नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत है हमारे ब्लॉग में पिछले पोस्ट में हमने जाना था हिंदी साहित्य में आत्मकथा क्या है और यह हमने लिया था छिंदवाडा यूनिवर्सिटी के सिलेबस से यह चतुर्थ सेमेस्टर के तृतीय प्रश्न पत्र से लिया गया है अभी हम इसी पर काम कर रहें है यदि आप नयें हैं तो प्लीज ब्लॉग को सबस्क्राइब कर लें ताकि ऐसे ही पोस्ट आपतक पहुंचता रहे सबसे पहले।
चलिए आज का हमारा यह टॉपिक शुरू करते हैं जिसमें हम जानेंगे रेखाचित्र एवं संस्मरण के बारे में हिंदी साहित्य में यह कैसे और किस प्रकार आया साथ ही इनमें जो प्रमुख अंतर है उसके बारे में भी यहाँ पर बताया गया है।
सबसे महत्वपूर्ण यहाँ पर रेखाचित्र और संस्मरण में क्या अंतर है क्या भेद है उसको समझना ही ज्यादा जरूरी है क्योंकि इन दोनों में बहुत ही बारीक पतली सी रेखा होती है अंतर कहें तो नहीं के बराबर होता है कई लेखकों ने यह काहा भी है जिसे आप आगे पढ़ेंगे भी अब चलिए शुरू करते हैं -
sansmaran aur rekhachitra in hindi |
हिन्दी रेखाचित्र एवं संस्मरण
रेखाचित्र अंग्रेजी के 'स्केच' शब्द का अनुवाद है। जिस प्रकार चित्रकला में बिना रंगों का प्रयोग किए हुए रेखाओं से रेखाचित्र निर्मित किए जाते हैं, उसी प्रकार जब शब्दों के माध्यम से किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को उभारा जाता है, तब उस रचना को रेखाचित्र कहा जाता है।
डॉ. गोविन्द त्रिगुणायत के शब्दों में, "रेखाचित्र वस्तु, व्यक्ति अथवा घटना का शब्दों द्वारा विनिर्मित वह मर्मस्पर्शी और भावमय रूप विधान है, जिसमें कलाकार का संवेदनशील हृदय और उसकी सूक्ष्म पर्यवेक्षण दृष्टि अपना निजीपन उंडेलकर प्राण प्रतिष्ठा कर देती है।"
रेखाचित्रकार अपने वर्ण्य विषय का अध्येता, व्याख्याता सूत्रधार है । रेखाचित्र में वैयक्तिक अनुभूति अनिवार्य रूप से रहती है, इसमें व्यक्ति अथवा वस्तु का ऐसा 'क्लोजअप' प्रस्तुत किया जाता है कि उसकी प्रत्येक विशेषता उभर आती है।
रेखाचित्र का वर्ण्य विषय काल्पनिक न होकर वास्तविक होता है और उसकी आन्तरिक एवं बाह्य विशेषताएं कलात्मक ढंग से अभिव्यक्ति पाती हैं। रेखाचित्र से मिलती-जुलती विधा संस्मरण है, जिसके लिए अंग्रेजी शब्द है 'मेमोयर्स'। महादेवी वर्मा के अनुसार, “संस्मरण लेखक की स्मृति से सम्बन्ध रखता है और स्मृति में वही अंकित रह जाता है जिसने उसके भाव या बोध को कभी गहराई में उद्वेलित किया हो।"
संस्मरण और रेखाचित्र में भेदक रेखा खींच पाना यद्यपि कठिन है तथापि संस्मरण विवरणात्मक होते हैं और रेखाचित्र रेखात्मक, उनमें इतिवृत्त की प्रधानता नहीं होती है। रेखाचित्रों में सूक्ष्म तथ्य रहते हैं, घटनाओं का विवरण नहीं दिया जाता। यह भी उल्लेखनीय है कि रेखाचित्र में वस्तुपरक दृष्टिकोण की प्रधानता होती है जबकि संस्मरण आत्मपरक रचना है। रेखाचित्र में लेखक का व्यक्तित्व नहीं उभरता, जबकि संस्मरण में लेखक का व्यक्तित्व भी प्रकारान्तर से आ जाता है।
हिन्दी में संस्मरण और रेखाचित्र प्रायः घुल-मिल गए हैं। अनेक लेखकों की रचनाएं कुछ आलोचकों ने संस्मरण के अन्तर्गत मानी हैं तो कुछ अन्य उन्हें रेखाचित्र कहना उपयुक्त समझते हैं।
वस्तुतः कोई साहित्यकार यह सोचकर नहीं लिखता कि वह संस्मरण लिख रहा है या रेखाचित्र डॉ. पद्मसिंह शर्मा 'कमलेश' के अनुसार, "प्रायः प्रत्येक संस्मरण लेखक रेखाचित्र लेखक भी है और प्रत्येक रेखाचित्र लेखक संस्मरण लेखक भी।" यही कारण है कि रेखाचित्र और संस्मरण में विभाजक रेखा नहीं खींची जा सकती। वस्तुतः न कोई संस्मरण बिना रेखाचित्र के पूरा होता है और न कोई रेखाचित्र बिना संस्मरण के।
आनुपातिक दृष्टि से वैयक्तिकता एवं तटस्थता को देखकर ही यह निर्णय किया जा सकता है कि कोई रचना संस्मरण है या रेखाचित्र |
हिन्दी में रेखाचित्र साहित्य का उद्भव इस शताब्दी के तीसरे दशक से प्रारम्भ हुआ। डॉ. हरवंशलाल शर्मा ने पण्डित पद्मसिंह शर्मा को संस्मरण एवं रेखाचित्रों का जनक माना है।
उनके अनुसार, "रेखाचित्र की दृष्टि से आपका 'पद्मपराग' संग्रह उल्लेखनीय है, जिसमें सस्मरणात्मक निबन्धों तथा रेखाचित्रों का सकलन है और कुछ विशेष निबन्ध है सस्मरणात्मक निबन्धों तथा रेखाचित्रों के आप जनक कहे जा सकते है।“
किन्तु उनका यह मत उपयुक्त प्रतीत नहीं होता क्योंकि पं. पद्मसिंह शर्मा से पूर्व ही विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं सरस्वती, हंस, विशाल भारत. सुधा में रेखाचित्र और संस्मरण लिखे जा रहे थे। 1907 में ही बालमुकुन्द गुप्त ने प्रतापनारायण मिश्र पर एक रोचक संस्मरण लिखा था।
'विशाल भारत' में आचार्य रामदेव ने स्वामी श्रद्धानन्द पर सन् 1929 ई में और पं. बनारसी दास चतुर्वेदी ने श्रीधर पाठक पर सन् 1932 ई. में सस्मरण लिखे।
स्वतन्त्र पुस्तक के रूप में रेखाचित्र संग्रह प्रकाशित कराने का श्रेय पण्डित बनारसीदास चतुर्वेदी को है। इस विद्या से सम्बन्धित इनकी कुछ प्रमुख कृतिया है- संस्मरण (1952 ई), हमारे आराध्य (1952 ई.), रेखाचित्र (1953 ई.), सेतुबन्ध (1962 ई.)।
’सस्मरण' नामक संग्रह में कई प्रसिद्ध व्यक्तियों के रेखाचित्र संकलित है। यथा-द्विजेन्द्रनाथ ठाकुर, दीनबन्धु एन्ड्रूज, आजाद की माताजी गणेश शंकर विद्यार्थी आदि।
‘रेखाचित्र’ संग्रह में आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी, सी. वाई. चिन्तामणि, प्रेमचन्द, सम्पूर्णानन्द, बालकृष्ण शर्मा 'नवीन', प. श्रीकृष्ण दत्त पालीवाल आदि के साथ-साथ सामान्य व्यक्तियों को भी रेखाचित्रो का विषय बनाया गया है, यथा-अन्धी चमारिन।
'सेतुबन्ध' शीर्षक संग्रह में विश्वविख्यात व्यक्तियों के रेखाचित्रों के साथ-साथ कुछ ऐसे संस्मरणात्मक निबन्ध भी हैं, जो स्थानों से सम्बन्धित हैं।
डॉ हरवंशलाल शर्मा ने चतुर्वेदीजी के रेखाचित्रों की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए लिखा है- “चतुर्वेदी के रेखाचित्रों में जहां एक ओर राष्ट्रीयता तथा देशप्रेम की भावना कूट-कूटकर भरी हुई है वहीं दूसरी ओर उसमे सर्वत्र विश्वप्रेम तथा अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना व्याप्त है …….मोटे तौर पर पण्डितजी ने कालगति को देखा है और इसी परिप्रेक्ष्य में साहित्यकार, लेखक, पत्रकार, राजनीतिज्ञ आदि विभिन्न व्यक्तियों का अकन अपनी कुशल लेखनी से किया है।“
चतुर्वेदी जी के रेखाचित्रों में रोचकता और मनोरंजकता का पर्याप्त पुट है। व्यंग्य और विनोद के अनेक स्थल जुटाकर लेखक ने अनेक स्थानों पर सरसता की सृष्टि की है। रेखाचित्रों के क्षेत्र में पण्डित बनारसीदास चतुर्वेदी सर्वाधिक सशक्त लेखक माने जा सकते हैं।
हिन्दी रेखाचित्रकारों में पण्डित श्रीराम शर्मा का नाम आदर से लिया जाता है। उनकी विषय प्रतिपादन क्षमता अत्यन्त आकर्षक एवं रोचक है। - रेखाचित्रों का उनका प्रथम सकलन 'जंगल के जीव' सन् 1949 ई. में प्रकाशित हुआ था।
इसमें जंगली जानवरों को रेखाचित्रों का विषय बनाया गया है। उनका दूसरा संग्रह 'वे कैसे जीते हैं’ सन् 1957 ई. में प्रकाशित हुआ, जिसमें कुल बीस रेखाचित्र संकलित है।
इसी क्रम में एक अन्य महत्वपूर्ण सकलन 'बोलती प्रतिमा’ सन् 1967 ई. में प्रकाशित हुआ। उनके कुछ स्वतन्त्र रेखाचित्र ‘हंस’ और 'सरस्वती' नामक पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हुए हैं।
पण्डित श्रीराम शर्मा की तूलिका से रंग-बिरंगे शब्दचित्र उस समय से लिखे जाने लगे जब इस विधा का कोई ज्ञान नहीं था। वे अपने ढंग के एक ही लेखक है। उनकी वर्णन शैली सजीव, भाव विश्लेषण मनोविज्ञान सम्मत और भाषा विषयानुकूल है।
महादेवी वर्मा हिन्दी रेखाचित्रकारों में निःसन्देह सर्वोच्च स्थान की अधिकारिणी हैं। उनके रेखाचित्र एवं संस्मरण साहित्य को हिन्दी में बेजोड़ माना जाता है।
अब तक उनके चार संकलन इस विधा से सम्बन्धित प्रकाशित हो चुके है- 'अतीत के चलचित्र' (1941 ई.) स्मृति की रेखाए' (1943 ई.), 'पथ के साथी' (1956 ई.), और 'मेरा परिवार' (1972 ई) ।
उनके संकलनों में ऐसे व्यक्तियों को रेखाचित्र का विषय बनाया गया है जो सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त साधारण स्तर के हैं। वे विभिन्न प्रकार से उनके सम्पर्क में आये हैं।
साधारण आदमी की दृष्टि में ये मिट्टी के ढेले हैं, किन्तु महादेवीजी की पारखी दृष्टि ने उनके भीतर मानवतता का कचन देखा है। इन रेखाचित्रों में करुण परिस्थितियों में विवश, यातना भोगते पात्रों का मार्मिक उद्घाटन है।
महोदवी जी की गद्य शैली में ऐसी विशेषताएं उपलब्ध है कि पाठक को उनकी लेखनी का लोहा मानना ही पड़ता है। डॉ. पद्मसिंह शर्मा 'कमलेश' के अनुसार, "अपने संस्मरण और रेखाचित्रों में महादेवी ने सर्वत्र भाषा प्रांजल संस्कृतगर्भित और कवित्वपूर्ण रखी है। बीच-बीच में ग्रामीण बोलचाल के शब्द और मुहावरे भी स्वाभाविक रूप में आ गए हैं।..... उनकी शैली में भावुकता और गाम्भीर्य का जो पुट है, वह जीवन के मंगलमय रूप का दिग्दर्शक है।"
महोदवी के रेखाचित्रा का मूल विषय है- करुणा । ग्रामीण जीवन के दीन-हीन उपेक्षित पात्र - घीसा मुन्नू की माई, बिबिया आदि उनके रेखाचित्रों के विषय बने हैं।
उनके पात्र मानवीय गुणों के प्रतीक बन गए है। 'रामा' को सेवा भावना, घीसा की गुरुभक्ति, भक्तिन की स्वामिभक्ति, गुगिया का वात्सल्य, बदलू और रधिया का दाम्पत्य प्रेम और सबिया की पतिपरायणता अनुकरणीय है। ‘अतीत के चलचित्र' में अपने पात्रों के विषय में वे लिखती हैं, “इन सस्मरणों के आधार प्रदर्शनी की वस्तु न होकर मेरी अक्षय ममता के पात्र रहे हैं।"
'मेरा परिवार' में उन्होंने मानवेतर प्राणियों के व्यक्तित्व को रेखाचित्रों में संजोया है। 'पथ के साथी' में उन्होंने समकालीन साहित्यकारों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का कलात्मक अंकन किया है।
समग्र रूप से महादेवी जी के रेखाचित्रों में सरसता, रोचकता, व्यंग्यात्मकता, उक्ति वैचित्र्य आलंकारिकता आदि सभी गुण विद्यमान है। उनके रेखाचित्र अनुभूतियों के उमड़ते हुए सागर है। करुणा उनकी आत्मा है, मानवतावाद उसकी आधारभूमि है और चित्रात्मकता उनकी शक्ति है उनकी कृतियां अपने कथ्य एवं शिल्प की दृष्टि से हिन्दी रेखाचित्र साहित्य की अमूल्य निधि है।
हिन्दी रेखाचित्रों के विकास में रामवृक्ष बेनीपुरी का नाम अग्रगण्य है। रेखाचित्र लेखन में उन्हें अपूर्व सफलता प्राप्त हुई है। 'माटी की मूरतें' नामक संकलन में बारह रेखाचित्र उन्होंने सकलित किए हैं।
इनके नाम है- रजिया, बल्देव सिंह, सरजू भइया, मंगर, रूपा की आजी, देव, बालगोविन्द भगत, नौजी, परमेश्वर, बैजू मामा, सुभान खां और बुधिया 'लाल तारा' में 16 शब्दचित्र है तथा 'गेहूं और गुलाब' में 25 रेखाचित्रों का संकलन किया गया है।
डॉ हरवंशलाल शर्मा ने इनके रेखाचित्रों की प्रशंसा करते हुए लिखा है, "बेनीपुरी जी ने चतुर पारखी जौहरी की भांति जहां - कहीं भी पात्र मिले, उन्हें लेकर अपनी कुशल लेखनी से पात्र का चित्र खड़ा कर दिया। विषय की जितनी विविधता और शैली का जितना, अद्भुत चमत्कार बेनीपुरी जी मे मिलता है, उतना अन्यत्र नहीं।"
रेखाचित्र विधा को पल्लवित करने का श्रेय कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर', प्रकाशचन्द गुप्त, सत्यवती मलिक, आचार्य विनय मोहन शर्मा, देवेन्द्र सत्यार्थी, विष्णु प्रभाकर, अमृतलाल नागर और अमृतराय जैसे अनेक हिन्दी लेखकों को दिया जा सकता है।
कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर के कई रेखाचित्र संकलन अब तक प्रकाशित हुए है, यथा- भूले हुए चेहरे, जिन्दगी मुस्कराई, माटी हो गई सोना, दीप जले शंख बजे, संस्मरण आदि।
संस्मरण लेखन की कला में पारगत प्रभाकर की भाषा सादगी और प्रवाह लिए हुए है। भावुकतापूर्ण शैली में लिखे गए उनके रेखाचित्रों में 'विषय' के प्रति पूर्ण तटस्थता बरतने का प्रयास किया गया है।
रेखाचित्र लेखन में प्रो. प्रकाशचन्द्र गुप्त का भी महत्वपूर्ण स्थान है। ‘हंस’ के रेखाचित्र विशेषांक में उन्होंने हरिवंशराय बच्चन पर एक रेखाचित्र लिखा था।
उनके रेखाचित्र संग्रहों के नाम है- रेखाचित्र, पुरानी स्मृतिया और विशाखा । डॉ. नगेन्द्र ने उनके रेखाचित्रों की विशेषताएं बताते हुए लिखा है- "छोटे-छोटे वाक्य, सरल शब्द, सहानुभूतिपूर्ण चित्रण आदि के अतिरिक्त आकार में भी लघु होना इनके रेखाचित्रों की विशेषता है। संस्मरण का तत्व इनके रेखाचित्रों में अपेक्षाकृत कम है। अभीष्ट विषय से इधर-इधर भटकने की प्रवृत्ति भी इनकी नहीं है। श्रेष्ठ रेखाचित्र की सभी विशेषताएं इनके रेखाचित्रों में मिलती है।"
आचार्य विनय मोहन शर्मा का नाम भी रेखाचित्र में बहुत प्रसिद्ध है। 'रेखाएं और रंग' नामक रेखाचित्र संग्रह में उन्होंने एक और तो भूमिका अन्तर्गत रेखाचित्रों के सैद्धान्तिक पक्ष का उद्घाटन किया है, तो दूसरी ओर एक के कुशल रेखाचित्रकार होने का परिचय भी दिया है।
इस संग्रह के सभी रेखाचित्र सरस, सरल तथा प्रवाहमयी भाषा में लिखे गये है तथा भाषा को आलंकारिक रूप प्रदान किया गया है।
देवेन्द्र सत्यार्थी को भी हिन्दी प्रमुख रेखाचित्रकार माना गया है। उनके प्रमुख संकलन हैं - 'क्या गोरी क्या सांवरी', 'रेखाएं बोल उठीं, 'एक युग एक प्रतीक' आदि। इनके रेखाचित्रों में भावात्मक शैली का प्रयोग किया गया है। सत्यार्थी जी के रेखाचित्र लेखन में भावात्मकता स्वाभाविक प्रवाह के रूप में ही आई है।
कुछ अन्य रेखाचित्रकारों एवं उनकी रचनाओं का उल्लेख भी यहां आवश्यक है। यथा - जगदीश चन्द्र माथुर कृत 'दस तस्वीरें, नगेन्द्र कृत 'चेतना के विम्ब', विष्णु प्रभाकर कृत 'कुछ शब्द-कुछ रेखाएं', 'जाने-अनजाने', उपेन्द्रनाथ अश्क कृत ‘ज्यादा अपनी कम पराई', चतुरसेन शास्त्री कृत 'वातायन' ओंकार शरद कृत 'लंका महाराजिन', सेठ गोविन्ददास कृत 'स्मृतिकण', डॉ. प्रेमनारायण टण्डन कृत 'रेखाचित्र' और श्रीमती सत्यवती मल्लिक कृत 'अमिट रेखाएं' आदि ।
हिन्दी रेखाचित्र एवं संस्मरण विधा के अन्तर्गत पर्याप्त कार्य हुआ है । पत्र-पत्रिकाओं में इस विधा से सम्बन्धित लेख प्रायः निकलते रहते हैं। आजकल अभिनन्दन ग्रन्थ निकालने की जो परम्परा चल रही है, उसने भी साहित्य की इस विधा की पर्याप्त श्रीवृद्धि की है।
साहित्यकारों, राजनेताओं और समाजसेवियों से सम्बन्धित अनेक संस्मरणात्मक रेखाचित्र विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं, अतः इस विधा का भविष्य निश्चित रूप से उज्ज्वल है।
हिन्दी के प्रमुख रेखाचित्रकार एवं संस्मरणकारक्रम | लेखक का नाम | कृतियों का नाम |
---|---|---|
1. | पद्मसिंह शर्मा 'कमलेश' | पद्म पराग |
2. | पण्डित बनारसीदास चतुर्वेदी | 1.संस्मरण, 2. हमारे आराध्य, 3.रेखाचित्र, 4.सेतुबन्ध |
3. | पं. श्रीराम शर्मा | 1.जंगल के जीव, 2.वे कैसे जीते हैं, 3.बोलती प्रतिमा |
4. | महादेवी वर्मा | 1.अतीत के चलचित्र, 2. स्मृति की रेखाएं. 3. पथ के साथी, 4. मेरा परिवार |
5. | रामवृक्ष बेनीपुरी | 1. माटी की मूरतें, 2.लाल तारा. 3.गेहूं और गुलाब |
6. | कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' | 1.भूले हुए चेहरे, 2.जिन्दगी मुस्कराई, 3.माटी हो गई सोना, 4.दीप जले शंख बजे, 5.संस्मरण |
7. | प्रो. प्रकाशचन्द्र गुप्त | 1.रेखाचित्र, 2.पुरानी स्मृतियां, 3.विशाखा |
8. | आचार्य विनयमोहन शर्मा | रेखाएं और रंग |
9. | देवेन्द्र सत्यार्थी | 1.क्या गोरी क्या सांवरी, 2.रेखाएं बोल उठीं, 3.एक युग एक प्रतीक |
10. | जगदीश चन्द्र माथुर | दस तस्वीरें |
11. | डॉ. नगेन्द्र | चेतना के बिम्ब |
12. | विष्णु प्रभाकर | 1.कुछ शब्द - कुछ रेखाएं, 2.जाने-अनजाने |
13. | उपेन्द्रनाथ 'अश्क' | ज्यादा अपनी कम पराई |
14. | चतुरसेन शास्त्री | वातायन |
15. | ओंकार शरद | लंका महाराजिन |
16. | सेठ गोविन्ददास | स्मृतिकण |
17. | डॉ. प्रेमनारायण टण्डन | रेखाचित्र |
18. | श्रीमती सत्यवती मल्लिक | अमिट रेखाएं |
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