विद्यार्थी जीवन और अनुशासन निबंध - Essay on student life and discipline in hindi

  1.  विद्यार्थी जीवन और अनुशासन 

    Hello and Welcome Viewers आपका स्वागत है यार एक और धमाकेदार ब्लॉग सीरीज में जिसका नाम हमने रखा है, निबंध लेखन class 12 इससे पहले हमने आवेदन पत्र का एक सीरीज आपके लिए पोस्ट किया था जिसका नाम हमने रखा था पत्र लेखन इस सीरीज में हम कुल 17 निबंधों पर चर्चा करेंगे। किस प्रकार से हम इन निबंधों को लिख सकते हैं ताकि पेपर में हमें अधिक से अधिक नंबर मिल सके। 

  • अंकसूची की द्वितीय प्रति प्राप्त करने हेतु एक आवेदन पत्र लिखिए।

    आज इस पोस्ट में हम बात करने वाले हैं विद्यार्थी जीवन और अनुशासन पर निबंध, पर जिसमें हम निबंध को लिख कर समझ सकेंगे की किस प्रकार से लिखें की हमें नंबर ज्यादा मिले? 

उदाहरण के माध्यम से हम इसे समझेंगे सबसे पहले हम निबंध लिखेंगे उसके बाद उसमें जो भी खामी है या जो भी इसमें अच्छा किया जा सकता है उस पर चर्चा करेंगे तो चलिए शुरू करते हैं निबंध लेखन की 

रूपरेखा -

  1. प्रस्तावना 
  2. अनुशासन का अभिप्राय 
  3. अनुशासन का प्रकार 
  4. प्राचीन व् वर्तमान युग में अनुशासन 
  5. अनुशासन के लाभ
  6. अनुशासनहीनता से हानि
  7. उपसंहार 

    1. प्रस्तावना - यह तो सभी को पता है की मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में अनुशासन मानव-जीवन का एक आवश्यक अंग है। मनुष्य को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन के नियमों का पालन करना पड़ता है। अनुशासनहीनता किसी भी समाज या मनुष्य को पतन की ओर ले जाती है। 

विद्यार्थी जीवन हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, अतः विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का होना बहुत ही आवश्यक है। यह हमारे जीवन को निम्न स्तर से ऊपर उठा सकता है और गीरा भी सकता है।  इसलिए इसका सही तरीके से अनुशासित होना जरूरी है। 

कहते हैं जो अपने आप को अनुशासित रख सकता है वह अपने आस-पास को भी उतने ही अच्छे तरीके से अनुशासित जीवन दे सकता है। विद्यार्थी शब्द दो शब्दों से मिलकर बना जिसमें विद्या को ग्रहण करने की कला जानता हो जो विद्या या ज्ञान को अंगीकार करता हो उसे ही हम विद्यार्थी कहेंगे। 

चलिए जानते हैं विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का अभिप्राय क्या होता है? आखिर क्यों महत्व दिया जाता है विद्यार्थी जीवन में अनुशासन को। 

    2. अनुशासन का अभिप्राय - विद्यार्थी जीवन में जिस प्रकार के अनुशासन की बात हम यहाँ पर करने वाले हैं वह अन्य जीवन से बिलकुल अलग ही है। जिस प्रकार विद्यार्थी शब्द सो शब्दों के मिलने से बना है उसी प्रकार अनुशासन शब्द भी दो शब्दों से मिलकर बना है। अनुशासन शब्द अनु+शासन के योग से बना है। 'अनु' उपसर्ग का अर्थ है - विशेष या अधिक। इस प्रकार अनुशासन का अर्थ हुआ विशेष अनुशासन अर्थात नियमबद्ध व् नियंत्रण में रहकर कार्य करना अनुशासन कहलाता है। 

    3. अनुशासन के प्रकार - अनुशासन के प्रकार वैसे तो कई प्रकार के हैं लेकिन यहां पर दो प्रकार के अनुशासन बताये गए हैं - जो की इस प्रकार हैं -

  • आत्मानुशासन या स्व अनुशासन,
  • बाह्य अनुशासन 

💧 आत्मानुशासन या स्व-अनुशासन :- स्व एक संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ होता है खुद जिसे हम मैं के नाम से जानते हैं स्व मतलब अपने आप को अनुशासन में रखना ही स्व अनुशासन है। अनुशासन को बहुत सारे लोग बंधन मानते हैं लेकिन स्वअनुशासन का अर्थ बिलकुल ही अलग है क्योंकि इसमें विद्यार्थी स्वयं को अनुशासन में रखता है। अपने स्वेच्छा से अपने मन से वह अनुशासन का पालन करता है। 

इस प्रकार के अनुशासन में वह अपने व्यवहार को नियंत्रित रखता है जिसमें किसी भी प्रकार के बाह्य डाँट या दबाव नहीं होते। 

💧 बाह्य अनुशासन - जैसे की यह भी उसके नाम से स्पष्ट होता है बाह्य अर्थात बाहर का और अनुशासन मतलब नियम इस प्रकार के अनुशासन में बाह्य डाँट दबाव होता है जिसकी वजह से उस व्यक्ति को उस विद्यार्थी को अपने आप की न सुनकर दूसरे की सुनने पर मजबूर होना पड़ता है। 

यह अनुशासन नहीं एक प्रकार की गुलामी है ऐसा मैं मानता हूँ अनुशासन एक हद तक सहीं है लेकिन हद से बाहर नहीं। 

    विद्यार्थी अर्थात विद्या को ग्रहण करने वाला, विद्या को अपने मन मस्तिष्क में संजोकर रखने वाला विद्यार्थी का जीवन समाज व देश की अमूल्य निधि है। यह भावी राष्ट्र का निर्माता है इस वजह से भी अनुशासन इनके जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। 

ऐसे में विद्यार्थी का जीवन बड़े ही असमंजस में होता है की वह गुरु की बात माने या घर के सदस्यों की पहले जमाने की गुरु शिष्य परम्परा ऐसी नहीं थी जैसे अब की है। विद्यार्थी जीवन भी अलग हुआ करता था अब के विद्यार्थियों के जीवन से तो आइये देखें प्राचीन व वर्तमान युग में अनुशासन किस प्रकार से विद्यार्थियों के जीवन को प्रभावित करता था। 

    4. प्राचीन व वर्तमान युग में अनुशासन - पुराने जमाने की या पुराने युग की बात करें तो उस समय की शिक्षा पद्धति बिलकुल ही अलग थी और आज भी वह अपना एक विशिष्ट स्थान रखती है। उस समय की शिक्षा पद्धती में आत्मसंयम, आत्मदमन, आज्ञापालन आदि शिक्षा के आवश्यक अंग हुआ करते थे। यह एक अनिवार्य विषय हुआ करता था जिसमें विद्यार्थी को अपने आप पर नियंत्रण किस प्रकार से रखा जाए इस बात पर जोर दिया जाता था साथ ही यह एक स्वावलम्बी व्यक्तित्व का निर्माण करने में लोगों की सहायता करता था।

आजकल की शिक्षा पद्धति की बात करें तो यह पूरी तरीके से बदल चुकी है यह शिक्षा पद्धति ऐसे ही खत्म नहीं हुई है यह पद्धति धीरे-धीरे मध्ययुग के आते तक आधुनिक युग में पूरी तरह से ख़तम हो चुकी है। इस पद्धति का अंत ही हो गया है। अब के विद्यार्थी न तो स्वयं को अनुशासन में रखना पसंद करते हैं और न ही किसी प्रकार के बंधन में रहना पसंद करते हैं। विद्यार्थी जीवन पहले माता पिता के साये से दूर हुआ करते थे। आज विद्यार्थी घर में रहकर पढ़ते हैं। 

    5. अनुशासन से लाभ - अनुशासन से बहुत सारे लाभ हैं और स्व-अनुशासन इसमें सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखता है। अनुशासन की शुरुआत घर से ही होती है, किन्तु विद्यार्थी द्वारा वास्तविक अनुशासन का पाठ विद्यालय में ही सीखता है। वे विद्यार्थी  ही विकास के मार्ग में चल सकते हैं जिनके विद्यालय में सुयोग्य, अनुशासित व परिष्कृत आचरण करने वाले शिक्षक हों। वहीँ विद्यार्थी अपना सर्वांगीण व संतुलित विकास करते हैं जो अनुशासन को सिर्फ एक निबंध की तरह नहीं देखते उसे जीवन में उतारते भी हैं साथ में आचरण करते हैं। 

    आइये देखें जब विद्यार्थी जीवन सम्पन्न होता है तो उसके बाद समाजिक जीवन में एक विद्यार्थी प्रवेश करता है। विद्यार्थी जीवन के अनुशासन ही उसे समाजिक जीवन में सफल बनाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 

विद्यार्थी जीवन में जो व्यवहार रहता है वहीं उसके समाजिक जीवन में भी परिलक्षित होता है। तो जाहिर सी बात है वह जैसा आचरण अपने विद्यार्थी जीवन में दिखा रहा था। वैसे ही वह समाजिक जीवन में भी प्रस्तुत करता है। 

आज के आधुनिक युग में अनुशासन का सीधा मतलब बंधन से जोड़ा जाता है ऐसा नहीं है अनुशासन का सही अर्थ है अपने आप को संयमित करके रखना बाँध के नहीं। पाश्चात्य संस्कृति क्या कर रही है? इससे हमें मतलब नहीं होना चाहिए लेकिन आजकल कौन क्या कर रहा है इस पर लगें हैं। कोई यह नहीं देखता की वह स्वयं क्या कर रहा है। 

अनुशासन का सीधा एवं सरल अर्थ है, अपने आप को नियंत्रित रखना। आज विद्यार्थी की ही बात नहीं है सभी वर्ग अनुशासन से सिर्फ इसलिए दूर होता जा रहा है क्योंकि वह पाश्चात्य संस्कृति के नागपाश में फँसता जा रहा है। 

    6. अनुशासनहीनता से हानि - वर्तमान शिक्षा पद्धति के साथ ही बेरोजगारी, भविष्य की अनिश्चितता ने भ्रष्टाचार व आतंक की ओर उन्हें उन्मुख किया है। शिक्षकों का अनुत्तरदायी होना, राजनीतिज्ञों का अंधा स्वार्थ, परिवारिक व समाजिक वातावरण, मनोरंजन का गिरता स्तर व सस्ता-साहित्य आदि अनेकानेक कारण इसके लिए उत्तरदायी हैं। 

    विद्यार्थियों में बढ़ती इस अनुशासनहीनता को रोकना आवश्यक है। नैतिक-शिक्षा को बढ़ावा देने के साथ ही साथ उनमें उत्तरदायित्व की भावना, शारीरिक परिश्रम करने के प्रति प्रेरणा और शिक्षा को रोजगार से जोड़ने की आवश्यकता है। 

   7. उपसंहार - विद्यार्थियों को दी जानी वाली शिक्षा को व्यवहारिक जीवन की आवश्यकताओं से जोड़कर सरस व उद्देश्यपूर्ण बनाना होगा तभी छात्र एवं देश का हित सम्भव होगा। व्यक्तित्व के समुचित विकास के लिए अनुशासन अपरिहार्य है। अनुशासन ही सुखी जीवन की आधारशिला है। 

आइये जाने इसे किस प्रकार से आप और अच्छे से लिख सकते हैं -

    #प्रस्तावना - यह हमारे निबंध का मुख्य हिस्सा होता है जिसमें हम बात करते हैं उस निबंध से संबंधित जो भी महत्वपूर्ण भाग है उसकी। 

    #प्रस्तावना के बाद बिच का भाग - यह निबंध लेखन का दूसरा महत्वपूर्ण भाग होता है इस भाग में हमें निबंध किससे संबंधित है और किस प्रकार से इसे हम और आप अच्छे से समझ सकते हैं।

उसे विचार में रखते हुए पॉइंट बनाकर लिखा जाता है साथ ही आसान भाषा का प्रयोग कर हम इसे और भी रोचक बना सकते हैं।

पॉइंट ऐसा होना चाहिए जिससे पुरे पैराग्राफ में लिखे वर्ड्स के मीनिंग हमें समझ में आने चाहिए ओके। 

    #अंतिम भाग - सिर्फ इसी प्रकार के निबंध की बात नहीं है हमें कोई भी निबंध लिखना हो हम अंतिम में उस निबंध का निचोड़ लिखते हैं जिससे हमें पता चलता है की वाकई में हम उस निबंध के या उस विषय के अच्छे जानकार हैं।

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