Hello and welcome Dear आपका फिर से स्वागत है यार हमारे Blog के दूसरे Serise में जिसमें हम बात कर रहें है निबन्ध लेखन (Essay writing) की आज के हमारे निबन्ध का विषय है वृध्दावस्था की आनन्द एवं कुण्ठाएं इससे पहले जितने भी निबन्ध लिखे हैं इस सीरीज के पूरे होने के बाद उनके लिंक हम नीचे दे देंगे आप उन्हें यदि पढ़ना चाहें तो पढ़ सकते हैं।
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- नक्सलवाद और छत्तीसगढ़
6. वृद्धावस्था की आनन्द एवं कुण्ठाएं
चलिए अब आज का टॉपिक शुरू करते हैं -
आप यहां से लिखना शुरू करने वाले हैं -
रूपरेखा -
- प्रस्तावना
- वृद्धावस्था की आशाएं
- वृद्धावस्था की कुण्ठाएं
- उपसंहार
1. प्रस्तावना - "बुढापा बहुधा बचपन का पुनरागमन होता है" इस समय मनुष्य की इच्छाएं तीव्र व मनुष्य जीवन की आशाएं असीमित हो जाती हैं। सभी इच्छा व आशा की पूर्ती नहीं हो पाने के कारण निराश व हताशा जीवन में आ जाती है। संसार परिवर्तनशील है। इसके कण-कण में प्रत्येक क्षण परिवर्तन का चक्र चला करता है। आज जो बालक है वह कल को वह वृद्ध हो जाता है।
प्राचीनकाल से ही मनुष्य की अवस्था को चार भागों में बांटा गया है - बाल्यावस्था, युवावस्था, प्रौढावस्था व वृद्धावस्था। प्रथम तीन अवस्थाओं में व्यक्ति स्वयं शक्ति का संचार पाता है। इन अवस्थाओं में वह असम्भव से असम्भव कार्य को भी कर सकने का सामर्थ्य रखता है, परन्तु वृद्धावस्था में व्यक्ति शारीरिक, मानसिक रूप से कमजोर हो जाता है। इच्छाओं की वृद्धि एवं आशाओं का बढ़ाव इस काल में चरम सीमा पर होता है।
वृद्धावस्था के सम्बन्ध में विलियम शेक्सपियर ने अपनी एकांकी "As you like it" में लिखा है कि यह जीवन की दूसरी ऐसी अवस्था है जिसमें मानव एक बार पुनः बच्चा हो जाता है।
कवि के शब्दों में ''It is second stage of man, man retires from active life.' भाव यह है कि यह मनुष्य के जीवन की दूसरी अवस्था है जब मनुष्य अपने शरीर और मन की शक्तियों की क्षीणता के कारण जीवन के हर क्षेत्र में अपने को धीरे-धीरे अलग करने लगता है।
'वृद्धावस्था' एक ओर जहां आनन्द और उत्साह से भर देने वाला शब्द है, वहीं दूसरी ओर असीमित कुंठा एवं निराशा का समय भी है। यदि एक ओर यह वरदान है तो दूसरी ओर अभिशाप भी है।
2. वृद्धावस्था की आशाएँ - वृद्धावस्था में अनेक आशाएँ मन में जाग्रत होने लगती है। जीवन भर संग्राम से जूझने के बाद लम्बे अंतराल के बाद कार्यों से मुक्ति मिलने लगती है।
इस समय कार्यक्षेत्र से मुक्ति का होता है इसलिए कार्यक्षेत्र में समय का प्रतिबन्ध नही होता। सारी जिम्मेदारी पूर्ण हो जाने के कारण वृद्धावस्था तनावहीँ ही नही होती बल्कि आनन्दित करने वाली भी होती है। चिंताहीन जीवन के कारण वृद्धों में आशावादी भावना भर जाती है।
अपनी इच्छा से जीवन जीने का रवैया सबसे ज्यादा आशावान करता है। कार्यकाल में लम्बे समय के बाद कार्यों से मुक्ति मिलने लगती है। खानपान एवं वेशभूषा के प्रति वे जाग्रत व् क्रियाशील हो जाते हैं।
अधिकांश वृद्धजन प्रातःकाल ब्रम्ह मुहूर्त में उठकर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर योगादि से अपने स्वास्थ्य के प्रति जाग्रत हो जाते हैं। समूह में हँसी मजाक, वार्तालाप, मेल मुलाक़ात करने में उन्हें अपार आनंद की प्राप्ति होती है।
वृद्धावस्था के लिए शासन की ओर से बनाई गयी विशेष योजनाओं में वृद्धों को अनेक लाभ मिलता है। जैसे- बैंकों में अनेक योजनाओं का लाभ, यात्रा में आरक्षण के तहत वृद्धों को टिकट दर में रियायत भी दी जाती है। समाज में विद्यालयों में वृद्धों को सम्मानित करने से वे बहुत खुश हो जाते हैं। इस प्रकार वे पारिवारिक व् सामाजिक क्षेत्र में सम्मान एवं सुविधाओं की प्रगति से उनमें आत्मविश्वास व् स्वयं की महत्ता का आभास होने लगता है जिससे वे जीवन के प्रति आशावान हो उठते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि वृद्ध एक माली की तरह ही होता है, जिस प्रकार माली अपने उपवन को देखकर खुश हो जाता है, क्योंकि उस उपवन में उसके जीवन के श्रम का दर्शन होता है उसी प्रकार वृध्दजन अपने परिवार रूपी उपवन को देखकर आनंदविभोर होकर झूम उठते हैं।
3. वृद्धावस्था की कुण्ठाएँ - "बुढ़ापा आह! जवानी वाह!"
निराशाओं के परिपेक्ष्य में हम उपर्युक्त विचारों में वास्तविकता पाते हैं। बुढ़ापे में हर क्षेत्र में अपमान एवं हर समय तनाव (अगर समाज के लोग अच्छा व्यवहार न करें तो) के कारण जीवन दुःख, संताप एवं आंसुओं से भरा होता है। यह एक ऐसी अवस्था है जब आँखों की रोशनी कम हो जाती है, हाथ पैर जवाब दे जाते हैं, हाथों पैरों में झुर्रियों की वजह से खाल लटक जाती है।
आज समाज में स्थिति ये है कि माता-पिता मिलकर अपनी चार संतानों को पाल सकते हैं, किन्तु चार संतानें मिलकर माता पिता की देखभाल नहीं कर सकतीं। हमारे माता-पिता जब तक हम स्वयं आश्रित रहते हैं, हम सह लेते हैं, परन्तु जब वे हम पर आश्रित होते हैं, तब सच्चाई कुछ और ही होती है।
वृद्धजनों को छोटी-छोटी बातें भी ठेस पहुँचाती हैं। अपमान वृद्धावस्था में असहनीय हो जाता है।
आज मर्यादाओं की तटस्थता नई पीढ़ी स्वीकार नहीं कर पा रही है। वे वृद्धों की अपेक्षा व निरादर करने से नहीं हिचकते, अतः आयु वर्ग का सामंजस्य वृद्धों को अपने प्रति उपेक्षा लगने लग जाती है।
Tennyson ने बुढ़ापे की अवस्था को अपने नाटक में कुछ इस प्रकार व्यक्त किया है -
"Old Order changeth yielding place to new"
अर्थात हर पुरानी चीजों को अंत में नयी चीजों (युवा) (शक्ति) को स्थान देना होता है। बूढ़ा व्यक्ति भी जीवन से थककर भगवान से यही प्रार्थना करता है कि 'हे प्रभु'! अब तो अपनी शरण में ले लो।
4. उपसंहार - व्यक्ति जीवन भर स्वच्छंदता से जीवन जीता है, परन्तु वृद्धावस्था में बच्चों का रोकटोक उनमें निराशा उत्पन्न कर देती है। ज्यादा रोकटोक उन्हें अच्छा नहीं लगता बात-बात की टोकाटाकी उन्हें निराशावादी बना देता है।
समाज के लोगों को चाहिए कि वे वृद्धों के साथ बहुत अच्छा व्यवहार करें। उनकी भावनाओं का ख्याल रखते हुए उनके अनुभवों का लाभ उठायें।
इस प्रकार यह निबंध समाप्त होता है अन्य जानकारियों के लिए जैसे अंकसूची की द्वितीय प्रति प्राप्त करने हेतु आवेदन पत्र के लिए हमारे ब्लॉग का एक बार जरूर देखें अच्छा लगे तो निचे दिए फॉर्म की सहायता से अपने सुझाव जरूर दें !
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