साहित्य का स्वरूप किस क्रिया द्वारा प्रकट होता है? भारतीय साहित्य ने अपनी सज्जा किससे प्राप्त की है?

1. साहित्य का स्वरूप किस क्रिया द्वारा प्रकट होता है? भारतीय साहित्य ने अपनी सज्जा किससे प्राप्त की है?

उत्तर - 

  • साहित्य का स्वरूप इस क्रिया द्वारा प्रकट होता है-

साहित्यकार, यों तो एक दार्शनिक, इतिहासकार, समाजशास्त्री आदि के रूप में अपने वैयक्तिक संवेदनाओं और ज्ञान को प्रकट करने को स्वत्रन्त्र होता है, लेकिन वह युग की परिच्छाया से मुक्त नहीं रह सकता। इसलिए वह परोक्ष रूप में अपने व्यक्तित्व को समाज के सोच और व्यवहारों को भी अभिव्यक्त करता है, जिससे साहित्य का स्वरूप प्रकट भी होता है तथा परिपुष्ट भी होता है। रचनात्मक विधायें भी इसी प्रक्रिया में जन्म लेती हैं। इन दोनों के सम्मिलित रूप में जो प्रकट होता है, वही साहित्य का स्वरूप होता है। लेकिन इस स्वरूप का निर्माण तो मानवीय अनुभूतियों और उनके दार्शनिक चिंतन से ही व्यावहारिक परिप्रेक्ष्य में होता है। भाषा केवल माध्यम होती है। परन्तु यह अस्वाभाविक नहीं है कि अभिव्यक्ति अन्य भाषाओं की अभिव्यक्ति संस्कृति, भाषा संक्रमण के माध्यम से प्रभावित न हो, जैसे वर्तमान काल में कुछ तो फैशन, कुछ अभ्यान्तता और नितांत पूर्वाग्राही मनोवैज्ञानिकता के कारण तथा कुछ शब्द शक्ति को ग्रहण करने के लक्ष्य से एक भाषा के शब्द दूसरी भाषा के शब्दों के रूप में मान्य ही है। संसार में यह प्रक्रिया भाषाओं के जन्म-काल से चलती रही है। सामान्य समाजों में पारस्परिक संक्रमण क्रिया स्वाभाविक रूप से विध्यमान है, चाहे वह साहित्य संबंधी हो, सामान्य व्यवहार, वार्तालाप या रहन-सहन संबंधी। 

  • भारतीय साहित्य ने अपनी सज्जा इस प्रकार प्राप्त की है-

भारतीय साहित्य के स्वरूप ने मूलभूत रूप में भारत के सांस्कृतिक परिधानों से ही सज्जा प्राप्त की है, अतः उसमें एकसूत्रता है। एक अभंग सम सांस्कृतिक चेतना है। 

Sahitya ka swaroop kis kriya dwara prkat hota hai? bhartiya sahitya ne apni sajja kisase prapt ki hai?

Related Posts

Post a Comment