प्रश्न 1. मैथ्यू आर्नोल्ड के अनुसार आलोचना का स्वरूप निश्चित करके प्रकार्य का परिचय दीजिए।
उत्तर - मैथ्यू आर्नोल्ड साहित्य को जीव की आलोचना मानता है। उसके अनुसार साहित्य की समस्यायें मानव जीवन की समस्याओं से भिन्न नहीं होती हैं। यह साहित्य का मूल्यांकन जीवन के सन्दर्भ में ही करना चाहता है। मैथ्यू आर्नोल्ड आलोचक में निम्नलिखित तीन गुणों का होना आवश्यक मानते हैं -
(क) आलोचक पढ़े, समझे और वस्तुओं का यथार्थ रूप देखे।
(ख) जो कुछ आलोचक ने सीखा है, उसे वह दूसरों को हस्तान्तरित करें। इस प्रकार अच्छी भावनाएं सभी जगह फैलती हैं।
(ग) आलोचक को रचनात्मक शक्ति के लिए वातावरण तैयार करना चाहिए।
प्रकार्य - इसका तात्पर्य कारयित्री प्रतिभा से है। साहित्य में प्रतिभा दो प्रकार की होती है - कारयित्री और भावयित्री। इन दोनों का अन्तर यह है कि कारयित्री प्रतिभा का कार्य काव्य की रचना करना है और भावयित्री प्रतिभा का कार्य काव्य को समझाना है। इतिहास, विज्ञान आदि में जो वस्तु जैसे है, उसे उसी प्रकार देखना कारयित्री प्रतिभा का काम है। समीक्षा भी कारयित्री प्रतिभा है।
Mathyu Arnold ke anusar aalochna ka swaroop nishchit karke prkarya ka parichay dijiye.
यह प्रश्न इस प्रश्न से भी सम्बंधित है-
मैथ्यू अर्नाल्ड की आलोचना का स्वरूप क्या है?
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