भारतीय भाषाओं के उद्भव काल पर दृष्टि डालिए।

 1. भारतीय भाषाओं के उद्भव काल पर दृष्टि डालिए। 

  • भारतीय भाषाओं के उद्भव काल-

उत्तर - दक्षिण में तमिल और उत्तर में उर्दू को छोड़ भारत की लगभग सभी भारतीय भाषाओं का जन्म-काल प्रायः समान ही है। तेलगु-साहित्य के प्राचीनतम ज्ञात कवि अनन्नय, जिनका समय है ईसा की ग्यारहवीं शती। कन्नड़ का प्रथम उपलब्ध ग्रंथ है 'कविराजमार्ग' जिसके लेखक हैं राष्ट्रकूट-वंश के नरेश नृपतुंग (814-877 ई.) और मलयालम की सर्वप्रथम कृति है 'रामचरितम' जिसके विषय में रचनाकाल और भाषा-स्वरूप आदि की अनेक समस्याएँ हैं और जो अनुमानतः तेरहवीं शती की रचना है। गुजराती तथा मराठी का आविर्भाव-काल लगभग एक ही है। गुजराती का आदिग्रन्थ सन 1185 ई. में रचित शालिभद्र भारतेश्वर का 'बाहु-बलिरास' है और मराठी के आदिम साहित्य का आविर्भाव बारहवीं शती में हुआ था। यही बात पूर्व की भाषाओं के विषय में सत्य है। बंगला के चर्या-गीतों की रचना शायद दसवीं और बारहवीं शताब्दी के बीच किसी समय हुई होगी, असमिया-साहित्य के सबसे प्राचीन उदाहरण प्रायः तेरहवीं शताब्दी के अंत के हैं जिनमें सर्वश्रेष्ठ हैं हेम सरस्वती की रचनाएँ 'प्रह्लादचरित्र' तथा 'हरगौरीसंवाद'। उड़िया भाषा में भी तेरहवीं शताब्दी में निश्चित रूप से व्यंग्यात्मक काव्य और लोकगीतों के दर्शन होने लगते हैं। उधर चौदहवीं शती में तो उड़ीसा के व्यास सारलादास का आविर्भाव हो ही जाता है। इसी प्रकार पंजाबी और हिंदी में ग्यारहवीं शती से व्यवस्थित साहित्य उपलब्ध होने लगता है। केवल दो भाषाएँ ऐसी हैं जिनका जन्मकाल भिन्न है - तमिल, जिसका जन्मकाल उसी प्रकार अज्ञात कहा जा सकता है जैसे संस्कृत का। तमिल भाषी इसका उद्गम सम्भवतः संस्कृत से पहले का भी मानते हैं, परन्तु इसका कोई ऐसा यथार्थ आधार नहीं है कि उससे यह स्पष्ट हो सके कि तमिल भाषा संस्कृत से प्राचीन है। अर्थात ऋग्वेद से पहले की कोई रचना उसमें उपलब्ध है। फिर भी ई. पू. 1000 वर्ष के लगभग रचे गये प्राचीन तमिल व्याकरण से इसकी प्राचीनता सिद्ध होती है। संस्कृत से इसका क्या संबंध था, यह नही कहा जा सकता, लेकिन इतना कहा जा सकता है कि प्राचीन काल का तमिल साहित्य संस्कृत की तरह सम्पन्न नही था। तमिल भाषी स्वयं संस्कृत को भी अपनी ही भाषा की तरह ग्रहण किये हुए थे। उर्दू का उद्भव तो इस देश में मुसलमानों के आगमन काल के बाद ही हुआ। कुछ विद्वान उर्दू का उद्भव 13-14 वीं शदी के बाबा फरीद, अब्दुल हमीद नागोरी तथा अमीर खुसरो की रचनाओं से मानने लगे हैं। 

Bhartiya bhashao ke udbhav kal par drishti daliye.

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