प्रश्न 4. टी. एस. इलियट की मान्यता के अनुसार कविता में वस्तुनिष्ठ समीकरण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- टी. एस. इलियट ने अपनी आलोचनात्मक सिद्धांतों में विशेष रूप से दो बातें कहीं हैं - निवैयिक्तक प्रज्ञा और वस्तुनिष्ठ समीकरण। वास्तव में निवैयिक्तक प्रज्ञा और वस्तुनिष्ठ समीकरण में विशेष अन्तर नहीं है। इलियट के अनुसार कवि कविता की रचना करते समय व्यक्तिगत भावों या विचारों को प्रकट न करके किसी वस्तु का अलंकारपूर्ण वर्णन करता है। वर्ण्य-वस्तु की कविता में प्रधानता ही वस्तुनिष्ठ समीकरण है। इलियट बाद में कविता में निर्वैक्तिक प्रज्ञा और वस्तुनिष्ठ समीकरण के अभाव का भी समर्थन करने लगे थे, पर उनकी आलोचना में इन दोनों के विचारों की अधिकता है।
इलियट ने वस्तुनिष्ठ समीकरण अपने पूर्ववर्ती विद्वान टी. ई. ह्यूम से प्राप्त किया था। ह्यूम की मान्यता थी कि मनुष्य मूलतः अच्छा होता है, परिस्थितियाँ उसे बुरा बना देती हैं। मनुष्य के बुरे बनने में कुछ नियम और परम्पराएं भी कारण हैं। इस प्रवृत्ति को ह्यूम ने स्वच्छंदतावाद कहा है और इसका विरोध किया है। वह परम्परा और व्यवस्था को ही मनुष्य में अच्छाई उत्पन्न करने का कारण मानता है।
T. S. Eliat ki manyata ke anusar kavita me vastunishta samikarn ko spasht kijiye.
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