उलटबांसी किसकी रचना है?

उलटबांसी मुख्य रूप से कबीरदास की रचनाओं में मिलने वाला एक अलंकार या कह सकते हैं कि विचार प्रस्तुत करने का एक अनूठा तरीका है। 

 क्या होती है उलटबांसी? 

उलटबांसी में कबीरदास जी सामान्य बातों को उलट-पलट कर एक नया अर्थ निकालते हैं। वे समाज में प्रचलित रूढ़ियों, धार्मिक मान्यताओं और सामाजिक व्यवस्था पर व्यंग्य करते हुए अपनी बात को स्पष्ट करते हैं। 

 उदाहरण के लिए: 

"पंडित बड़ा भला, मुर्ख को डराता।"

"मंदिर मस्जिद तो देखी, आदमी को ना देखा।" 

 इन पंक्तियों में कबीरदास जी ने धार्मिक पाखंड और दिखावे पर तंज कसा है। 

 क्यों प्रसिद्ध हैं उलटबांसियां?

कबीरदास की उलटबांसियां इसलिए प्रसिद्ध हैं क्योंकि: 

सरल भाषा: वे अपनी बात को बहुत ही सरल भाषा में कहते हैं, जिससे आम लोग भी उन्हें आसानी से समझ सकते हैं। 

गहरा अर्थ: उनकी बातों में एक गहरा अर्थ छिपा होता है, जिसे सोचने पर ही समझा जा सकता है। 

समाजिक चेतना: वे समाज में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ खड़े होते हैं और लोगों को जागरूक करते हैं। 

अन्य संतों का योगदान: हालांकि कबीरदास को उलटबांसियों का जनक माना जाता है, लेकिन अन्य संतों ने भी इस शैली में रचनाएं की हैं। 

 आधुनिक समय में उलटबांसियां: आज भी उलटबांसियां लोगों को सोचने पर मजबूर करती हैं और समाज में जागरूकता फैलाने का काम करती हैं। 

 यदि आप कबीरदास की किसी विशेष उलटबांसी के बारे में जानना चाहते हैं, तो आप मुझे बता सकते हैं।

मुझे उम्मीद है कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।

ulatbasi kiski Rachna hai?

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