प्रश्न 4. लौंजाइनस के अनुसार उदात्त की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर - लौंजाइनस से पहले काव्य को दो रूपों में आंका जाता था - शिक्षा प्रदान करने में सक्षम और आनन्द प्रदान करने वाला। काव्य का भाव तत्व उस समय तक महत्व प्राप्त नहीं कर सका था। लौंजाइनस ने इसी ओर ध्यान दिया।
लौंजाइनस का उदात्त तत्व - लौंजाइनस ने उदात्त तत्व की कोई व्याख्या नहीं की है। उसने उदात्त तत्व को साहित्य के सभी गुणों में महान् माना है। उसने स्वीकार किया है कि उदात्त ऐसा गुण है जो अन्य छोटी-मोटी त्रुटियों में रहते हुए भी साहित्य को सच्चे अर्थों में प्रभावपूर्ण बनाता है। इसके विषय में लौंजाइनस ने कहा है - "अभिव्यक्ति की विशेषता और उत्कर्ष ही औदात्य है। लौंजाइनस ने उदात्त तत्व को काव्य में सर्वोपरि स्थान दिया है। किसी रचना में उदात्त तत्व उपयुक्त तथा महिमापूर्ण शब्द विधान, आवेग को दीप्त करने वाली अलंकार योजना तथा रचना विधान का होना है। कुछ विद्वान यह भी कहते हैं कि लौंजाइनस उदात्त तत्व को काव्य की आत्मा मानता था। साहित्य अपने अध्ययन करने वालों को जिस उच्च एवं आवेगपूर्ण अनुभूति तक ले जाता है, वे ही औदात्य की सीमाएँहैं। साहित्य का यही गुण सबसे महान है।
lonjainas ka udat sidhant ki avdharna par prakash daliye.
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