar_gangadhar
फेसबुक से प्राप्त छायाचित्र 

आपका बहुत बहुत धन्यवाद यहां आने के लिए अपना महत्वपूर्ण समय देने के लिए पढ़ते रहिये हम लिखते रहेंगे।  

Related Posts

Post a Comment