प्रश्न 5. भारतीय काव्यशास्त्र के अनुसार रीति एवं शैली के संबंध पर प्रकाश डालिए।
रीति एवं शैली के संबंध
उत्तर - भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य वामन ने रीति सम्प्रदाय की स्थापना करके रीति को काव्य की आत्मा कहा है। संस्कृत साहित्य में रीति शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में किया गया है। रीति शब्द का पहली बार प्रयोग स्तुति के अर्थ में ऋंगवेद में पाया जाता है : जैसे -
महीव रीति: महती स्तुतिरिव।
अग्निपुराण ने रीति वक्तृत्व कला को रीति माना है।
बाणभट्ट ने रीति को रचना शैली माना है।
आचार्य भामह ने रीति शब्द का प्रयोग काव्य के अर्थ में किया है।
आचार्य वामन से हिंदी साहित्य तक रीति का अनेक और भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग प्राप्त होता है।
शैली के अर्थ में रीति शब्द का प्रयोग सबसे पहले पतंजली ने अपने 'महाभाष्य' में किया है।उन्होंने 'एषा ह्याचार्यस्य शैली' में लिखा है, जिसका अर्थ है - यह आचार्य की शैली अर्थात कथन का ढंग है।
वेदों के संहिता काल के बाद ब्राम्हण काल में रीति ने अर्थात लेखन शैली ने गद्य का नवीन रूप धारण कर लिया। काव्यशास्त्र की अभिधा आदि शक्तियों को भी शैली और रीति कहा गया।
वाल्मीकि रामायण में रीति का प्रयोग रसमयी शैली के रूप में हुआ है।
आचार्य आनंदवर्धन ने पद संघटना को रीति कहा है।
Bhartiya kavyshastra ke anusar riti ewan shaili ke sambandh par prakash daliye.
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